बोले काशी : गुजराती समाज: एलपीजी के ‘असुरक्षित गोदामों से बढ़े असुरक्षा के भाव
Varanasi News - वाराणसी में गुजराती समाज को रोजगार की कमी, सुरक्षा की चिंता और पलायन की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। पक्का महाल क्षेत्र में बढ़ती भीड़ और अव्यवस्थित विकास ने स्थानीय निवासियों की जिंदगी मुश्किल...
वाराणसी। काशी ‘लघु भारत का आकर्षक गुच्छ जिन खूबसूरत पुष्पों से बना है, उनमें गुजराती समाज भी है। संस्कारी चाल-चरित्र और सौम्य चेहरों के नाते जो पक्का महाल के ‘वैष्णवजन कहे जाते रहे हैं, वे लोग आज पाबंदी और पलायन के दर्द से घिरे हैं। गलियों में सहज आवागमन में उन्हें पाबंदी महसूस होती है। रोजगार की तलाश में समाज के युवाओं के पलायन से वे एकाकी हो चले हैं। फिर, गलियों में खानपान की बढ़ती दुकानों पर एलपीजी सिलेंडरों की मौजूदगी असुरक्षा का भाव भी गहरी कर रही है। इसलिए वे अपने बीच, एक-दूसरे से पूछते हैं-‘केम छो?। भक्ति और व्यापार के सिलसिले में गुजराती समाज का काशी से लगभग छह सौ वर्ष पहले अपनापा जुड़ा। काल प्रवाह के साथ वह सघन होता गया। पुरातन काशी का प्रतिनिधि मुहल्ला-पक्का महाल-पहले उनका ठौर-ठिकाना, फिर बाद में रिहाइश बन गया। काशी विश्वनाथ धाम से लेकर कालभैरव मंदिर के बीच के मोहल्लों के वे खांटी बाशिंदे हैं। कालजयी संत कवि नरसी मेहता का सुप्रसिद्ध पद- ‘वैष्णवजन तो तेने कहिए... का एक-एक मुखड़ा सुनिए और काशी के परंपरागत गुजराती परिवारों को देखिए, कोई पंक्ति अप्रासंगिक नहीं लगेगी। ‘वाच, काछ मन निश्छल राखे (वाणी, कर्म और मन से निश्छल) के भाव संजोने वाला गुजराती समाज अपनी नई पीढ़ी के शहर से पलायन का दर्द झेल रहा है तो दूसरी तरफ सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र की अड़चनों ने उनकी चिंता बढ़ा दी है। उसकी सबसे बड़ी चिंता अपनी सुरक्षा की है। समाज के मानिंद कहते हैं कि दो दर्जन से अधिक मिठाई की दुकानों के कारखानों के चलते उनकी रिहाइश का इलाका ‘एलपीजी का असुरक्षित गोदाम बन गया है। वल्लभ युवक परिषद के अध्यक्ष लोकेश गुप्ता ने कहा- विश्वनाथ कॉरिडोर बनने से जितनी खुशी हुई, उससे कहीं अधिक समस्या कालभैरव मंदिर क्षेत्र की प्लानिंग के अभाव से हो रही है। दर्शनार्थियों की अत्यधिक भीड़ के कारण स्थानीय लोगों का घरों से निकलना मुश्किल हो गया है। इमरजेंसी में बहुत ही विकट स्थिति हो जाती है। कभी रामघाट अस्पताल ट्रामा सेंटर जैसी सुविधाएं देता था। उसके बंद होने के बाद कई लोगों की सांसें इसलिए थम गईं क्योंकि वे समय से अस्पताल नहीं ले जाए जा सके।
प्रवासी बन रहे युवा, मां-बाप पर दबाव
लोगों को दुकानें और घर शिफ्ट करने पड़ रहे हैं। बहुत से लोगों ने अपने बच्चों को नौकरी में डाल दिया है। उनका साफ कहना है कि काशी में व्यापार करना ही नहीं है। ऐसे में लगता है कि आने वाले दिनों में गुजरातियों के घर वृद्धाश्रम बन जाएंगे। नई पीढ़ी नौकरी की तलाश में पुणे, बंगलुरु, गुड़गांव, हैदराबाद की ओर पलायन कर रही है। बहुत से युवा विदेश जाकर बस गए हैं। बच्चे अब अपने माता-पिता को भी अपने पास आने के लिए दबाव बना रहे हैं।
लागू हो पुराना फायर फाइटिंग सिस्टम
आलोक पारिख ने बताया कि 40 साल पहले गोलघर के पास एक मकान में आग लगी थी। उस मकान तक फायर ब्रिगेड की पाइप पहुंचाने में दो घंटे लग गए। यह मेनरोड से सटे इलाके की बात है। किसी जमाने में पक्के महाल में फायर फाइटिंग के लिए कॉपर की पूरी पाइप लाइन थी। चौक थाने के पीछे लगे ट्यूबवेल से उसे पानी मिलता था। वहां से वह लाइन पक्के महाल के एक-एक मोहल्ले में गई थी। जगह-जगह उसकी टोटियां निकली थीं। वह पाइप लाइन किन रास्तों से गुजरी थी, कहां टोटियां निकाली गई थीं, इसका एक नक्शा चौके थाने में था। उसके पीछे उद्देश्य यह था कि पक्का महाल में कहीं अगलगी की घटना हो जाए तो वहां पानी की तत्काल व्यवस्था हो सके। लेकिन गलियों को नए सिरे से बनाने के चक्कर में उसका ध्यान नहीं रखा गया। कॉपर की वह लाइन अब ध्वस्त हो चुकी है। उन्होंने कहा कि पक्का महाल कमर्शियल के धार्मिक क्षेत्र है। रिहायशी इलाका भी है। अब टूरिस्ट प्लेस हो चला है। ऐसी एरिया में न तो फायर फाइटिंग मैनेजमेंट है और न ही मेडिकल इमरजेंसी के लिए कोई व्यवस्था।
पक्के महाल में घुट रहा दम
वल्लभ युवक परिषद के अध्यक्ष लोकेश गुप्त ने बताया कि गुजराती समाज ने काशी में सनातनी संस्कारों के कई स्वर्णिम अध्याय लिखे हैं। उस समाज का पक्के महाल में दम घुट रहा है। इसके अनेक कारण हैं। मजबूरी में शहर के चारों ओर फैल रहा है। गुजराती समाज में 16 जातियां हैं। इनकी आबादी 60 हजार से अधिक है। उन्होंने बताया कि समाज के लोग शहर के रथयात्रा, जवाहरनगर कॉलोनी, सिगरा, रामकटोरा आदि हिस्सों में फैल चुके हैं। 92 से 94 तक बनारस में लगातार कर्फ्यू लगा। एक मात्र पक्का महाल ही था जहां कर्फ्यू का असर नहीं होता था। पुलिस वाले भी आते थे, चाय नाश्ता करके चले जाते थे। यह इलाका सेफ होता था। अब ऐसा नहीं है। गैर समुदाय के लोगों की भीड़ बहुत ज्यादा बढ़ गई है। इधर प्रशासन को ध्यान देना चाहिए।
भीड़ प्रबंधन है जरूरी
मयूर गुजराती ने कालभैरव मंदिर आने वाली भीड़ से हो रही दिक्कतों की ओर ध्यान खींचा। समस्या सिर्फ स्थानीय लोगों की नहीं, यात्रियों की भी है। बोले, मैं लगातार 25 साल से काल भैरव का नेमी दर्शनार्थी हूं लेकिन अब भीड़ देखकर सहम जाता हूं। सुविधा शुल्क देकर मंदिर में दर्शन कराने वालों का एक गिरोह सक्रिय है। इससे बनारस की छवि खराब हो रही है। वहां आपदा प्रबंधन की व्यवस्था नहीं है। माधव राव धरहरा पर बहुत अधिक जुटान होने लगी है। शुक्रवार को भी भारी भीड़ दिखती है।
मिठाई कारखानों में फायर सेफ्टी नहीं
सूत टोला निवासी संदीप पंड्या ने ध्यान दिलाया कि बनारसी खानपान का स्वाद लेने के लिए बड़ी संख्या में यात्री पक्के महाल की गलियों में आ रहे हैं। दो दर्जन से अधिक ऐसी दुकानें हैं जहां जबरदस्त भीड़ होती है। उन दुकानों के कारखाने भी पक्के महाल में ही हैं। बावजूद इसके फायर सेफ्टी का कोई इंतजाम नहीं है। मिठाई दुकानों के कारखानों को हटाने की जगह यदि उनमें सुरक्षा मानकों को ही सुनिश्चित करा दिया जाए तो गुजराती समाज के लोगों को बहुत राहत हो जाएगी। किसी दिन यदि घटना हुई तो उसे नियंत्रित करते करते बड़ी संख्या में लोग चपेट में आ चुके होंगे।
रोजगार के अभाव में टूट रहे परिवार
अनिल कुमार पारिख के मुताबकि कभी बनारस का दो ही मुख्य व्यवसाय था- बनारसी साड़ी और कालीन। बुनकरी की हालत क्या है, सभी जानते हैं। ऐसे में पर्यटन ने बनारस की अर्थव्यवस्था को संभाल लिया है। बनारस की सबसे बड़ी यूएसपी संयुक्त परिवार थी जो अब टूट रही है। हमें उम्मीद थी कि कम से कम एक टेकपार्क बनारस को मिलेगा ताकि हमारे समाज के पढ़े लिखे बच्चों को अपने शहर में ही रोजगार मिल जाएगा लेकिन वे दूसरे शहरों की ओर पलायन के लिए मजबूर हैं। उनका पलायन रुके और उन्हें अपने शहर में अपनी योग्यता के अनुसार काम मिले।
विद्यालयों के बंद होने की नौबत
गुजरात विद्या मंदिर के प्रबंधक शरद पोडवाल कहते हैं कि समाज के भैरवनाथ क्षेत्र में दो विद्यालय संचालित हैं-गुजरात विद्या मंदिर और वल्लभ विद्यापीठ है लेकिन यहां तक विद्यार्थियों की पहुंच कठिन होती जा रही है। वाहनों पर प्रतिबंध के कारण अभिभावक बच्चों को लेने के लिए विद्यालय तक नहीं आ पा रहे हैं। यात्रियों की भीड़ के कारण बच्चे, शिक्षक और अभिभावक-तीनों ही परेशान है। इन दोनों ही विद्यालयों में बच्चों की संख्या तेजी से कम होती जा रही है। उनके बंद होने की नौबत आ गई है।
बोले पार्षद
होटल न बने रामघाट अस्पताल
कालभैरव वार्ड के पार्षद संजय कुमार गुजराती ने कहा कि कालभैरव मंदिर क्षेत्र में स्थानीय लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए मैंने अपनी तरफ से काफी प्रयास किए हैं लेकिन जब तक प्रशासन कोई ठोस योजना तैयार नहीं करता, पूर्ण समाधान नहीं हो सकता है। जन स्वास्थ्य की दृष्टि से रामघाट अस्पताल को पुन: चालू करने के विषय में प्रशासन को विचार करना चाहिए। वहां होटल बनाने की तैयारी है। मेरी दृष्टि में वहां होटल की जरूरत ही नहीं है। वह अस्पताल ही रहे तो पक्के महाल के लोगों के लिए बहुत उपयोगी होगा।
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मन की गुबार
पहले ठठेरी बाजार में सुबह लोगों को जाने-आने में परेशानी नहीं होती थी। वैसी स्थिति अब नहीं रही।
-अश्विनी गुजराती
पहले की तरह पक्का महाल अब सुरक्षित नहीं रहा। हाल के दिनों में बाइक चोरी की भी घटनाएं बढ़ गई हैं।
-विजय नागर
अब मैदागिन से गोदौलिया तक नो व्हैकिल जोन हो गया तो पक्के महाल के लोग आना जाना कैसे करेंगे।
-दीपक गुजराती
कॉरिडोर बनने के बाद ब्रह्मनाल के लोगों को आपात स्थिति में कोई सुविधा मिल पाना मुश्किल हो गया है।
- महेश सोनी
पलायन होने के कारण बनारस में गुजरातियों की अगली पीढ़ी अपना वह रुतबा नहीं दिखा सकेगी जो पिछली पीढ़ियों ने दिखाया है।
-जितेन्द्र कुमार
सांस्कृतिक प्रदूषण से गुजराती समाज अब तक तो बचा है। यहां से नई पीढ़ी का पलायन नहीं रोका गया तो आने वाला समय बहुत दुखदायी होगा।
-प्रदीप गुजराती
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सुझाव
-पक्के महाल में आपात स्थिति से बचाव की समुचित व्यवस्था की जाए। यह स्थानीय लोगों के साथ यात्रियों के लिए भी जरूरी है।
-पक्के महाल में अग्निकांड से बचाव के लिए आजादी के बाद लगी कई कॉपर की पाइप लाइन को दुरुस्त किया जाए। यह बहुत ही आवश्यक है।
-कालभैरव मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए जो कतार लगाई जाती है, उसे गलियों की बजाय सड़क की ओर मोड़ना चाहिए। यह कदम सबसे पहले उठाया जाए।
-ठठेरी बाजार से चौखंभा के बीच खानपान के दुकानदारों को बेहतर सफाई के लिए प्रेरित किया जाए। जरूरत पड़े तो कड़ाई भी की जाए।
शिकायतें
-पक्के महाल का एम्स रहे रामघाट अस्पताल को होटल बनाने की जरूरत नहीं है। उसे पुन: अस्पताल के रूप में ही क्यों नहीं विकसित किया जा रहा।
-बंदरों और कुत्तों का उपद्रव बढ़ता जा रहा है। गली में कुत्तों तो छत पर बंदरों का डर रहता है। बंदर अब तो गलियों में बेधड़क घूमते हैं।
-पक्के महाल के दो दर्जन से अधिक सार्वजनिक शौचालयों में ज्यादातर बंद हो गए हैं। इससे सभी को परेशानी होती है।
-पक्के महाल में पिछले आठ सालों में 50 से अधिक गेस्ट हाउस बने हैं लेकिन किसी में मानक के अनुरूप फायर फाइटिंग की व्यवस्था नहीं है।
-गुजराती समाज के शिक्षित युवाओं के लिए बनारस में रोजगार के अवसर समाप्त हो गए हैं। इस बारे में कोई नहीं सोच रहा।
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