बोले काशीः संस्कृत का उत्थान तभी जब शिक्षा मंदिरों का हो उद्धार
वाराणसी में संस्कृत शिक्षकों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। सरकारी सहायता की कमी और मानदेय में कमी के कारण शिक्षकों को सम्मानजनक जीवन जीने में कठिनाई हो रही है। शिक्षकों का कहना है कि सरकारी प्रतिनिधि...
वाराणसी। जो भारत के ज्ञान-विज्ञान की प्रथम उद्घोषिका है, जिसके व्याकरण ने जीवन के संस्कार गढ़े हैं, जिसका साहित्य समाज के इंद्रधनुषी रूप का प्रतिबिंब लगे, जिसमें रचे अध्यात्म-ज्योतिष और कर्मकांड के सूत्र दुनिया को चमत्कृत करते हैं, जो सुपर कंप्यूटर के अनुरूप विश्व में एकमात्र वैज्ञानिक भाषा हो, उस संस्कृत के संवाहक शिक्षक और विद्यालय अभावों के रेगिस्तान में सम्मानजनक जिंदगी की तलाश कर रहे हैं। इस नाते देववाणी का गौरव गान मुखर नहीं हो पा रहा है। उनका कहना है कि मंचीय प्रशस्ति गान कर, मंचों से प्रशस्तिपत्र देकर सरकार और शासन के प्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी पूरा हुआ मान लेते हैं।
काशी की विद्वत प्रतिष्ठा को दुनिया में प्रतिष्ठित करने में गुरुकुलों का अमिट योगदान है। उनके आचार्यों ने भारतीय दर्शन (सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत) में दक्ष शिष्यों की लंबी शृंखला तैयार की है। वे अध्येताओं के लिए ‘ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या... का रहस्य जानने का अनुसंधान-पथ प्रशस्त करते रहे हैं। तब हर ओर से निश्चिंत आचार्य और उनके शिष्य ज्ञान-यज्ञ में रम पाते थे। अब ऐसा नहीं है। गुरुकुल संस्कृत के विद्यालय, महाविद्यालय में तब्दील हो चुके हैं। इस बदलाव की विडंबना यह है कि सरकारी नियंत्रण में शिक्षक-आचार्य ज्ञान क्षुधा की जगह पेट की क्षुधा शांत करने की जद्दोजहद में लगे हैं। ‘हिन्दुस्तान के साथ चर्चा के दौरान डॉ. गणेशदत्त शास्त्री की टिप्पणी गौरतलब है- ‘यह जिजीविषा है जो गंभीर समस्याओं के बीच संस्कृत शिक्षकों को हर दिन संबल देती है।
विसंगतियों का मकड़जाल
सुपर कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त मानक भाषा होने के साथ ही संस्कृत की ऋचाओं में विज्ञान के गूढ़ सूत्र छिपे हैं। मगर जमीनी स्तर पर विसंगतियों और दुश्वारियों का मकड़जाल संस्कृत के अपेक्षित विकास में बड़ा बाधक बन रहा है। डॉ. गोविंद मिश्र का कहना है कि सरकार ने संस्कृत पर ध्यान देना शुरू तो किया है मगर अभी देवभाषा को लोकभाषा बनाने के लिए लंबा रास्ता तय करना है। यह रास्ता शिक्षा के मंदिरों से ही गुजरेगा। उनके उद्धार को प्राथमिकता देने से ही संस्कृत और संस्कृति का उत्थान संभव है।
ज्योतिष-कर्मकांड का संबल
उत्तर प्रदेश संस्कृत विद्यालय शिक्षक समिति की मानदेय इकाई के अध्यक्ष डॉ. योगेश चंद्र थुआल और नीरज कुमार पांडेय वर्षों से मानदेय शिक्षकों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अस्थायी शिक्षकों को मानदेय के रूप में मात्र 12 से 15 हजार रुपये मिलते हैं। जबकि उन पर शिक्षण के अलावा दूसरे काम का भी बोझ रहता है। इतने मानदेय में चपरासी का काम करने के लिए भी कोई तैयार नहीं होता। ज्यादातर शिक्षक 12 हजार रुपये में परिवार नहीं चला सकते। उन्हें मजबूरन ज्योतिष, कर्मकांड का सहारा लेना पड़ता है।
टीकमणि संस्कृत महाविद्यालय के अध्यापक डॉ. सुरेश चंद्र उपाध्याय ने कहा कि मानदेय शिक्षकों को लिखित परीक्षा, प्रमाण पत्रों की जांच और साक्षात्कार के बाद संस्कृत विद्यालयों और महाविद्यालयों में अस्थायी नियुक्ति मिली। मानदेय पर ऐसी ही नियुक्तियां अटल आवासीय और कस्तूरबा विद्यालयों में भी हुई। वहां संस्कृत के मानदेय शिक्षकों को 40 से 45 हजार रुपये दिए जाते हैं। उत्तराखंड से आकर शिक्षण कर रहे डॉ. योगेश चंद्र थुआल कहते हैं कि कम मानदेय के साथ हर दूसरे वर्ष सेवा विस्तार की चिंता लगी रहती है। किसी कारणवश सेवा विस्तार न हुआ तो आजीविका का संकट भी खड़ा हो जाता है।
सरकारी विसंगति के शिकार
संस्कृत शिक्षकों के साथ एक बड़ी व्यवस्थागत विडंबना जुड़ी हुई है। संस्कृत विद्यालय और महाविद्यालयों के शिक्षकों की संबद्धता संस्कृत विश्वविद्यालय से है मगर उन्हें 2001 में शुरू हुए माध्यमिक संस्कृत बोर्ड के अंतर्गत ला दिया गया। अब वेतन और मानदेय का सारा कामकाज जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय से होता है जबकि संबद्धता, नियुक्ति आदि से संबंधित प्रक्रिया विश्वविद्यालय से चलाई जाती है। स्नातक और स्नातकोत्तर महाविद्यालयों के प्रशासकीय कार्य भी डीआईओएस कार्यालय से ही होते हैं। हालांकि इन्हें वेतन माध्यमिक शिक्षक का नहीं मिलता। इनका वेतन प्राथमिक विद्यालय स्तर का है।
मृत संवर्ग का दाग
शास्त्रार्थ महाविद्यालय के डॉ. अशोक कुमार पांडेय ने बताया कि शासन से गठित एक आयोग ने वर्षों पहले संस्कृत शिक्षकों को ‘मृत संवर्ग घोषित कर दिया था। यह संस्तुति की गई कि उन्हें भी राजकीय माध्यमिक विद्यालयों के स्तर का वेतन दिया जाए मगर जिला विद्यालय निरीक्षक स्तर से ग्रेड संशोधन नहीं हो सका है। घोषित अवकाश को लेकर भी संस्कृत शिक्षक हमेशा उहापोह में रहते हैं। कभी उन पर विश्वविद्यालय का अवकाश लागू होता है तो कभी माध्यमिक शिक्षा परिषद का।
जिलों के लिए अलग-अलग ग्रेड पे
संस्कृत शिक्षक उमेशचंद्र तिवारी ने एक बड़ी विसंगति की तरफ इशारा किया। संस्कृत शिक्षकों को जिलों में अलग-अलग ग्रेड पे दिया जा रहा है। उन्होंने वाराणसी और जौनपुर का उदाहरण दिया। जौनपुर में संस्कृत शिक्षकों का ग्रेड पे 4800 रुपये है जबकि वाराणसी में शिक्षक के लिए 4200 और प्रधानाचार्य, प्राचार्य के लिए 4600 की ग्रेड पे ही तय है। कुछ शिक्षकों ने ग्रेड पे की समानता के लिए प्रयास किए तो उनसे सुविधा शुल्क की मांग की गई।
याद दिलाया संकल्प पत्र
संस्कृत शिक्षक समिति के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. रवि कुमार मिश्र बताते हैं कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में संस्कृत शिक्षकों के नियमितीकरण, समान वेतन सहित कई समस्याओं को शामिल किया था। तब उम्मीद जगी थी कि सरकार उनका भला करेगी। मगर प्रदेश सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
एक को चार का प्रभार
रामानुज संस्कृत महाविद्यालय के डॉ. अभिषेक पाठक के अनुसार संस्कृत शिक्षण से जुड़ी संस्थाओं में सबसे बड़ी चुनौती रिक्त पदों की है। वर्षों से वहां नई भर्तियां नहीं हुई हैं। पुराने लोग रिटायर हो रहे हैं। इसके चलते बीते वर्षों में प्रदेश भर के सैकड़ों संस्कृत विद्यालय और महाविद्यालय बंद हो चुके हैं। कहीं एक-एक शिक्षक को चार-चार विद्यालयों का प्रभारी बनाया गया है।
समान कार्य के लिए मिले समान वेतन
फोटो-डॉ. गणेश शास्त्री
राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित, शास्त्रार्थ महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. गणेश दत्त शास्त्री ने कहा कि संस्कृत विद्यालयों में कंप्यूटर पिछले दो वर्ष से अनिवार्य विषय है मगर प्रदेश के किसी संस्कृत विद्यालय में न तो कंप्यूटर शिक्षक हैं, न ही अब तक किसी विद्यालय को कोर्स मिला है। शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू करने के साथ ‘समान कार्य के लिए समान वेतन समस्याओं का सबसे बड़ा निदान है। उन्होंने कहा कि संस्कृत विद्यालयों की जर्जर हालत सुधारने को सरकार ठोस कदम नहीं उठा रही। कई जगह लिपिक-परिचारक भी नहीं हैं। उनका काम ये शिक्षक करते हैं। शास्त्रीजी ने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती संस्कृत शिक्षकों को मानसिक रूप से मजबूत रखने की है।
शिकायतें
1. सरकार से संस्कृत छात्रों की छात्रवृत्ति बढ़ाई मगर यह नाकाफी है। इससे दो दिन की खुराकी नहीं जुटा पाएंगे।
2. मानदेय शिक्षकों की नियुक्ति व्यवस्था आधुनिक विषयों के लिए थी जबकि संस्कृत शिक्षण के लिए भी मानदेय शिक्षक रखे गए।
3. अस्थायी शिक्षकों का मानदेय राजकीय माध्यमिक, अटल आवासीय और कस्तूरबा विद्यालयों के भी बराबर नहीं है।
4. बनारस समेत पूरे प्रदेश के संस्कृत विद्यालयों में दो वर्षों से एक भी कंप्यूटर शिक्षक की तैनाती नहीं हुई है। कंप्यूटर अनिवार्य जरूर बना दिया गया।
5. शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया ठप पड़ने से कई विद्यालय बंद हो गए, कई बंदी की ओर से जा रहे हैं।
सुझाव
1. संस्कृत छात्रों की छात्रवृत्ति न्यूनतम एक हजार रुपये की जाए। आचार्य स्तर पर यह ढाई से तीन हजार रुपये तक हो।
2. मानदेय शिक्षकों का चयन पूरी प्रक्रिया के बाद हुआ है। रिक्त पदों पर उनका समायोजित होना चाहिए।
3. संस्कृत विद्यालयों में आधुनिक शिक्षण के मानदेय शिक्षक रखे जाएं, उनका कोर्स भी उपलब्ध हो।
4. गणित, विज्ञान, खेल आदि विषयों की तरह संस्कृत शिक्षकों का भी समान वेतनमान हो।
5. हर जिले में कम से कम दो कंप्यूटर शिक्षकों की तैनाती की जाए। माध्यमिक शिक्षा परिषद में संस्कृत के लिए अलग कार्यालय और अधिकारियों की तैनाती हो।
बोले शिक्षक
संस्कृत शिक्षण संस्थानों में अस्थायी शिक्षकों को स्थायी किया जाए। समान कार्य के लिए समान वेतन मिले।
-डॉ. सुरेश चंद्र उपाध्याय
मानदेय शिक्षकों के सामने भविष्य की चिंताएं मुंह बाए खड़ी रहती हैं। उन्हें दूर किए बिना संस्कृत का उत्थान असंभव है।
-डॉ. योगेश चंद्र थुआल
संस्कृत को मुख्यधारा में लाने के लिए संस्कृत शिक्षकों को भी मुख्यधारा में जोड़ना होगा। वे भ्रष्टाचार और स्थानीय राजनीति से भी जूझते हैं।
नीरज कुमार पांडेय
संस्कृत में रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे। देश की बड़ी संस्थाओं, कंपनियों और शिक्षण संस्थानों को भी संस्कृत से जोड़ना होगा।
डॉ. गोविंद कुमार मिश्रा
शिक्षक ही नहीं होंगे तो संस्कृत छात्रों की अगली पीढ़ी तैयार नहीं हो सकेगी। जिले में एक शिक्षक के पास चार-चार संस्कृत विद्यालय का प्रभार है।
डॉ. अभिषेक पाठक
संस्कृत शिक्षकों के कैडर और वेतन की विसंगतियां जल्द दूर होनी चाहिए। अब तक आश्वासन ही मिले हैं।
डॉ. अशोक कुमार पांडेय
वर्तमान प्रदेश सरकार का यह दूसरा कार्यकाल है मगर संस्कृत शिक्षकों के लिए कोई ठोस योजना नहीं आ सकी है।
डॉ. रवि कुमार मिश्रा
प्रोजक्ट अलंकार में काशी गुरुकुल के लिए सरकार से दो वर्ष से धन मांगा जा रहा है। शासन से सहयोग नहीं मिल रहा है।
प्रशांत कुमार मौर्य
संस्कृत संस्थाओं के लिए भवन और अध्यापन की समुचित व्यवस्था हो जाए तो छात्र संख्या बढ़ते देर नहीं लगेगी।
सतीश कुमार तिवारी
बड़े ट्रस्ट और धर्मादा संस्थाओं को सहयोग और मार्गदर्शन मिले तो देवभाषा का उत्थान निश्चित है।
अनिल कुमार राय
संस्कृत को शीर्ष पर स्थापित करने से पहले समानता के स्तर पर लाना जरूरी है। जिलों में ही शिक्षकों का वेतनमान अलग-अलग है।
डॉ. उमेश चंद्र तिवारी
संस्कृत के उत्थान के लिए उसे कंप्यूटर, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान से जोड़ना होगा। संस्कृत में वैज्ञानिकता भी जुड़ी हुई है।
अशेष नारायण
अधिकार क्षेत्र के विवाद आदि को लेकर मुकदमों के चलते संस्कृत विद्यालयों की हालत खराब है। यह स्थिति बदलना होगी।
डॉ. लक्ष्मी नारायण
संस्कृत के उत्थान के लिए नए शिक्षकों की भर्ती, उनका उत्साहवर्धन और छात्रों का प्रोत्साहन बेहद जरूरी है।
डॉ. गणेश दत्त शास्त्री
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