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कालेजों में दिखा करवाचौथ का उल्लास, दुल्हन की तरह सजीं छात्राएं-VIDEO

करवा चौथ की पूर्व संध्या पर उसका उल्लास कालेजों में दिखाई दिया। अग्रसेन पीजी कालेज में छात्राओं ने बुधवार को ब्राइडल मेकअप और वसंत महिला महाविद्यालय में मेहंदी प्रतियोगिता में हिस्सेदारी की। मेंहदी...

Yogesh Yadav वरिष्ठ संवाददाता, वाराणसीWed, 16 Oct 2019 07:56 PM
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करवा चौथ की पूर्व संध्या पर उसका उल्लास कालेजों में दिखाई दिया। अग्रसेन पीजी कालेज में छात्राओं ने बुधवार को ब्राइडल मेकअप और वसंत महिला महाविद्यालय में मेहंदी प्रतियोगिता में हिस्सेदारी की। मेंहदी एवं ब्राइडल मेकअप प्रतियोगिता में देश की सांस्कृतिक विविधता को बखूबी दर्शाया गया। किसी ने मराठी, किसी ने पंजाबी दुल्हन के रूप की तरह श्रृंगार किया। ब्राइडल मेकअप में मुस्कान सोनी ने प्रथम, काजल वर्मा ने द्वितीय व प्रियंका केसरी ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। अंजली सिंह व जैनब हाशमी को सांत्वना पुरस्कार मिला। 

मेंहदी प्रतियोगिता में प्रतिभागी छात्राओं ने अतिथियों को मेंहदी लगाकर अपनी कला प्रदर्शन किया। जिसमें कोमल बिन्द ने प्रथम, सुमन प्रजापति ने द्वितीय व विधा ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। प्रतियोगिता का आयोजन समाजिक संस्था 'संकल्प' और  अग्रसेन कन्या पीजी कॉलेज ने संयुक्त रूप से किया था। वहीं, वसंत महिला कालेज में मेहंदी पर कार्यशाला आयोजित की गई। छात्राओं को मेहंदी लगाने का प्रशिक्षण दिया गया। छात्राओं ने प्रशिक्षण लेने के बाद मेहंदी लगाकर अपनी कला का प्रदर्शन किया। डा.रीता शाह, डा.आम्रपाली द्विवेदी, डा.कल्पना अग्रवाल ने छात्राओं प्रशिक्षण दिया। इस मौके पर प्रबंधक अनिल जैन, सहायक प्रबन्धक हरीश अग्रवाल, प्राचार्य डा.कुमकुम मालवीय, अल्पना अग्रवाल, गीता जैन, अंजला अग्रवाल डा.शुभ्रा वर्मा डा.प्रतिमा त्रिपाठी, डा.निधि वाजपेयी, डा.अर्चना अर्चना शर्मा का विशेष सहयोग रहा।  

इस बार खास संयोग में पड़ रहा है करवा चौथ

सुहाग और अटूट प्रेम का प्रतीक करवा चौथ इस बार बेहद खास संयोग में मनाया जाएगा। महिलाएं इस दिन मंगल व रोहिणी नक्षत्र में पति की दीघार्यु की कामना करेंगी। यह संयोग 70 साल बाद आया है। इस साल व्रत की समयाविधि भी करीब 14 घंटे की रहेगी। करवा चौथ का व्रत इस वर्ष 17 अक्टूबर को है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार 70 सालों बाद बन रहा शुभ संयोग सुहागिनों के लिए फलदायी होगा। इस बार रोहिणी नक्षत्र के साथ मंगल का योग बेहद मंगलकारी रहेगा।

रोहिणी नक्षत्र और चंद्रमा में रोहिणी के योग से मार्कंडेय और सत्याभामा योग भी इस करवा चौथ बन रहा है। क्योंकि चंद्रमा की 27 पत्नियों में रोहिणी प्रिय पत्नी है। इसलिए यह संयोग करवा चौथ को बेहद खास बना रहा है। इसका सबसे ज्यादा लाभ उन महिलाओं की जिंदगी में आएगा ​जो पहली बार करवा चौथ का व्रत रखेंगी। कर्क चतुर्थी 17 अक्तूबर की सुबह 6 बजकर 48 मिनट पर लगेगी। चंद्रोदय शाम 6 बजकर 41 मिनट पर होगा इसके बाद अर्घ्य के विधान से करवाचौथ पूजन पूरा होगा। चतुर्थी तिथि 18 अक्तूबर को प्रात: सात बजकर 29 मिनट तक रहेगी। केवल सुहागिनों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। सुहागन किसी भी आयु, जाति, वर्ण या संप्रदाय की हो, वह व्रत की अधिकारिणी है।

पं. विष्णुपति त्रिपाठी के अनुसार शास्त्रों में इस व्रत को 12 वर्ष अथवा 16 वर्ष तक लगातार करने का विधान है। यह अवधि पूरी होने के बाद इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। इस बात की छूट भी है कि एक बार उद्यापन करने के बाद सुहागिनें आजीवन भी यह व्रत कर सकती हैं।

दो शब्दों से मिलकर बना है करवा चौथ
करवा चौथ कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। करवा चौथ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला तो करवा और दूसरा चौथ। जिसमें करवा का मतलब मिट्टी के बरतन और चौथ यानि चतुर्थी है। इस दिन मिट्टी के पात्र यानी करवों की पूजा का विशेष महत्व है।

करवा चौथ का महत्व
माता पार्वती ने शिव को पाने के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था। इसी व्रत के बाद ही उनका विवाह शिव से हुआ। कहा जाता है कि राजा बलि ने भगवान विष्णु को कैद कर लिया था। जिसके बाद मां लक्ष्मी ने करवा चौथ का व्रत रखकर उन्हें मुक्त कराया। 

रखी जाएंगी सुहाग की निशानियां
करवा चौथ व्रत में सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया करवा भरने की होती है। करवा मिट्टी और पीतल का विशेष पात्र होता है जिसमें महिलाएं सुहाग की समस्त निशानियां सजा कर रखती हैं। इनमें सिंदूर, मंगलसूत्र, चूड़ी, आलता, बिंदी, वस्त्र सहित शृंगार की अन्य सामग्री होती हैं। करवा में चांदी और सोने के आभूषण भी सजाए जाते हैं।

करवा चौथ की व्रत कथा
करवा चौथ की कथा इंद्रप्रस्थ नगरी के वेदशर्मा नामक ब्राह्मण परिवार की पुत्री से जुड़ी है। सात भाइयों में अकेली बहन वीरावती का विवाह सुदर्शन नामक ब्राह्मण के साथ हुआ। वीरावती ने एक बार करवा चौथ का व्रत अपने मायके में किया। पूरे दिन निर्जल रहने के कारण वह निढाल हो गई। उसके भाइयों से उसकी यह दशा नहीं देखी गई। उन्होंने खेत में आग लगा कर समय से पहले ही नकली चांद उदय करा दिया। वीरावती की भाभियों ने उसे चांद निकलने की बात बता कर अर्घ्य दिलवा दिया। उसके बाद से वीरावती का पति लगातार बीमार रहने लगा। उसने इंद्र की पत्नी इंद्राणी का पूजन कर उनसे समाधान मांगा। उन्होंने व्रत के खंडित होने की बात बताई और पुन: विधि विधान से व्रत करने की सलाह दी। वीरावती ने वैसा ही किया। इससे उसका पति ठीक हो गया। उसी समय से यह व्रत लोक प्रचलन में आ गया।

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