Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़वाराणसीBHU Scientists Discover New Method to Identify Earth-Like Planets in Space

एस्ट्रो केमिस्ट्री करेगी धरती जैसे ग्रह की पहचान

वाराणसी के बीएचयू के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में धरती जैसे ग्रहों की पहचान के लिए एक नया तरीका खोजा है। एस्ट्रोकेमिस्ट्री और एस्ट्रोफिजिक्स की मदद से शोध दल अणुओं का अध्ययन कर रहा है। शोध का प्रकाश...

Newswrap हिन्दुस्तान, वाराणसीSun, 17 Nov 2024 12:26 AM
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वाराणसी, वरिष्ठ संवाददाता। अंतरिक्ष में धरती जैसे ग्रहों की पहचान के लिए बीएचयू के वैज्ञानिकों ने एक नए तरीके की खोज की है। एस्ट्रोकेमिस्ट्री और एस्ट्रोफिजिक्स की मदद से वैज्ञानिकों का दल अंतरिक्ष में मिलने वाले अणुओं का अध्ययन कर यह पता लगाने की कोशिश में है कि कौन से ग्रहों की प्रकृति धरती जैसी हो सकती है। अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया के प्रतिष्ठित जर्नल ‘मंथली नोटिस ऑफ रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ने इस शोध के प्रकाश को स्वीकृति दी है। बीएचयू के विज्ञान संस्थान के भौतिकी विभाग के प्रो. अमित पाठक और डॉ. अलकेंद्र प्रताप सिंह के नेतृत्व में शोधार्थियों के दल ने यह खोज की है। शोध दल ने कंप्यूटर मॉडलिंग और स्पेक्ट्रोस्कोपी की मदद से विभिन्न ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं की तलाश शुरू की है। शोध दल में शामिल बीएचयू की शोध छात्रा अंशिका पांडेय बीएचयू के आईओई अनुदान के तहत यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया में शोध कर रही हैं। दूसरे सदस्य डॉ. एकांत वत्स इसी विभाग से पीएचडी करने के बाद नासा में कार्यरत हैं। प्रो. अमित पाठक ने बताया कि डीएनए और आरएनए की जटिल संरचना के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण एन-हेटरोसाइक्लिक यौगिकों पर पहले भी शोध हुए हैं। हाल में अंतरिक्ष में खोजे गए कार्बन यौगिक जुड़े एक विशेष प्रकार के एरोमैटिक्स पर गहन शोध किया गया। हालांकि एन-हेटरोसाइक्लिक यौगिकों की प्रत्यक्ष उपस्थिति अंतरिक्ष में अब तक नहीं देखी गई है। लेकिन उल्कापिंडों और अन्य अंतरिक्षीय पिंडों में इनकी उपस्थिति ने संकेत दिया है कि यह यौगिक ब्रह्मांड में कहीं न कहीं मौजूद हो सकते हैं। विशिष्ट स्पेक्टोमेट्री और कंप्यूटर मॉडलिंग के जरिए अंतरिक्ष में मौजूद पिंडों में इन्हीं की मौजूदगी की जांच का प्रयास किया जा रहा है।

प्रो. अलकेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि छात्रा अंशिका पांडेय ने विशेष रूप से 3-पाइरोलाइन नामक पांच सदस्यीय रिंग संरचना वाले अणु के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित किया। प्रो. पाठक और अन्य सदस्यों के साथ इसके निर्माण की संभावनाओं और इसके घूर्णन एवं कंपन स्पेक्ट्रा पर विस्तृत अध्ययन किया। इस शोधकार्य में बीएचयू के साथ भारतीय विज्ञान संस्थान, विज्ञान और इंजीनियरिंग बोर्ड और भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग से वित्तीय सहायत भी मिली।

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