Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़वाराणसीEven after 10 years murderers of court blasts are not identified

10 साल बाद भी कचहरी धमाकों के गुनहगारों की पहचान नहीं

कचहरी में 23 नवंबर 2007 को आतंकी घटना खौफनाक मंजर आज भी लोगों के जेहन में गूंज रहा है। इस घटना में अधिवक्ताओं समेत नौ लोगों की मौत हो गई और 50 से अधिक लोग जख्मी हुए थे। गुरुवार को कचहरी धमाके की...

वाराणसी। कार्यालय संवाददाता Thu, 23 Nov 2017 02:35 PM
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कचहरी में 23 नवंबर 2007 को आतंकी घटना खौफनाक मंजर आज भी लोगों के जेहन में गूंज रहा है। इस घटना में अधिवक्ताओं समेत नौ लोगों की मौत हो गई और 50 से अधिक लोग जख्मी हुए थे। गुरुवार को कचहरी धमाके की 10वीं बरसी है। लेकिन इसका सबसे दु:खद पक्ष यह है कि इतने सालों के बाद भी इसके मुल्जिमों का पकड़ा जाना तो दूर उनकी पहचान तक नहीं हो सकी है। हादसे में मृत लोगों के परिजनों और घायलों को मुआवजे तो मिले, लेकिन उनके जख्म अब भी हरे हैं। 

23 नवंबर 2007 को दीवानी और कलेक्ट्रेट में खड़ी साइकिल में रखे टिफिन बम में धमाका हुआ था। इस हादसे में अधिवक्ता भोलानाथ सिंह, ब्रह्मप्रकाश शर्मा, बुद्धिराज पटेल समेत नौ लोग काल के गाल में समा गए। घायल जहां-तहां पड़े रहे। चीख-पुकार के बीच अफरातफरी मची हुई थी। इससे पहले 7 मार्च 2006 को कैंट स्टेशन, संकटमोचन मंदिर में सीरियल धमाके में 28 लोगों की जान गई थी और तीन दर्जन से अधिक लोग घायल हुए थे। इस मामले में इलाहाबाद निवासी वलीउल्लाह पकड़ा गया था। पुलिस वलीउल्लाह को फरवरी 2007 में कचहरी पेशी पर लायी थी। कैंट व संकमोचन विस्फोट कांड से नाराज वकीलों ने वलीउल्लाह को पीटने के लिए दौड़ा लिया था। सुरक्षाकर्मियों ने बड़ी मुश्किल से उसकी जान बचायी थी। इसके बाद ही कचहरी धमाका हुआ। लोगों का मानना था कि वलीउल्लाह की पिटाई से नाराज आंतकियों ने बदला लेने के लिए कचहरी धमाके को अंजाम दिया था। हालांकि जांच एजेंसियां इसे खारिज करती रही हैं। 

आज न्यायिक कार्य से विरत रहेंगे वकील
कचहरी धमाके की बरसी पर सेंट्रल और बनारस बार ने न्यायिक कार्य से विरत रहने का प्रस्ताव पारित किया है। सेंट्रल बार अध्यक्ष अशोक सिंह ‘प्रिंस’ व बनारस बार अध्यक्ष अनिल पांडेय ने बताया कि गुरुवार को अधिवक्ता दोनों घटनास्थलों पर मृतकों को श्रद्धांजलि देंगे। बनारस बार के पूर्व महामंत्री नित्यानंद राय ने कहाकि दस साल बाद भी कचहरी धमाके  के गुनहगार आजाद घूम रहे हैं। घटना के बाद मृत अधिवक्ताओं के परिजनों की हालत जानने शासन या प्रशासन का कोई व्यक्ति नहीं गया। यदि गुनहगारों को सलाखों के पीछे नहीं लाया गया तो कचहरी एक बार फिर बड़े आंदोलन के लिए विवश होगी। 

गर्दिश में हैं दो मृत अधिवक्ताओं का परिवार
कचहरी बम धमाके में शहीद अधिवक्ताओं के परिवार पर मानों बज्रपात हो गया था। मदद के नाम पर शासन से मिली सहायता राशि उनके परिवारों के लिए नाकाफी साबित हुई। पत्नियों के सामने बच्चों के परवरिश की चुनौती थी। कनेरी (राजातालाब) के रहने वाले मृत अधिवक्ता बुद्धराम पटेल की पत्नी संगीता को आज भी गृहस्थी चलाने के लिए मोतियों की माला बनानी पड़ती है। बड़ा बेटा कक्षा 10 और उसकी छोटी बहनें क्रमश: कक्षा 6 और 5 की पढ़ाई कर रही हैं। वहीं बच्छांव के छितौनी गांव के स्व. ब्रह्मप्रकाश शर्मा की बूढ़ी मां फूलकुमारी के आंसू आज भी नहीं सूखे हैं। पत्नी आभा शर्मा आंगनबाड़ी कार्यकत्री हैं। इनकी बेटी की शादी हो चुकी है और बेटा गाजियाबाद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है। अधिवक्ताओं की पत्नियों संगीता और आभा शर्मा कहती हैं कि हमारा घर उजड़ा है। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह गुनहगारों को कड़ी से कड़ी सजा दे। हमें न्याय का अब भी इंतजार है।  

पिता के पेशे में आया बेटा
पहड़िया के रहनेवाले तीसरे शहीद अधिवक्ता स्व. भोलानाथ सिंह का परिवार आज भी न्याय की उम्मीद लगाए हुए हैं। पिता की शहादत के बाद उनके दो बेटे विकांत सिंह व यशवंत सिंह इंजीनियर हैं। जबकि मझले बेटे प्रशांत सिंह ने वकालत का पेशा अपनाया और कचहरी में अपने पिता की चौकी सम्भाल ली है। प्रशांत का कहना है कि आतंकवाद के खिलाफ समूचा अधिवक्ता समाज एकजुट है। जब तक न्याय नहीं मिलता लड़ाई जारी रहेगी। 

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