बोले काशीः आयुष्मान योजना से होम्योपैथी को भी जोड़े सरकार
वाराणसी में होम्योपैथी ने कोरोना वायरस और अन्य रोगों के खिलाफ प्रभावी उपचार दिया है। चिकित्सक सरकारी सहायता की कमी से परेशान हैं और आयुष्मान भारत योजना में होम्योपैथी को शामिल करने की मांग कर रहे हैं।...
वाराणसी। दवा की आठ से दस मीठी गोलियां कोरोना वायरस के खिलाफ न सिर्फ सुरक्षा कवच के रूप में उभरीं बल्कि बूस्टर भी बन गईं। डेंगू, चिकनगुनिया के भी इलाज की उन गोलियों में क्षमता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, खून की कमी दूर करने की बात हो या किसी गंभीर रोग का इलाज, आज होम्योपैथी हर जगह कारगर है, लेकिन इस विधा के डॉक्टर व्यावसायिक प्रतिष्ठा-प्रामाणिकता और सरकारी मदद के लिए संघर्ष करते दिख रहे हैं। उनका मानना है कि यदि आयुष्मान भारत योजना से होम्योपैथी भी जोड़ दी जाय तो बहुत सी समस्याओं का समाधान संभव है। बनारस में होम्योपैथिक चिकित्सकों की भी प्रतिष्ठित जमात रही है। उनकी डायग्नोसिस और इलाज पर लोग भरोसा भी करते रहे हैं। इन दिनों भी 150 से अधिक होम्योपैथिक चिकित्सक जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाए हुए हैं। उनके मरीजों की खासियत है कि वे या तो रोग के शुरुआती लक्षण दिखते ही होम्योपैथिक दवाओं की शरण में आ जाते हैं अथवा किसी रोग के इलाज में एलोपैथ से आराम न मिलने पर मीठी गोलियों का सेवन शुरू करते हैं। उन दोनों ही स्थितियों में होम्योपैथिक चिकित्सक मरीजों में स्वस्थ हो जाने का भरोसा बढ़ाते हैं। इससे मरीजों में उनके प्रति भी भरोसा बढ़ता है। लेकिन बदले माहौल में होम्योपैथ डॉक्टर दूसरी उपचार पद्धतियों से बराबरी का दर्जा चाहते हैं। होम्योपैथी मेडिकल कॉलेजों, क्लीनिकों में डॉक्टर समेत दूसरी जरूरतों की कमियां दूर कराना चाहते हैं। उन्हें सरकार की ओर से गंभीर पहल और प्रभावी मदद की दरकार है।
‘हिन्दुस्तान से चर्चा के दौरान उनमें इस बात पर भी नाराजगी दिखी कि आयुष के नाम पर 80 फीसदी फंड आयुर्वेद को दिया जाता है। होम्योपैथ को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से सकारात्मक पहल नहीं होती। कोरोना की लहर में संक्रमण से मुकाबला करने और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए लोगों ने तरह-तरह के नुस्खे आजमाए। इसके साथ ही होम्योपैथ चिकित्सकों ने भी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए मीठी गोली लोगों को वितरित की। इन डॉक्टरों ने जगह-जगह निशुल्क कैंप लगाकर मरीजों को सेवा दी। लेकिन उन्हें इसका फल नहीं दिया गया। समाज में अब धीरे-धीरे होम्योपैथ के प्रति लोगों का भरोसा बढ़ रहा है लेकिन हमारे पास एक डेडिकेटड होम्योपैथिक अस्पताल नहीं है जहां पर मरीजों को भर्ती कर इलाज किया जा सके। ‘हिन्दुस्तान से चर्चा के दौरान चिकित्सकों ने कहा कि आयुष्मान कार्ड पर एलोपैथ में मरीजों का इलाज निशुल्क होता है। इस कार्ड पर होम्योपैथ के मरीजों का भी इलाज निशुल्क होना चाहिए। डॉक्टरों ने कहा कि आयुष्मान में ओपीडी के तहत इलाज नहीं होता है लेकिन जब होम्योपैथ में सिर्फ ओपीडी ही संचालित होती है तो ऐसे में इस श्रेणी में विशेष प्रावधान करना चाहिए। इसके साथ ही निजी होम्योपैथिक चिकित्सक बहुत कम पैसे में मरीजों का इलाज करते हैं। ऐसे में हमारे पास इतना पैसा नहीं होता है कि अस्पताल शुरू कर सकें। सरकार को होम्योपैथ को बढ़ावा देने के लिए निजी चिकित्सकों को अस्पताल शुरू करने के लिए सब्सिडी देना चाहिए।
होम्योपैथी के साथ नहीं होगा भेदभाव दयालु
प्रदेश के आयुष राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. दयाशंकर मिश्र ‘दयालू ने कहा कि आयुर्वेद समेत जिन सात चिकित्सा पद्धतियों को मिलाकर आयुष विभाग का गठन हुआ है, उनमें सभी का महत्व है। केन्द्र और प्रदेश सरकार सभी के समान विकास के लिए सचेष्ट और प्रतिबद्ध है। किसी के साथ भेदभाव नहीं होगा। होम्योपैथी चिकित्सा से जुड़ी वर्षों की विसंगतियों को दूर करने के गंभीर प्रयास चल रहे हैं। इस विधा के डॉक्टरों, मेडिकल कॉलेजों और क्लीनिकों की समस्याएं एक-एक कर दूर की जा रही हैं। ढाई हजार रिक्त पदों पर भर्तियां लोकसेवा आयोग के माध्यम से हुई हैं, अभी लगभग 2100 पदों के लिए आयोग को अधियाचन भेजा गया है। सही है कि ज्यादातर क्लीनिक किराये पर या पंचायत भवनों में चल रही हैं। जैसे जैसे जमीन मिलती जा रही है, सरकार क्लीनिक के साथ अस्पताल भी वहीं बनते जा रहे हैं। हर साल की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया से होम्योपैथ डॉक्टरों को भी जल्द राहत मिलने जा रही है।
क्लीनिक का पंजीकरण पांच साल के लिए हो
केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद के पूर्व सलाहकार डॉ. पीके मुखर्जी ने कहा कि होम्योपैथी क्लीनिकों का पंजीकरण पांच साल के लिए होना चाहिए। आयुष्मान योजना से इस पद्धति को जोड़ना जरूरी है। क्योंकि बड़ी संख्या में गंभीर बीमारियों का उपचार होम्योपैथी में होता है। पश्चिम बंगाल में प्रचलित अवधारणा है कि जिसकी न हो कई गति, उसको संभाले होम्योपैथी। बनारस में 1890 में स्कूल ऑफ होम्योपैथी खुला था। वह 1924 में आर्थिक संकट के कारण बंद हो गया। इस स्कूल को फिर से खोला जाए।
मेडिकल स्टोरों का भी हो रजिस्ट्रेशन
दी होम्योपैथिक मेडिकल एसोसिएशन की प्रदेश इकाई के संयुक्त सचिव डॉ. अम्बरीष कुमार राय ने कहा कि कि होम्योपैथ दवाओं की गुणवत्ता जांच के लिए बनारस में कोई लैब नहीं है। होम्योपैथिक विभाग को अभियान चलाकर शहर के होम्योपैथिक मेडिकल स्टोरों का रजिस्ट्रेशन करना चाहिए। चिकनगुनिया के जब मरीज बढ़ रहे थे तब होम्योपैथिक दवाओं में स्ट्रॉएड मिलकर बेच रहे थे। विभाग के अधिकारियों को इस पर अंकुश लगाना चाहिए।
बिना फार्मासिस्ट चल रहे मेडिकल स्टोर
डॉ. वीके पांडेय ने कहा कि काशी क्षेत्र की होम्योपैथिक फार्मेसी पर दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए रेटिंग सिस्टम होना चाहिए। इससे लोगों का भरोसा बढ़ेगा। हर रोज होम्योपैथी दवा के स्टोर खुल रहे हैं। होम्योपैथी में हर दवा पैक नहीं की जा सकती। दवाओं का डोज तैयार करना पड़ता है। उसकी एक विशेष विधि होती है, जिसकी आम दुकानदारों को जानकारी नहीं होती। ऐसे में दवा की प्रभावशीलता खत्म हो जाती है, बदनाम चिकित्सक होता है
कॉलेज का निर्माण शुरू होने का इंतजार
होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. विजय नारायण सिंह ने याद दिलाया कि बनारस में होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज के लिए 2021 में ही धन स्वीकृत हो गया है लेकिन अभी काम नहीं शुरू हो पाया है। शासन को तत्काल निर्माण शुरू कराना चाहिए। कहा कि एलोपैथ में एक शरीर के इलाज के लिए 25 अलग-अलग डॉक्टर होते हैं जबकि होम्योपैथ में सिर्फ एक डॉक्टर पूरे शरीर का परीक्षण करता है। काशी क्षेत्र में झोलाछाप चिकित्सकों पर लगाम लगनी चाहिए क्योंकि इससे होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति की बदनामी होती है।
कंपनियां बढ़ रहीं, गुणवत्ता नहीं
आइडियल होम्योपैथिक वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जेएन सिंह रघुवंशी ने कहा कि हमारे पास दवाओं की गुणवत्ता बेहतर करना सबसे बड़ी चुनौती है। होम्यौपैथिक दवा बनाने वाली कंपनियां बढ़ रही हैं लेकिन दवाओं की गुणवत्ता गिर रही है। उन्होंने कहा कि जब कंपनी डॉक्टरों को अपने खर्च पर यात्रा कराएगी, उन्हें महंगे उपहार देगी तो गुणवत्ता की अपेक्षा करना बेमानी है। ऐसी गतिविधियों पर रोक लगनी चाहिए।
सरकार से उपेक्षित महसूस करते हैं डॉक्टर
डॉ. आरके यादव ने कहा कि होम्योपैथी विश्व की दूसरे नंबर की सबसे बड़ी पैथी बनकर उभरी है। इसका सबसे बड़ा श्रेय निजी चिकित्सकों को है। उनकी मेहनत की वजह से होम्योपैथी ने हर एक वर्ग के दिलों में जगह बना ली है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि होम्योपैथी सरकारी उपेक्षा का शिकार है, जिसका हम चिकित्सकों को हमेशा मलाल रहा है। वर्तमान केंद्र सरकार थोड़ा ध्यान दे रही है लेकिन वह भी कम है।
प्रस्तुति मोदस्सिर खान
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