Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़वाराणसीHearing will be done on the right to worship Adi Visheshwar and Shringar Gauri

आदि विशेश्वर व शृंगार गौरी की पूजा के अधिकार पर होगी सुनवाई

वाराणसी। निज संवाददाता  सिविल जज सीनियर डिविजन महेंद्र कुमार सिंह की कोर्ट ने श्री आदि विशेश्वर तथा शृंगार गौरी की पूजा के अधिकार की याचिका को मूल वाद के रूप में दर्ज करते हुए सुनवाई शुरू करने...

Newswrap हिन्दुस्तान, वाराणसीThu, 18 March 2021 08:51 PM
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वाराणसी। निज संवाददाता 
सिविल जज सीनियर डिविजन महेंद्र कुमार सिंह की कोर्ट ने श्री आदि विशेश्वर तथा शृंगार गौरी की पूजा के अधिकार की याचिका को मूल वाद के रूप में दर्ज करते हुए सुनवाई शुरू करने का आदेश दिया है। याचिका की पोषणीयता पर अंजुमन इंतजामिया मसाजिद और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से आपत्ति दर्ज कराते हुए इसे खारिज करने की अपील की गयी थी। कोर्ट ने लगातार बहस सुनने के बाद आदेश 18 मार्च तक के लिए सुरक्षित रख लिया था। 
मां शृंगार गौरी, लार्ड विश्वेश्वर और भक्तगणों की तरफ से सुप्रीमकोर्ट के अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने ज्ञानवापी को गिराकर हिन्दू धर्मिक स्थल घोषित करने, पूजा पाठ की अनुमति देने और पक्षकार बनाये गए काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट, जिला प्रशासन, सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद आदि को अवरोध उत्पन्न न करने की अपील की गयी थी। साथ  के अधिवक्ता मदन मोहन यादव ने दलील थी कि संविधान के अनुच्छेद-25 में पूजन, दर्शन हिन्दुओं का मौलिक अधिकार है। भगवान आदि विशेश्वर व भगवती शृंगार गौरी पर से ढांचा हटाकर नए मंदिर निर्माण की अनुमति दी जाए।
उधर, अंजुमन इंतजामिया के अधिवक्ता रईस अहमद ने दलील दी कि याचिका 1991 के पूजा स्थल उपबन्ध विधेयक से बाधित है। श्री विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट की सम्पदा होने के कारण वादीपक्ष ने किस हैसियत से अदालत में याचिका दाखिल की। ज्ञानवापी सेंट्रल वक्फ की सम्पदा होने से 1995 में सेंट्रल वक्फ बोर्ड लखनऊ को ही सुनवाई का अधिकार है। याचिका में यूपी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को भी पक्षकार बनाया गया है और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद वक्फ बोर्ड का ही अंग है। ऐसे में इस याचिका की सुनवाई का अधिकार वक्फ बोर्ड ट्रिब्यूनल लखनऊ को है। इसलिए यह याचिका पोषणीय नहीं है। लिहाजा इसे खारिज किया जाए। 
अदालत ने सभी पक्षों को सुनने व पत्रावली के अवलोकन के बाद कहा कि प्रकरण का मुख्य विवाद पूजा के अधिकार से संबंधित है। जो सिविल अधिकार के अंतर्गत आता है। अदालत ने इसे न्यायचित मानते हुए मूल वाद के रूप में दर्ज करने का आदेश दिया। 

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