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स्त्री अधिकारों के लिए लड़ती रहीं कृष्णा सोबती

Varanasi News - वाराणसी में बीएचयू के महिला अध्ययन एवं विकास केंद्र द्वारा कृष्णा सोबती की जन्मशती पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। प्रख्यात कथाकार प्रो. काशीनाथ सिंह ने उनके लेखन की विशिष्टता और स्त्री...

Newswrap हिन्दुस्तान, वाराणसीMon, 17 Feb 2025 03:28 AM
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स्त्री अधिकारों के लिए लड़ती रहीं कृष्णा सोबती

वाराणसी, मुख्य संवाददाता। कृष्णा सोबती सारी जिंदगी स्त्री अधिकारों के लिए लड़ती रहीं। वह हिंदी की सोफेस्टीकेटेड महिला रही हैं। 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हम यदि महादेवी को जानते हैं तो उत्तरार्द्ध में तमाम लेखिकाओं के बीच कृष्णा सोबती हैं। बनारस में यह पहला अवसर है जब किसी साहित्यकार की जन्मशती अपने तय समय पर हो रही है।

ये बातें प्रख्यात कथाकार प्रो.काशीनाथ सिंह ने कहीं। वह रविवार को बीएचयू के महिला अध्ययन एवं विकास केंद्र की ओर से कृष्णा सोबती की जन्मशती पर आयोजित ‘स्त्री यथार्थ और स्त्री आख्यान: भारतीय उपन्यास और कृष्णा सोबती विषयक तीन दिनी अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर उद्घाटनकर्ता बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मेरा उनसे परिचय 1967 में ‘यारों के यार उपन्यास से हुआ था। उन दिनों उपन्यास में अपशब्दों के प्रयोग ने कृष्णा सोबती को लाइम लाइट में ला दिया था। उसके बाद से लगातार उनसे संपर्क बना रहा। उनके लेखन की शैली उन्हें समकालीन साहित्यकारों में विशिष्ट बनाती है।

बीज वक्तव्य में चर्चित कवयित्री अनामिका ने कहा कि स्त्री भाषा में बहुत ताकत होती है। पूरी धरती को मां की दृष्टि से देखना स्त्रीवाद है। स्त्री दृष्टि ही पदानुक्रम तोड़ने वाली दृष्टि है। इसमें परायेपन जैसी चीज नहीं होती। ‘कठगुलाब उपन्यास में कृष्णा सोबती ने रक्त संबंधों और यौन संबंधों की जगह आत्मा के संबंधों को परिवार की नींव के रूप में चित्रित किया है। ‘जिंदगीनामा, ‘मित्रों मरजानी उपन्यासों में पंचायती भाषा, लोक आख्यानों की भाषा, इतिहास से लेकर समाज विज्ञान के शब्द देखने को मिलते हैं।

अध्यक्षता करते हुए सामाजिक विज्ञान संकाय प्रमुख प्रो. बिंदा परांजपे ने कहा कि आधुनिक स्त्री उपन्यासकारों के उपन्यासों में हमें ध्यान देने की जरूरत है कि क्या सावित्रीबाई फुले की काव्यभाषा का प्रतिबिंब समकालीन स्त्री रचनाकारों की रचनाओं पर पड़ा है या नहीं। विशिष्ट वक्ता अखिलेश ने कहा कि कृष्णा सोबती ने स्त्री और पुरुषों दोनों के मनोविज्ञान को ध्यान में रखकर उपन्यास रचे हैं। स्वागत नीरज खरे, संचालन डॉ. प्रीति त्रिपाठी और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मीनाक्षी झा ने किया।

इनकी रही उपस्थिति

प्रो. योजना रावत, प्रो. संजीता वर्मा, प्रो. लक्ष्मी जोशी, प्रो. संजीव कुमार, डॉ. मिथिलेश शरण चौबे, प्रो.अवधेश प्रधान, प्रो. बलिराज पाण्डेय, प्रो. मनोज कुमार सिंह, प्रो. आनंदवर्धन शर्मा, प्रो. विनय कुमार सिंह, प्रो. डीके. ओझा, प्रो. प्रभाकर सिंह, डॉ. किंगसन सिंह पटेल, डॉ. प्रभात कुमार मिश्र, डॉ. विवेक सिंह, डॉ. सत्यप्रकाश सिंह, डॉ. रविशंकर सोनकर, डॉ. विंध्याचल यादव, डॉ. प्रियंका सोनकर, डॉ. सुशील कुमार सुमन, डॉ. शैलेन्द्र सिंह, डॉ. विभाग वैभव, डॉ. मानवेंद्र सिंह, डॉ. सचिन मिश्र आदि रहे।

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