बोले काशीः कच्चा माल न सुविधा, पीतल कारोबार की दुविधा बढ़ी
वाराणसी में कसेरा समाज के पीतल बर्तन निर्माताओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। कच्चे माल की महंगाई, ऋण प्राप्त करने में कठिनाई, और सरकारी सहायता की कमी से कारोबारी परेशान हैं। इसके अलावा,...
वाराणसी। अयोध्या में रामलला के मंदिर के पट, नेपाल के पशुपतिनाथ समेत प्रदेश और देशभर के मंदिरों के लिए घंटे बनने हों, पूजन-अर्चन के पात्र सजने हों तो काशी का कसेरा समाज याद किया जाता है। पीतल के पात्र बनाने वाला यह समाज कारोबारी दुश्वारियों से दो चार है। कच्चा माल आसानी से नहीं मिल रहा, मिलता भी है तो ऊंची कीमतों पर। संसाधनों की कमी के बीच सरकारी इमदाद मिलती नहीं, मदद भी दुर्लभ हो गई है। चुनौतियों के बीच अब पहचान का भी संकट बढ़ रहा है। काशी में पीतल के बर्तन बनाने का उद्यम दशकों पुराना है। इस उद्यम को कसेरा समाज ने देश-दुनिया में चमका रखा है। समाज के बुजुर्ग गर्व के साथ यह बताना नहीं भूलते कि यहां के शिल्पियों ने सम्राट चंद्रगुप्त के मंत्रियों को भी पात्र शिल्प का प्रशिक्षण दिया था। उनकी उपलब्धियों में नवीन कड़ी रामलला के मंदिर से जुड़ी है। वहां लगे पीतल के दरवाजे काशी के काशीपुरा में बने हैं। काशी विश्वनाथ धाम और वैष्णो देवी मंदिर में भी कसेरा समाज के शिल्प की चमक देखी जा सकती है। काशीपुरा के अलावा ठठेरी बाजार, बड़ी पियरी और छोटी पियरी में समाज के शिल्पियों के आवास एवं कारखाने हैं। उनकी सबसे अधिक बसावट काशीपुरा में है। यहां लगभग 800 परिवारों के तकरीबन चार हजार लोग पीतल के किसी न किसी बर्तन, पात्र बनाने के परंपरागत पेशे से जुड़े हैं। इसी मोहल्ले के एक आवास में जुटे शिल्पियों ने ‘हिन्दुस्तान से कारोबारी दिक्कतों की चर्चा की।
कसेरा समाज के सामने इन दिनों सबसे बड़ी चुनौती कच्चे माल की उपलब्धता की है। पीतल निर्माण के लिए जरूरी जिंक और तांबा के दाम लगातार चढ़ रहे हैं। इनकी स्थानीय स्तर पर उपलब्धता के लिए हस्तशिल्प विभाग कभी पहल नहीं करता। कई पीढ़ियों से पीतल के बर्तन बनाने वाले परिवार के अशोक कसेरा ने कहा कि काशी विश्वनाथ धाम बनने के बाद हर क्षेत्र में अनुकूलता दिख रही है। पर्यटन और तीर्थाटन बूम कर रहा है। इस माहौल का जो लाभ हम पीतल बर्तन के व्यवसायियों को मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा।
पांच वर्षों में कच्चा माल महंगा
पीतल बर्तनों के पुराने व्यापारी घनश्याम दास ने बताया कि पिछले पांच वर्षों में कच्चे माल की कीमतों में 25-30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। बाहर से सामान मंगाने में लागत बढ़ जाती है, लाभ नहीं बढ़ता है। कारोबारियों का कहना है कि सरकार व्यवसाय और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है, लेकिन पीतल कारोबारियों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।
मुद्रा लोन के लिए चक्कर
कारोबारी अनिल कसेरा ने बताया कि मुद्रा योजना के तहत हम पीतल कारोबारियों को आसानी से लोन नहीं मिलता है। 50 हजार रुपयों से ज्यादा लोन के लिए बैंक ऐसे कागजात मांगते हैं जिन्हें देना आसान नहीं होता है। उन्होंने कहा, पीतल कारोबारियों की इतनी आय नहीं होती है कि इनकम टैक्स रिटर्न भरा जाए। इस वजह से टर्नओवर नहीं बता पाते हैं जबकि बैंक टर्न ओवर का ब्योरा मांगते हैं। जीएसटी में पंजीकृत न होने के बाद भी बैंकों की ओर से पंजीकरण संख्या और बिल की मांग की जाती है। कई बार चक्कर लगाने के बाद भी लोन नहीं मिलता है।
कोयला डिपो की मांग पुरानी
पीतल कारोबार के लिए कोयला बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन बनारस में इसका कोई डिपो नहीं है। इसे महंगे दाम पर खरीदना पड़ता है। विवेक कुमार ने बताया कि लगभग 10 साल पहले कोयले की कीमत 10-15 रुपये किलो थी। आज 70 रुपये किलो हो चुकी है। बढ़ते दाम को देखते हुए पीतल बर्तन के व्यापारी लंबे समय से बनारस में कोयला डिपो की मांग कर रहे हैं।
वायदा कारोबार का प्रतिकूल असर
वायदा कारोबार ने पीतल बर्तन के व्यापारियों की कमर तोड़ दी है। हर दिन बाजार में उतार-चढ़ाव का प्रतिकूल असर हो रहा है। केदारनाथ ने उदाहरण दिया कि व्यापारी ने आज 100 रुपये की दर से ऑर्डर दिया और एडवांस पैसे भी जमा कर दिए। वह दो दिन बाद सामान खरीदने आया तो कीमत 120 रुपये हो चुकी होती है। तब विक्रेता को घाटा झेलना पड़ता है। यह एक दिन नहीं बल्कि हर दिन का अनुभव है। पीतल बर्तन निर्माताओं का कहना है कि वायदा कारोबार से हमारा 50 फीसदी व्यापार प्रभावित हुआ है। केंद्र और प्रदेश सरकार को इसका विकल्प निकालना चाहिए।
मानते हैं हस्तशिल्प, लाभ एक नहीं
कसेरा समाज के लोगों का कहना है कि हमारा काम भी हस्तशिल्प का है। मगर हस्तशिल्पियों को जो लाभ मिलता है, उससे हमें अनदेखा किया जाता है। अशोक कसेरा ने बताया कि बुनकरों को फ्लैट रेट पर बिजली मिलती है जबकि हमें कॉर्मशियल रेट पर बिल का भुगतान करना पड़ता है। हमारा काम हाथ से होता है। बिजली से कोई काम नहीं किया जाता है।
कारीगर पहचान के हैं मोहताज
पीतल के कारीगरों का कहना है कि हम कितना भी अच्छा काम कर दें लेकिन हमारी पहचान नहीं होती है। सोनू कसेरा ने बताया कि अयोध्या के श्रीराम मंदिर का दरवाजा हमने बनाया लेकिन उससे हमें कोई पहचान नहीं मिली। मंदिर निर्माण से जुड़े दूसरे कारीगरों को पहचान मिली, उनका सम्मान हुआ। सम्मान से पहचान बनती है, कारीगरों का आत्मविश्वास बढ़ता है। इससे केसरा समाज के कारीगर वंचित हैं।
जर्जर सड़क बन रही बाधा
काशीपुरा की तरफ जानेवाली सड़कें खस्ताहाल हैं। लोहटिया से काशीपुरा मार्ग जर्जर है। कई बार शिकायत के बाद भी समाधान नहीं हो रहा है। कारोबारी विजय ने बताया कि दो साल पहले सड़क बनी थी। सड़क खराब होने से आम जनता के साथ कारोबारियों को भी परेशानी होती है। माल लेकर अंदर आते समय कई बार वाहनों के पलटने का डर रहता है।
इवेंट के समय याद करता है विभाग
पीतल बर्तन के कारोबारी अर्जुन प्रसाद ने बताया कि साल में एक-दो बार सरकारी स्तर पर इवेंट होता है, तभी हमें अपने सामान दिखाने का मौका मिलता है। उसमें भी प्रदर्शनी या विभाग के किसी आयोजन में गिने-चुने लोगों को मौका दिया जाता है। ऐसा नहीं होना चाहिए।
जिंक, तांबा से बनता है पीतल
पीतल तांबे और जिंक या जस्ता को मिलाकर बनाया जाता है। मूल पीतल में 33 प्रतिशत जस्ता और 67 प्रतिशत तांबा होता है, लेकिन ये स्तर पीतल के विभिन्न उपयोग एवं अनुप्रयोग के लिए भिन्न हो सकते हैं। कभी-कभी मशीनीकरण में सुधार के लिए सीसा मिलाया जाता है।
सीरिया के लोग 3000 ईसा पूर्व से ही तांबे को टिन के साथ मिलाकर कांसा बनाने का तरीका जानते थे। लगभग 20 ईसा पूर्व के बाद भूमध्य सागर के आसपास के धातुकर्मी जस्ता और टिन अयस्कों के बीच अंतर बताने में सक्षम हो गए। उन्होंने जस्ता को तांबे के साथ मिश्रित करके सिक्के और अन्य घरेलू सामान बनाने शुरू कर दिए थे। जर्मन वैज्ञानिक एंड्रियास सिगिस्मंड मार्ग्राफ ने 1746 में जिंक के गुणों का निर्धारण किया। इसके बाद तांबे और जस्ता को मिलाने की प्रक्रिया बनाई गई और 1781 में पीतल को औपचारिक रूप से इंग्लैंड में पेटेंट कराया गया।
इन्फो
-06 पीढ़ी पुराना है पीतल बर्तन का कारोबार
-800 परिवारों के लगभग चार हजार लोग पीतल कारोबार से जुड़े हैं
-04 स्थानों काशीपुरा, ठठेरी बाजार, बड़ी पियरी और छोटी पियरी में निवास करता है कसेरा समाज
कोट
बाजार दर पर तांबा महंगा पड़ता है। सरकार को उचित कीमत पर उपलब्ध कराना चाहिए।
घनश्याम दास
कच्चे माल की लागत बढ़ी, लेकिन उत्पाद के दाम नहीं बढ़े और बोझ भी बढ़ता गया।
विशाल कसेरा
वायदा कारोबार से जिंक, तांबा बाहर होने चाहिए। इससे लाभ कम होता है।
विजय कसेरा
बैंक से मुद्रा योजना में एक लाख ऋण लेना बहुत कठिन है। इससे पूंजी का संकट होता है।
अनिल कसेरा
सरकारी दर पर कोयला नहीं मिलता। बनारस में कच्चे माल का डिपो होना चाहिए।
विनोद कसेरा
देशभर के मंदिरों में हमारे बनाए घंटे, नक्काशी वाली आकृतियां जाती हैं लेकिन कहीं भी हमारा नाम नहीं होता।
सोनू कसेरा
बैंक से कम ब्याज पर ऋण मिलना चाहिए। ऋण प्रक्रिया आसान होनी चाहिए।
केदारनाथ कसेरा
हम भी शिल्पी हैं, हस्तशिल्प विभाग से पंजीकृत हैं लेकिन लाभ कुछ भी नहीं है।
राजेश कसेरा
एक तो बिजली की कामर्शियल दर, दूसरे स्मार्ट मीटरों ने हमें परेशान कर रखा है।
विवेक कुमार
सरकारी योजनाओं का लाभ हम शिल्पियों को भी मिले तो हमारा काम आसान हो।
शंकरलाल
शिकायत
- कच्चे माल की कीमत ज्यादा होने से लागत बढ़ जाती है। कीमत में अस्थिरता के कारण समस्या होती है।
- वायदा कारोबार में शामिल होने के कारण जिंक, तांबा की कीमतों में उतार चढ़ाव रहता है।
- बिजली के बिल से भी लागत बढ़ी है। हम शिल्पी हैं लेकिन बुनकरों की तरह फ्लैट रेट पर बिजली नहीं मिलती है।
- बैंकों से आसानी से ऋण नहीं मिलता है। इतने ज्यादा दस्तावेज मांगे जाते हैं कि निराशा ही हाथ लगती है।
- काशीपुरा में सड़क बदहाल है। आवाजाही में दिक्कत होती है। कई साल से वह नहीं बनाई गई है।
सुझाव
- कच्चे माल का डिपो बनारस में बनना चाहिए। कोयला, तांबा वहां उचित कीमत में उपलब्ध होना चाहिए।
- तांबा, जिंक को वायदा कारोबार से बाहर करने की सख्त जरूरत है। ऐसा नहीं हुआ तो पीतल से जुड़े शिल्प का भविष्य अंधेरे में होना तय है।
- बुनकरों की तरह शिल्पियों को भी फ्लैट रेट पर बिजली मिलनी चाहिए। इससे लागत कम होगी और प्रोत्साहन मिलेगा।
- बैंकों से आसान शर्तों, कम ब्याज पर ऋण मुहैया कराया जाए। लीड बैंक को एक हेल्पलाइन नंबर जारी करना चाहिए।
- नगर निगम को सड़कों की समय-समय पर मरम्मत करानी चाहिए। पीतल कारोबारी भी गृहकर देते हैं।
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