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Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़वाराणसी130 retired professors in BHU waiting for pension for three decades disappointed even after SC s decision

बीएचयू में तीन दशक से पेंशन का इंतजार कर रहे 130 रिटायर प्रोफेसर, SC के फैसले के बाद भी निराशा

108 साल पहले स्थापित काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ऐसे 130 वरिष्ठ प्रोफेसर हैं तो दो से तीन दशक से पेंशन की बाट जोह रहे हैं। शिक्षक दिवस पर उन्होंने अपना दर्ज साझा किया।

Yogesh Yadav हिन्दुस्तान, वाराणसी वरिष्ठ संवाददाताThu, 5 Sep 2024 06:24 PM
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शिक्षक दिवस यानी शिक्षकों के सम्मान का दिन। उनकी दी हुई सीख को याद करने, कृतित्व को नमन करने और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने का दिन। मगर आज हम आपको उन गुरुओं की व्यथा कथा भी बताएंगे जो दशकों तक छात्रों का भविष्य संवारने के बाद अब दशकों से पेंशन का इंतजार कर रहे हैं। 108 साल पहले स्थापित काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ऐसे 130 वरिष्ठ प्रोफेसर हैं तो दो से तीन दशक से पेंशन की बाट जोह रहे हैं।

दुखद पहलू यह है कि पेंशन न मिलने में इन रिटायर प्रोफेसरों की कोई गलती नहीं। यह बीएचयू की तरफ से शासनादेश को सही ढंग से प्रसारित और क्रियान्वित न करने के कारण हुआ। प्रकरण शुरू होता है एक मई 1987 को जारी केंद्र सरकार के एक आदेश से जिसमें सभी शिक्षकों को 30 सितंबर-1987 तक सीपीएफ (योगदानात्मक भविष्य निधि) या जीपीएफ (सामान्य भविष्य निधि) में से एक विकल्प चुनने के निर्देश दिए गए थे। इस तिथि तक विकल्प न चुनने वालों को जीपीएफ में शामिल करने के आदेश दिए गए थे। शिक्षकों का कहना है कि उस समय इंटरनेट या संचार सेवा इतनी बेहतर नहीं थी कि एक बार में सभी तक सूचना पहुंच जाए। लिहाजा शासनादेश में निर्धारित अंतिम तिथि बीत गई और सैकड़ों शिक्षक विकल्प भरने से वंचित रह गए। बीएचयू ने तिथि बीतने के बाद 9 अप्रैल 1988 को एक नोटिफिकेशन जारी कर सभी को विकल्प चुनने के निर्देश दिए। तिथि बीतने के बाद इन शिक्षकों ने अपने विकल्प भर दिए। हालांकि शासनादेश के अनुसार अब तक सभी जीपीएफ के अंतर्गत आ चुके थे।

पांचवें वेतन आयोग के बाद जब शिक्षकों की वेतन व्यवस्था में सुधार शुरू हुए तो इन शिक्षकों को पेंशन की सुधि आई। बीएचयू का कहना था कि 1988 के नोटिफिकेशन के बाद सीपीएफ का विकल्प भरने वाले शिक्षकों को यही दिया जाएगा जबकि शिक्षकों का तर्क था कि शासनादेश की अंतिम तिथि तो 1987 की ही थी। ऐसे ही एक मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने पहले दिल्ली हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली और लड़ाई जीत ली। उन शिक्षकों की पेंशन शुरू हो गई मगर बीएचयू अब तक अपने इन 130 शिक्षकों को पेंशन नहीं दे सका है।

एग्जीक्यूटिव काउंसिल ने भी माना सही

रिटायर शिक्षकों ने इस मामले में बीएचयू के कुलपतियों, यूजीसी, मानव संसाधन मंत्रालय को प्रत्यावेदन दिए। 2014 में बीएचयू ने इस संबंध में एक कमेटी बनाई जिसमें कुलसचिव, वित्त अधिकारी, संकायाध्यक्षों सहित नौ वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। इस समिति ने भी माना कि शिक्षकों का दावा सही है और सभी को जीपीएफ दिया जाना चाहिए। बीएचयू की एग्जीक्यूटिव काउंसिल को भी शिक्षकों ने दो बार 2015 और 2017 में प्रार्थना पत्र दिए। दोनों बार काउंसिल ने भी इस दावे को सही माना मगर इसके बाद भी यह बुजुर्ग शिक्षक पेंशन के इंतजार में हैं।

2001 में आठ महीने कटा जीपीएफ

सेवानिवृत्त शिक्षकों ने बताया कि बीच में आशा की किरण भी नजर आई थी जब 2001 में आठ महीने के लिए उनको जीपीएफ के अंतर्गत रखा गया और इस दौरान वेतन से इसकी धनराशि भी काटी गई। कुलपति प्रो. वाईसी सिम्हाद्री के कार्यकाल में शिक्षकों के प्रत्यावेदन पर यह निर्णय लिया गया था। हालांकि उनके बाद आए अगले कुलपति ने इसे केंद्र सरकार के नियमों के खिलाफ माना और इस फैसले को वापस ले लिया।

कोई कर रहा नौकरी तो कोई बच्चों के भरोसे

बीएचयू के विभिन्न संकायों में 30 से 45 वर्षों तक शिक्षण और प्रशासनिक पदों पर सेवाएं देने के बाद यह सभी 130 शिक्षक सेवानिवृत्त हुए। अब इनमें ज्यादातर उम्र का 75वां पड़ाव पार कर चुके हैं। बीएचयू की अनदेखी का दंश ऐसा है कि वृद्धावस्था में भी जो सक्षम हैं वह शिक्षण और छोटी-मोटी नौकरी कर आजीविका चला रहे हैं। अवस्था और बीमारियों के सामने जो पस्त हो चुके हैं उनमें से कुछ बच्चों के भरोसे हैं तो कुछ बैंक में पड़ी एफडी के आसरे जीवन काटने की कोशिश कर रहे हैं। इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस का दर्जा पा चुकी महामना की तपोस्थली से इन्हें अब भी आस है कि जीवन के आखिरी कुछ वर्ष वह खुशी और सुकून के साथ काट सकें।

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