Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़वाराणसीConcerns Rise Over Employee Welfare in Indian Railways Amidst Digital Shift and Outsourcing

बोले काशी : केंद्रीय विभागों में कार्मिक घटे और सुविधाएं भी

वाराणसी में केंद्रीय कर्मचारियों की संख्या घट रही है, जबकि आउटसोर्सिंग और डिजिटल क्रांति के कारण काम का बोझ बढ़ रहा है। कर्मचारियों को सुविधाओं का अभाव और वेतन में देरी का सामना करना पड़ रहा है।...

Newswrap हिन्दुस्तान, वाराणसीTue, 12 Nov 2024 10:32 PM
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वाराणसी। केन्द्र सरकार के विभागों में कर्मचारियों की संख्या हाल के वर्षों में घटी है। डिजिटल क्रांति या ई-गवर्नेंस के दौर में आउटसोर्सिंग का फार्मूला उन विभागों में भी चल रहा है। इससे पब्लिक को तो लाभ मिल रहा है लेकिन कर्मियों को एक तल्ख एहसास भी हो रहा है कि केन्द्र सरकार आउटसोर्स कर्मचारियों को तवज्जो दे रही है जबकि हमारे साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है, हम कर्मचारी ‘गैरों पे करम-अपनों पे सितम की सोच में मारे जा रहे हैं अन्यथा दिनोंदिन बढ़ रहे वर्कलोड, दफ्तरों में और कार्यस्थलों पर जरूरी सुविधाओं की कमी की ओर सरकार ध्यान क्यों नहीं देती।

केन्द्र सरकार का ‘पब्लिक सेंट्रिक होना कहीं से गलत नहीं है, यह सुराज या सुशासन का बेहतर नमूना है मगर उसे ‘इम्प्लाई सेंट्रिक भी बने रहना चाहिए- यह बात रेल, आयकर और डाक विभागों में कार्यरत कर्मचारियों ने ‘हिन्दुस्तान से कही। ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन से जुड़े सुनील कुमार सिंह, बरेका कर्मचारी परिषद के विवेक सिन्हा हों या केन्द्रीय कर्मचारी यूनियन के पीके दत्ता-इन सभी का कहना है कि वर्कलोड से केन्द्रीय कर्मचारी हमेशा तनाव में रहता है।

केन्द्रीय खादी ग्रामोद्योग जैसे विभागों में 10 वर्षों से बोनस-भत्ते का भुगतान नहीं हुआ। मेडिकल भत्ता के लिए कई माह इंतजार करना पड़ता है। बनारस के दफ्तरों में फर्नीचरों का अभाव है। हर साल कर्मचारी रिटायर भी हो रहे हैं। इससे हाल के वर्षों में उनकी संख्या लगभग 50 फीसदी रह गई है। इस हालात में गुड गवर्नेंस से पब्लिक को पूर्ण संतुष्टि का दबाव कर्मचारियों को तनावग्रस्त बना रहा है।

रेल कॉलोनियों में सफाई क्यों नहीं

वाराणसी स्थित रेल और डाक विभाग जैसे दफ्तरों में बैठने के लिए ठीक-ठाक कुर्सी नहीं है। कर्मचारियों को जर्जर आवास में रहना पड़ रहा है। कर्मचारियों के कमी से 14 घंटे तक काम करना पड़ रहा है। नार्दन रेल मेंस यूनियन के सहायक शाखा सचिव विवेक ने कहा कि स्वच्छता अभियान के तहत स्टेशनों से लेकर कार्यालयों तक सफाई होती है। फोटोग्राफ के साथ ऊपर तक रिपोर्ट जाती है, लेकिन क्या रेल कॉलोनियों में जर्जर सड़कों की मरम्मत और बजबजा रहीं नालियों की सफाई नहीं होनी चाहिए? इस हालत में डेंगू, टाइफायड जैसी संक्रामक बीमारियों से परिवार को बचाने की चिंता बनी रहती है।

50 वर्षों से नहीं बने नए आवास

डीआरएम दफ्तर में कार्यरत एनबी सिंह ने बताया कि वाराणसी में 12 हजार से अधिक रेलकर्मी हैं। पूरे जनपद में किसी केंद्रीय विभाग में सबसे अधिक कर्मचारी रेलवे में ही हैं। उनके लिए सुविधाओं का घोर अभाव है। नये आवास का प्रबंध नहीं है। वे 50 वर्ष पुराने आवासों में रहने को विवश हैं जहां छत टपकती रहती है। शौचालयों और स्नानघरों के दरवाजे टूट चुके हैं। कपड़े के पर्दों से दिनचर्या चल रही है। बरसात में कॉलोनी में घुटने तक पानी भर जाता है। आवासों में भी घुस जाता है। छित्तूपुर लोको कॉलोनी गेट के नं. चार के पास 200 से ज्यादा जर्जर आवासों को तोड़ दिया गया। अब अधिकारी कहते हैं कि फंड की कमी की वजह से टेंडर नहीं निकाला जा रहा है।

आंतरिक परीक्षाएं बंद क्यों

ट्रैकमैन डॉली कुमारी ने बताया कि रेलवे के ग्रुप-डी में 1800 ग्रेड पे वाले कर्मचारी (पीयून, गैंगमैन, खलासी, अनस्किल्ड व सेमी स्किल्ड) का तबादला एक विभाग से दूसरे विभाग अथवा डिविजन में मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) स्तर से होता था। लेकिन 2018 के बाद से तबादला बंद है। रेलवे में आंतरिक परीक्षाएं भी नहीं कराई जा रही हैं, इससे पढ़े-लिखे कर्मचारियों की प्रगति का रास्ता बंद हो गया। वे मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं। कई गैंगमैन और ट्रैकमैन अपनी नौकरी छोड़ दूसरे सेवा में चले गए हैं।

अकुशल से कम्प्यूटर पर काम लेने का दबाव

रेखा बताती हैं कि वर्तमान में रेलवे के सभी अनुभागों में फाइलों का डिजिटलाइजेशन चल रहा है। लेकिन उसके लिए नये कर्मचारियों की तैनाती नहीं की गई। पुराने कर्मचारियों को एक दिन का प्रशिक्षण देकर उन पर कंप्यूटर पर काम करने का दबाव बनाया जाता है।

पालनाघर का लंबा होता इंतजार

रेलवे में कार्यरत चंपा देवी ने बताया कि जिन कार्यस्थलों पर 50 से ज्यादा महिला कर्मचारी तैनात हैं, वहां उनके बच्चों की देखभाल के लिए पालना घर बनाने की काफी पहले घोषणा हुई है। कैंट स्टेशन पर ही 150 से ज्यादा महिला कर्मचारी कार्यरत हैं। इसके बावजूद कैंट सहित जनपद के किसी भी स्टेशन पर पालना घर नहीं बना है। इससे महिलाओं की निजता भंग होती है। वहीं, उनके लिए अलग से शौचालय और रेस्ट रूम भी नहीं हैं।

ट्रैक मैन के लिए शेल्टर तक नहीं

दो से चार ट्रैक वाली रेल लाइन पर तीन से चार किमी और सिंगल लाइन में छह से आठ किमी तक बीट एरिया होता है। इसके साथ ट्रैकमैनों को मंडल के किसी भी हिस्से में काम के लिए भेजा जाता है, लेकिन उनके विश्राम या बैठकर भोजन करने के लिए शेल्टर तक का प्रबंध नहीं है। ट्रैकमैन दिनेश पाल ने बताया-‘साहब! गर्मी के 40 से 45 डिग्री के तापमान में हम पानी के लिए तरस जाते हैं। काम समय पर खत्म करने का दबाव रहता है तो ट्रैक भी छोड़कर नहीं जा सकते। शहरी इलाकों में तो गंदे ट्रैक पर काम करना पड़ता है। फिर भी हमारे स्वास्थ्य सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है। मनोहर ने कहा कि भारी-भारी सामान ढोने में हाथ में छाला पड़ जाता है। हमें ट्रॉली भी नहीं मिलती है।

बरेका में भी कर्मचारी और आवास संकट

कर्मचारी परिषद बरेका के सदस्य नवीन सिन्हा बताते हैं कि बनारस रेल कारखाना भी कर्मचारियों की कमी से अछूता नहीं है। कर्मचारियों की संख्या के सापेक्ष आवास का काफी अभाव है। विशेषकर सी-ग्रेड के कर्मचारियों को बहुत दिक्कत है। अस्पताल में एचआईएमएस लागू हुआ है लेकिन कर्मचारियों की संख्या नहीं बढ़ी। परिसर में सुरक्षा को लेकर कर्मचारी चिंतित रहते हैं। क्योंकि परिसर के चार गेट से आवागमन होता है। उनसे छुट्टा और आवारा पशुओं का भी आवागमन होता है। परिसर में बनी पुलिस चौकी के आसपास भारी वाहनों के जमावड़े से परिसर की सुंदरता खराब हो रही है। साथ ही दुर्घटना का भी अंदेशा बना रहता है।

आयकर कर्मचारियों को वेतन संकट

बनारस के आयकर विभाग में करीब 155 कर्मचारियों को विगत सात-आठ माह से वेतन नहीं मिला है। यह समस्या करीब एक वर्ष पहले से आई है। पहले एक साथ वेतन आता था। अब वेतन और भत्ता दो भाग में बंट गया है। भत्ता आने में काफी देरी होती है-यह कहना है केंद्रीय कर्मचारी समन्वय समिति (आयकर विभाग) के अध्यक्ष गौतम कुमार बरुआ का। उन्होंने बताया कि पहले पूरी सैलरी माह की 30 या 31 तारीख को आ जाती थी लेकिन अब अगले माह में कभी दो, कभी पांच या 10 तारीख तक टल जा रही है। कर्मचारी को स्वास्थ्य भत्ता देने में देर हो रही है। एक से डेढ़ साल तक भुगतान लटका रहता है। अधिकारियों से केवल आश्वासन मिलते हैं। कर्मचारियों की संख्या घट रही है, वह अलग पीड़ा है।

सिमट रहे डाकघर और डाकिया

डाक विभाग आउटसोर्सिंग के कर्मचारियों के भरोसे चल रहा है। विभाग में तकनीक बढ़ी है लेकिन उसके हिसाब से संसाधन नहीं बढ़ाए जा रहे हैं। इंटरनेट नेटवर्क बड़ी समस्या है। ‘बैंक से ज्यादा काम करते हैं, भीषण गर्मी के बीच जनता का काम किया जाता है लेकिन एक कूलर का भी बंदोबस्त नहीं है-यह कहना है भेलूपुर डाकघर में तैनात सुभाष शाह का। गांवों में डाकघर और डाकियों की संख्या सिमटती जा रही है। आधार कार्ड की वजह से ग्रामीण इलाकों में कुछ डाकघर बचे हैं। यदि और काम नहीं मिला तो वे बंद भी हो सकते हैं।

वंदेभारत के संचालन की कोई गाइडलाइन नहीं

ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन और नार्दन रेल मेंस यूनियन के सचिव इं. सुनील कुमार सिंह ने बताया कि वंदेभारत ट्रेन के संचालन और रखरखाव के संबंध में अब तक कोई गाइडलाइन तय नहीं है। वंदेभारत के चक्कर में काशी विश्वनाथ, महानगरी आदि पुरानी ट्रेनों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। कर्मचारियों और सरकार के बीच द्वंद्व बढ़ रहा है। हर वर्ष 500 से ज्यादा रेल कर्मी कार्य के दौरान हादसे के शिकार हो जाते हैं, लेकिन उनकी सुरक्षा पर कोई जोर नहीं है। 1974 के बने कैंट स्टेशन को हेरिटेज के रूप में संरक्षित करने के बजाय आधुनिकता के नाम पर उसका सौंदर्य नष्ट किया जा रहा है।

प्रतिक्रिया...

रेलवे के पार्सल दफ्तर में कम्प्यूटर लगा दिया लेकिन न तो बैठने और न ही एसी की व्यवस्था है। खराब नेटवर्क से भी परेशानी होती है।

अखिलेश पांडेय, कोषाध्यक्ष

कैंट स्टेशन स्थित रिजर्वेशन सेंटर की हालत दयनीय है। 10 वर्ष पूर्व तक 11 से 12 काउंटर थे। अब दो पर सिमट गया है। एक ही सभागार में जनरल टिकट और रिजर्वेशन काउंटर होने से यात्रियों को काफी दिक्कत हो रही है।

-रामधीरज यादव, सहायक शाखा सचिव

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रेल कर्मचारियों को सुविधाएं देने में कंजूसी होती है। 180 रुपये प्रति माह साइकिल भत्ता भी बंद हो गया है।

-योगेंद्र राय, रेल कर्मी

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2014 से आंतरिक परीक्षा नहीं हुई। एलडीसी कोटे से भी भर्ती बंद है। इससे प्रतिभाशाली कर्मचारियों में काफी निराशा है।

-अखिलेश पांडेय, रेल कर्मी

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मेल मोटर सेवा शुरू होने से रेलवे के डाक समय से नहीं पहुंच पा रहे हैं। जबकि डाक ट्रेनों के जरिये डाक समय से पहुंच जाती थी।

-रवि चंद्र, रेल कर्मी

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कंसल्टेंसी कम्पनी के कर्मचारियों से काम कराए जा रहे हैं। इससे कार्य की गुणवत्ता प्रभावित होती है। रेलवे को अपने कर्मियों पर विश्वास करना चाहिए।

-प्रमोद कुमार, रेलकर्मी

समय के साथ तकनीक बदली लेकिन अब भी ट्रैक मैन को भारी मशीन लेकर जाना पड़ता है। इनके परिवहन में काफी दिक्कत होती है।

-बृजेश नागर, रेलकर्मी

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2014 से पेंशन और 2013-14 से बोनस का भुगतान नहीं हुआ। पिछले 15 वर्षों से विभाग में नियुक्ति नहीं रही है।

पीके दत्ता, सहायक सचिव,केंद्रीय कर्मचारी यूनियन-केंद्रीय खादी ग्रामोद्योग

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पांच शिकायतेंः

1. केंद्रीय कर्मचारियों के बैठने के लिए कुर्सी, टेबुल आदि जैसी बुनयिादी सुविधाएं नहीं

2. रेल कर्मचारियों के लिए नया आवास नहीं, उन्हें जर्जर आवास में रहना पड़ रहा

3. गैंग और ट्रैक मैन पदों पर तैनात महिलाओं की रूटीन प्रभावित होती है

4. केंद्रीय खादी ग्रामोद्योग दफ्तर के कर्मचारियों को बोनस और पेंशन नहीं मिल रहा है

5. बरेका परिसर की सुरक्षा में सेंध, पुलिस चौकी पर वाहन डंप करने से सुंदरता प्रभावित हो रही

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पांच सुझावः

1. रेलवे की आंतरिक परीक्षा व्यवस्था तत्काल बहाल हो ताकि प्रतिभाओं को मौका मिले

2. केंद्रीय विभागों में महिला कर्मचारियों के लिए पालन घर औऱ अलग शौचालय आदि की व्यवस्था हो

3. महिलाओं की ड्यूटी गैंग मैन और ट्रैक मैन से हटाकर कार्यालयी कार्य में लगानी चाहिए

4. वंदेभारत जैसी ट्रेनों के साथ ही पुरानी ट्रेनों को हाईटेक बनाते हुए रेलवे को मजबूत किया जाए

5. रेलवे सहित सभी विभागों में सी और डी ग्रेड पदों पर हो कर्मचारियों की भर्ती

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