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बोले काशीः दक्षिण भारतीय श्रद्धालु सेवादार बनने को तैयार, कहा- विश्वनाथ मंदिर में मत रोको सुगम दर्शन

Varanasi News - वाराणसी में दक्षिण भारतीय वरिष्ठ नागरिक बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए आ रहे हैं। उन्हें गर्भगृह में दर्शन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें लंबी कतारें और पुलिस का व्यवहार शामिल है।...

Newswrap हिन्दुस्तान, वाराणसीMon, 6 Jan 2025 07:21 PM
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वाराणसी। अपना देश अनादि काल से शुभ संकल्पों के बल पर चुनौतियों से पार पाता रहा है। अनगिनत लोग स्वांत: सुखाय उन संकल्पों को पूरा करने के लिए जहां-तहां साधना (सत्प्रयासों) में रमे रहते हैं। ऐसे ही सैकड़ों संकल्पबद्ध दक्षिण भारतीय इन दिनों बाबा विश्वनाथ को साक्षी मान शिवनगरी में प्रवासी हैं। ये सभी वरिष्ठ नागरिक (महिला-पुरुष) हैं। मगर बाबा की चौखट पर उनका मन क्षुब्ध, हृदय संताप से व्याकुल हो जाता है। गर्भगृह में दर्शन की दुश्वारियां से उनका संकल्प डगमगा रहा है। श्रीविश्वनाथ को साक्षी मान ‘शुभास्ते संतु पंथान: ( परिवार-समाज और देश की यात्रा पथ की शुभता) की कामना पूर्ति के लिए काशीवास की परंपरा अति प्राचीन है। उसकी शुरुआत केरल की पेरियार और भरतप्पुझा, तमिलनाडु-अविभाजित आंध्र की कावेरी और गोदावरी नदियों को नापते हुए काशी पहुंचे आदि शंकर ने की थी। काल प्रवाह के साथ वह परंपरा क्षीण भले दिखी मगर कभी खंडित नहीं हुई। क्योंकि शुभ संकल्प लेने वाले हर काल में थे। उनके नाते संस्कृतियों का संगम हुआ। संस्कारों के सेतु बनते गए और संततियों का साधना-पथ संकटों से बचा रहा। गंगा और गोदावरी-कावेरी के बीच विकसित अटूट सांस्कृतिक संबंधों ने यह अवधारणा पुष्ट की है कि काशी सिर्फ मोक्ष नहीं, संकल्प पूर्ति की भी पीठ है। इसका प्रमाण श्रीरामतारक आंध्र आश्रम में इन दिनों प्रवास कर रहे तेलुगु और तमिल भाषी नर-नारी हैं। दो सौ से अधिक संख्या में सुबह गंगा स्नान, बाबा विश्वनाथ-अन्नपूर्णा का दर्शन और फिर मंत्र जप उनकी प्रमुख दिनचर्या है। दिनचर्या की शुरुआत जितनी ताजगी एवं उत्साह भरी होती है, उसका मध्यांतर विश्वनाथ धाम में उतना ही क्षोभदायक बन जाता है।

‘हिन्दुस्तान से चर्चा में उनकी पीड़ा छलकी। गर्भगृह के चारो द्वारों पर और अंदर मौजूद सुरक्षाकर्मी महिला या पुरुष दर्शनार्थी की आयु पर भी ध्यान नहीं देते। वे गर्दन-कमर तो कभी बांह पकड़ कर आगे ‘धकिया देते हैं। श्रीरामलला के गर्भगृह में अभिमंत्रित ‘श्रीराम यंत्र स्थापित करने वाले पं. ए. चिदंबरम शास्त्री की टिप्पणी-‘दर्शन की यह व्यवस्था काशी की छवि धूमिल जरूर कर रही है। हम सह लेते हैं क्योंकि लक्ष्य संकल्पपूर्ति है। जो आम दर्शनार्थी हैं, उनके मन पर लगी चोट का उपचार कौन करेगा?।

नौ माह नौ दिनों का संकल्प

आंध्र आश्रम ने ‘काशी सेवन करने वाले दक्षिण भारतीयों के लिए ‘काशीवास भवन बनवाया है। ऐसे लोगों का उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति नहीं होता। वे नौ माह नौ दिनों तक प्रवास करते हैं। इस अवधि निर्धारण का भाव भी अद्भुत है। आईटी के पूर्व प्रोफेसर मार्कण्डेय शास्त्री ने स्पष्ट किया। जिस तरह मां के गर्भ में नौ माह नौ दिनों तक शिशु संस्कारवान होता है, उसी तरह श्रीविश्वनाथ के सानिध्य में आत्म परिष्कार, आत्म चेतना के जागरण एवं राष्ट्र की निष्कंटक समृद्धि की कामना के साथ हम नौ माह नौ दिन की साधना का संकल्प लेते हैं। इस अवधि में गंगा स्नान, विश्वनाथ दर्शन एवं मंत्र जप अनिवार्य है। वे जूता-चप्पल पहने बिना केदार घाट, सोनारपुरा से विश्वनाथ धाम जाते हैं। साधना अवधि में ये प्रवासी अपने निकट संबंधी का भी बनाया भोजन ग्रहण नहीं करते। खुद पकाते और भोग लगाते हैं। साथ ही, असि-वरुणा के बीच काशी क्षेत्र से बाहर नहीं निकलते। इनमें 12 वर्षों की अखंड मंत्र साधना से ‘श्रीराम यंत्र को जागृत करने वाले पं. ए. चिदंबरम शास्त्री, ख्यात ज्योतिषी प्रो. सीवी सुब्रमण्यम शास्त्री, देश के कई स्थानों पर लाख एवं करोड़ शिवलिंग पूजन कराने वाले जी. अशोक, एलआईसी की पूर्व डीजीएम लक्ष्मी राममोहन, आंध्र प्रदेश शासन में विभिन्न प्रशासनिक पदों पर रहीं सूर्यभाष्करी भानुमति शामिल हैं।

भरी आंखें बोलीं, जा रहा गलत संदेश

काशी विश्वनाथ धाम के अनुभव साझा करते वक्त लक्ष्मी राममोहन, भानुमति समेत अनेक महिलाओं की आंखें भर आईं। उन्होंने कहा- ‘हम मान-प्रतिष्ठा, धन-वैभव त्याग कर यहां आए हैं। प्रचार, प्रशंसा की तनिक इच्छा नहीं। विश्वनाथ धाम की व्यवस्था ने व्यथित कर दिया तब हम आप से बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक तो हम बुजुर्गों को घंटों लाइन लगानी पड़ रही है। दूसरे, एक सेकेंड भी गर्भगृह के आगे रुक नहीं पाते। ज्योतिर्लिंग का दर्शन नहीं हो पाता। पुलिस का व्यवहार सही नहीं है। प्रो. मार्कंडेय शास्त्री, सीवी सुब्रमण्यम शास्त्री ने बताया कि दक्षिण में तिरुपति समेत हर बड़े मंदिर में बुजुर्गों, वरिष्ठ नागरिकों के दर्शन की अलग व्यवस्था है। वहां की तरह विश्वनाथ धाम में व्यवस्था क्यों नहीं की जाती? लाइन में देर तक खड़े होने के बाद भी दर्शन न मिल पाने से मन दुखी होता है।

पास पर रोक से बढ़ी दिक्कतें

वेंकटेश्वर शास्त्री, बीवी नागलक्ष्मी, पद्मा आदि ने ध्यान दिलाया कि पहले नेमियों को मंदिर से जारी पास से सुगम दर्शन मिल जाता था। इधर बीच पास पर रोक लगा दी गई है। जिन पास की अवधि खत्म हो गई है, उनका नवीनीकरण नहीं हो रहा है। काशी के भी हजारों नेमी यह समस्या झेल रहे हैं। रामतारक आश्रम के ट्रस्टी-प्रबंधक वीवी सुंदर शास्त्री ने बताया कि पहले आश्रम के जरिए ही 3500 रुपये में पास बन जाते थे। अब वह व्यवस्था बंद हो गई है। कई लोग ठीक से चल नहीं पाते हैं। उन्हें दर्शन में परेशानी होती है।

वे तेलुगु-तमिल, हिंदी नहीं समझते

लक्ष्मी राममोहन, पद्मावती, बीपीआर मूर्थि, मुरली कृष्णा, टी. गजानन जोशी ने कहा कि ज्यादातर प्रवासी किसी तरह हिंदी समझ तो लेते हैं पर बोल नहीं पाते। वहीं, यहां के ऑटो- ई रिक्शा चालक तेलुगु, तमिल नहीं समझते। इससे बहुत दिक्कतें आती हैं। सुझाव दिया कि भाषाई दिक्कत से बचने के लिए जगह-जगह तेलुगु-तमिल, कन्नड़ के साथ हिंदी एवं अंग्रेजी में मार्गदर्शक साइनेज लगवाए जाएं। धाम में दक्षिण भारतीय भाषाओं के जानकार सेवादार और अर्चक तैनात होने चाहिए। (‘हिन्दुस्तान से बातचीत के दौरान वीवी सुंदरशास्त्री और हर्षवर्धन शर्मा अनुवादक बने थे)।

हम नि:शुल्क सेवा को तैयार, बस...

डी. नारायन, जी. अशोक, सी. शारदा, लक्ष्मी प्रसन्ना, वी. बलराम आदि ने खुलकर कहा कि हमें सुगम दर्शन की सुविधा मिले और पास बन जाएं तो हम विश्वनाथ मंदिर में दोनों वक्त दो-दो घंटे सफाई से लेकर हर जरूरी व्यवस्था में नि:शुल्क सेवा करने को तैयार हैं। हम दक्षिण के दर्शनार्थियों की भाषाई दिक्कतें भी दूर करेंगे। हां, तब मंदिर प्रशासन को भी सहयोग करना होगा।

मां गंगा को दूषित कर रहा सीवेज

बी. श्रीरामचंद्र मूर्ति, नागेश्वर शर्मा, सुंदर शास्त्री ने चौकी, केदार, मानसरोवर, क्षेमेश्वर घाटों पर गंगा में गिर रहे सीवेज की ओर ध्यान खींचा। बोले, आस्था और परंपरा के मुताबिक यह स्थिति आहत करती है। केदारघाट की कई सीढ़ियों पर काई जम गई है। वहां स्नान करना आसान नहीं है। कई घाटों पर गंदगी भी श्रद्धालुओं को असहज कर देती है।

कहां गईं तीन गोल्फ कार्ट

प्रशांथी, एसबीआर शर्मा, सुंदर शास्त्री ने बताया कि छह-सात वर्ष पहले विजयनगरम घाट पर ह्वील चेयर की व्यवस्था थी। उससे सीढ़ियां चढ़ने-उतरने में असमर्थ लोगों को काफी सहूलियत थी। बाद में ह्वील चेयर कहां चली गई, पता नहीं चला। उन्होंने सांसद पीवीएल नरसिम्हा की ओर से दी गई तीन गोल्फ कार्ट पर भी सवाल उठाया। ये कार्ट भी कहां हैं, किसी को पता नहीं है।

मंदिर प्रशासन ने नहीं दी रसीद

पूर्व प्रशासनिक अधिकारी सूर्य भाष्करी भानुमती ने बताया कि उन्होंने इस साल 20 सितंबर को चेक के जरिए विश्वनाथ मंदिर को 50 हजार रुपये दान दिया। उक्त राशि मंदिर के खाते में जा चुकी है लेकिन जैसा कि भानुमति ने बताया, अब तक मंदिर प्रशासन ने रसीद नहीं दी है। वह कई बार टोक चुकी हैं। प्रवासियों ने केदार घाट से लेकर दशाश्वमेध के बीच गलियों में कहीं एटीएम न होने की भी शिकायत की। रुपये निकालने उन्हें दूर जाना पड़ता है।

शिवाला घाट पर स्लोप का देंगे खर्च

दक्षिण भारतीय नागरिकों ने कहा कि शिवाला घाट पर काफी स्थान है। यहां अलग स्लोप बन जाए तो चलने फिरने में असमर्थ और विकलांग जनों को स्नान करने में आसानी होगी। ह्वील चेयर से लोग आसानी से गंगा स्नान के लिए जा सकेंगे। उन्होंने कहा कि प्रशासन पहल करे, हम खर्च देने को तैयार हैं। सुंदरम शास्त्री ने बताया कि केदारघाट, शिवाला सहित कई घाटों की सीढ़ियां में दरारें आ गई हैं। उन्हें भी ठीक होना चाहिए।

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कोट

विश्वनाथजी के दर्शन की उत्तम व्यवस्था काशी की छवि बनाएगी।

-चिदंबरम शास्त्री

वीआईपी बैठ कर घंटों पूजा करते हैं। हमें दर्शन भी नहीं होता।

- डी. नारायण

गंगा में सीवेज गिर रहा है। यह स्थिति आहत करने वाली है।

- हर्षवर्धन शर्मा

घाटों पर ह्वील चेयर की सुविधा बंद होने से वृद्धजनों को परेशानी होती है।

- जीवी रमना

मंदिर में महिलाओं को सिपाही धक्का देते हैं। यह दुख की बात है।

- बीवी नागलक्ष्मी

कैंट की तरह अस्सी से गोदौलिया को भी रोपवे से जोड़ा जाए।

- सुंदरम शास्त्री

मंदिर में झांकी दर्शन मुश्किल हो गया है। पुलिस तुरंत हटा देती है।

- बीपीआर मूर्ति

वृद्ध और दिव्यांगजनों को दर्शन की अलग व्यवस्था होनी चाहिए।

-सीवीवी सुब्रमण्यम शास्त्री

पुलिस का व्यवहार ठीक नहीं है। वे अभद्र भाषा भी बोलते हैं।

- केवीएस प्रसाद

धाम बनने के बाद मंदिर टूरिस्ट प्लेस बन गया है। यह गलत है।

- मार्कंडेय शास्त्री

भाषा अलग होने से समस्याएं होती हैं। ऑटो वाले परेशान करते हैं।

- मुरली कृष्णा

केदारघाट से धाम के बीच तेलगू-तमिल के साइनेज लगाए जाएं।

- बी श्रीरामचंद्र मूर्ति

ऐसी व्यवस्था हो कि आम लोगों को भी आसानी से दर्शन मिल सके।

- लक्ष्मी राममोहन

प्रवासियों को दर्शन के लिए पास जारी हों। हम नि:शुल्क सेवा को तैयार हैं।

- गोली अशोक

तिरुपति और रामेश्वरम जैसी व्यवस्था यहां भी लागू होनी चाहिए।

- नारायण राव

महिला दर्शनार्थियों के साथ सदव्यवहार हो। गर्भगृह में अर्चक रहें, न कि सिपाही।

-एस. भानुमति

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शिकायतें

1- पहले विश्वनाथ मंदिर प्रशासन पास जारी करता था। उससे उन लोगों को सुगम दर्शन मिलता था, जो चल फिर नहीं सकते।

2- शिवाला, मानसरोवर, चौकी घाट पर सीवेज बह रहा है। मां गंगा दूषित हो रही हैं।

3-कई घाटों की सीढ़ियों पर दरार आ रही है। कई घाटों पर काई जमी है। इससे लोगों को गंगा स्नान में दिक्कत होती है।

4-घंटों लाइन में लगने के बाद भी पुलिस वाले ऐसे धक्का देकर हटाते हैं कि शिवलिंग की झलक भी नहीं मिल पाती है।

5- कई घाटों पर पहले व्हील चेयर की व्यवस्था थी। व्यवस्था एक साल तक चली, फिर बंद कर दी गई।

सुझाव

1- पहले की तरह पास की व्यवस्था फिर से लागू होनी चाहिए। इससे बुजुर्ग और दिव्यांग दर्शनार्थियों को सहूलियत होगी।

2-किसी भी घाट पर सीवर का पानी न बहे, इसे सुनिश्चित करना होगा। इससे मां गंगा का जल शुद्ध भी रहेगा।

3- जिस घाट पर दरारें हैं या सीढ़ियां टूट रही हैं, उनकी मरम्मत होनी चाहिए। इससे अनहोनी नहीं होगी।

4-ऐसी व्यवस्था बने जिसमें हर श्रद्धालु को बाबा का दर्शन मिल सके। पुलिस वालों को अपने व्यवहार में विनम्र होना चाहिए।

5- हर प्रमुख घाट पर ह्वील चेयर की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे बुजुर्ग और दिव्यांग दर्शनार्थियों को सहूलियत होगी।

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