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बोले काशी:‘थ्री एम की मांग कर रहे बनारस के मदरसे

वाराणसी में मदरसों में शिक्षा के आधुनिक रूपों को अपनाने के बावजूद, शिक्षकों की कमी, वित्तीय समस्याएं और छात्रों की घटती संख्या की चिंताएं बढ़ रही हैं। मदरसा संचालक और शिक्षक प्रशासन से संवाद की कमी और...

Newswrap हिन्दुस्तान, वाराणसीWed, 13 Nov 2024 07:41 PM
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वाराणसी। जेहन में ‘मदरसा लफ्ज कौंधते ही अब सिर्फ ‘अलिफ जबर अ, बे जबर ब... दोहराते बच्चों की तस्वीर नहीं उभरती। हिजाब पहने लड़कियां, जालीदार टोपी लगाए लड़के ‘ए फॉर एलीफैंट, बी फॉट बैट... भी दोहरा रहे हैं। उनकी अंगुलियां कंप्यूटर के माउस और कीपैड को साध रही हैं। इस बदलाव के बीच बनारस के सौ से अधिक मदरसा संचालकों, प्रबंधकों के साथ शिक्षक खुद को उपेक्षित मानते हैं। उनकी समस्याएं ‘थ्री एम-मनी, मैनपावर व मेंटीनेंस के इर्दगिर्द सिमटी हुई हैं। वहीं समाधान भी है। मदरसों को रंज है कि उनकी समस्याएं सुनने वाला कोई नहीं है। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग सिर्फ शासनादेश जारी करता है। टीचर्स एसोसिएशन मदारिस-ए-अरबिया के प्रदेश महामंत्री हाजी दीवान साहेब जमा ने कहा कि विभाग शासन के सामने हमारी बात नहीं रख पाता। पीलीकोठी स्थित मदरसा मजहर मजहरूल उलूम में जुटे संचालकों, शिक्षकों ने ‘हिन्दुस्तान से चर्चा में अपनी समस्याएं गिनाईं, सुझाव भी दिए। उनके शिक्षकों के वेतन के अलावा कोई फंड नहीं मिलता। इससे उनकी आर्थिक दिक्कतें बनी रहती हैं। आधुनिक और बेसिक शिक्षा के सिलेबस के मुताबिक मदरसों में शिक्षकों की भारी कमी है। संचालकों व शिक्षकों की एक बड़ी चिंता मदरसों में विद्यार्थियों की घटती संख्या है। टीचर्स एसोसिएशन मदारिस-ए-अरबिया के जिला सचिव डॉ. नबी जान का कहना है कि आए दिन अंकुश लगाने से माहौल खराब होता है, गलत संदेश जाता है। इससे अपनी कौम के लोग भी अब बच्चों को मदरसों में भेजने से कतरा रहे हैं।

खराब हो गए कई कंप्यूटर

शासन ने मदरसों में आधुनिक शिक्षा तो शुरू कर दी लेकिन उसके लिए शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की। डॉ. नबी जान ने सवाल उठाया- ऐसे में अंग्रेजी और हिन्दी पढ़ाने वाले शिक्षक बच्चों को विज्ञान, गणित कैसे पढ़ाएंगे? कई बार से शिक्षकों की मांग की जा रही है पर सुनवाई नहीं है। शासन से मदरसों को दो-दो कम्प्यूटर तो दिए मगर इसके लिए भी शिक्षक नहीं मिले। मदरसा शिक्षकों को कम्प्यूटर का ज्ञान नहीं है। फिर, बच्चों को कम्प्यूटर कौन पढ़ाएगा। कई मदरसों में कम्प्यूटर रखे-रखे खराब हो गए।

फंड शून्य, उम्मीदें अनगिनत

संचालकों ने कहा कि अधिकारी कभी बायोमेट्रिक हाजिरी तो कभी सर्वे के लिए दबाव बनाते हैं। बायोमेट्रिक मशीन के लिए सरकार ने फंड नहीं दिया है। संचालकों को अपने खर्च से मशीन लगानी है। जबकि मदरसों में नि:शुल्क शिक्षा दी जाती है। शासन से सिर्फ शिक्षक और कर्मचारियों के वेतन का पैसा मिलता है। निर्माण कार्य, नई सुविधाओं के लिए कोई बजट नहीं है। जबकि अपेक्षा रहती है कि मदरसों के भवन बेसिक स्कूलों की तरह चमकें।

नहीं मिलता ड्रेस और जूता

डॉ. नबी जान ने बताया कि मदरसा बच्चों को कोरोना के बाद से ड्रेस, जूता और स्वेटर मिलना बंद हो गया है। कई बार इसकी शिकायत की गई है। शासन का एक आदेश आया कि बच्चों के अभिभावकों के खाते में पैसा जाएगा लेकिन वह भी नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि मदरसे में आर्थिक रूप से कमजोर बच्चे पढ़ने आते हैं। उनके लिए ड्रेस-जूते का इंतजाम भी मुश्किल होता है।

52 शिक्षकों का रोका वेतन

शिक्षकों ने कहा कि अधिकारी जांच के नाम पर मनमाना रवैया अपनाते हैं। पिछली जुलाई से दो मदरसों के 52 शिक्षकों का वेतन रोक दिया गया है। इनमें मदनपुरा स्थित जामिया इस्लामिया में 43 और कठिरांव स्थित मदरसा इस्लामिया वारसी के नौ शिक्षक हैं। उनके और उनके परिवार के सामने गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। वे कर्ज लेकर घर चला रहे हैं।

कामिल-फाजिल पर नौकरी मिलनी मुश्किल

फोटो : डॉ. नबी जान

मदारिस-ए-अरबिया के जिला सचिव डॉ. नबी जान ने कहा कि मदरसों में 12वीं के बाद कामिल (बीए) और फाजिल (एमए) की पढ़ाई होती है। लेकिन कामिल और फाजिल डिग्रियों की मान्यता केवल मदरसा बोर्ड में ही है। किसी यूनिवर्सिटी, कॉलेज, नौकरी और विदेश में मान्यता नहीं है। मदरसा से कामिल करने वाला छात्र एमएम की पढ़ाई नहीं कर सकता। उसे फिर से किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी से बीए करना होगा। वहीं, स्नातक की पात्रता के अनुसार कामिल डिग्रीधारी कोई नौकरी भी नहीं मिलती। यह विसंगति बेरोजगारी के साथ युवाओं में हताशा भी बढ़ा रही है।

गैर मुस्लिम बच्चे भी पढ़ते हैं

फोटो : हाजी दीवान

मदारिस-ए-अरबिया के प्रदेश महामंत्री हाजी दीवान साहेब जमा ने कहा कि देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, हिंदी के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद भी मदरसे में पढ़े थे। यह लोगों में सिर्फ भ्रम है कि मदरसों में सिर्फ दीनी तालीम दी जाती है। गैर मुस्लिम समाज के लोग भी अपने बच्चों को मदरसा में भेजते हैं। मदरसों में 20 फीसदी गैर मुस्लिम बच्चे हैं। पांच फीसदी गैर मुस्लिम शिक्षक हैं। शिक्षा को धर्म के आधार पर न बांटा जाए। मदरसों को लेकर तमाम अफवाहें फैलाई जा रही हैं। इस पर सरकार को अंकुश लगाने की जरूरत है।

प्रबंध समिति ने जबरन इस्तीफा लिया

मदरसा शिक्षकों को अपनी प्रबंध समितियों से भी गिला-शिकवा है। कमलगड़हा स्थित जामिया अरबिया मतलउल उलूम में शिक्षक रहे मो. उस्मान गनी ने बताया कि मैं पिछले 40 साल से वहां पढ़ाता था। मेरा रिटायरमेंट 2027 में था। प्रबंध समिति ने मुझसे जबरन इस्तीफा ले लिया। मैं विरोध करता रहा लेकिन मेरी एक नहीं सुनी गई।

इनकी सुनें

जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी से मिलना मुश्किल होता है। दो से तीन घंटा इंतजार करना पड़ता है।

-जुबैर अहमद, मदरसा शिक्षक

स्कॉलरशिप हाल में ही बंद कर दी गई है। गरीब बच्चों का ध्यान रखते हुए उसे शुरू करना चाहिए।

-मो. अनवर, शिक्षक

बायोमेट्रिक उपस्थिति की अनिवार्यता पर शासन पुनर्विचार करे। पहले इसके लिए गठित कमेटी की रिपोर्ट आनी चाहिए।

-खान जियाउद्दीन, शिक्षक

मदरसा बच्चों को आधार कार्ड की समस्या होती है। उनके लिए मदरसों में ही कैंप लगें।

-मो. आसिफ रजा

संस्कृत स्कूलों की तरह मदरसों को भी भवन निर्माण का अनुदान मिलना चाहिए। कई मदरसों के भवन जर्जर हो गए हैं।

-मो. अजहरूल कादिरी, शिक्षक

शिकायतें

1. मदरसा संचालकों से शासन और प्रशासन स्तर पर कभी संवाद नहीं होता है। उनकी परेशानियों को अनसुना किया जाता है।

2. मदरसों में आधुनिक शिक्षा शुरू की गई लेकिन उसके लिए शिक्षक नहीं दिए गए हैं।

3. मदरसों पर बॉयोमेट्रिक हाजिरी जबरन थोपी जा रही है। इसके लिए कोई फंड भी नहीं दिया गया।

4. मदरसा बच्चों का आधार कार्ड बनाने के लिए पहले कैंप लगते थे। उनके खातों से डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) भी नहीं जुड़ी है।

5. अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अधिकारी निरीक्षण के लिए आते हैं। मगर मदरसा संचालकों को निरीक्षण रिपोर्ट की फोटो कॉपी नहीं दी जाती है।

सुझाव

1. मदरसा संचालकों के साथ हर तीन महीने पर अधिकारी या मंत्री संवाद करें। उनकी समस्याओं का निराकरण करें।

2. अनुदानित मदरसों को शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन के अलावा फंड मिले। जिससे वहां इंफ्रास्ट्रक्चर सहित अन्य कार्य हो सकें।

3. गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को शासन मान्यता दे। नए मदरसे खुलें, इसके लिए भी प्रस्ताव बने।

4. अधिकारी अपने निरीक्षण की रिपोर्ट संचालकों को जरूर दें जिससे वे मदरसों की कमियां दूर कर सकें। वेतन शासन के आदेश पर ही रोके जाएं।

5. मदरसों की डिग्रियों को विश्वविद्यालयों से संबद्ध किया जाए ताकि कामिल-फाजिल करने वाले छात्र-छात्राओं को भटकना न पड़े।

अंक गणित...

-कुल 109 मदरसे हैं बनारस में

-23 अनुदानित मदरसे हैं

-86 गैर अनुदानित मदरसा

-2000 से अधिक शिक्षक हैं मदरसों में

-------बोले जिम्मेदार---

मदरसों में हुए हैं कई बदलाव

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के निवर्तमान चेयरमैन डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा बोर्ड में पहली बार कंपार्टमेंट/इम्प्रूवमेंट परीक्षा की व्यवस्था की गई। उन्हें प्री प्राइमरी क्लासेज की अनुमति दी गयी। नकल विहीन परीक्षा के लिए सेंट्रल निगरानी शुरू हुई। मदरसों की महिला कर्मचारियों के प्रसूति अवकाश तथा मातृत्व अवकाश के लिए अलग से शासनादेश जारी कराया गया।

कोई फंड नहीं मिलाः डॉ. जावेद ने माना कि मदरसों को पिछले दस साल के दौरान शैक्षणिक और सुविधाओं के विकास मद में कोई फंड नहीं दिया गया है।

सरकार उठाएगी सकारात्मक कदम

मदरसों की बेहतरी के लिए सरकार काम कर रही है। वहां व्यवस्थाएं भी बढ़ाई जा रही है। अब उनमें आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस की भी पढ़ाई शुरू हो गई है। मदरसों की मूलभूत सुविधाओं से जुड़ी दिक्कतें दूर की जाएंगी। मदरसा संचालकों और शिक्षकों की जो भी समस्याएं हैं, उनके समाधान के लिए सरकार सकारात्मक कदम उठाएगी।

दानिश आजाद अंसारी, अल्पसंख्यक कल्याण, वक्फ एवं हज राज्यमंत्री

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