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आजादी का पहला जश्न मनाने वालों ने की यादें ताजा, बताया- दीवारों पर नारे लिखे, तिरंगा लेकर सड़क पर दौड़े

आजादी का पहला जश्न मनाने वाले 20 हजार लोग अभी आगरा में मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि दीवारों पर नारे लिखे थे। तिरंगा लेकर सड़क पर दौड़ पड़े थे। 1947 में सात- आठ साल की उम्र में इन लोगों ने तिरंगा झंडा फहराया था।

Srishti Kunj हिन्दुस्तान, आगरा, मनोज मिश्रWed, 14 Aug 2024 12:58 AM
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14 अगस्त 1947 की रात 10 बजे। न किसी का डर न खौफ। बस अपने काम में मगन। हजारों की संख्या में छोटे-बड़े बच्चे मोहल्लों में अपने नन्हें हाथों से दीवारों पर आजादी के नारे लिख रहे थे। लोग पूछते तो बता देते कि अब हम सब आजाद हो गए हैं, लेकिन तमाम यातनाएं झेलने वाले लोगों को यकीं नहीं हो रहा था। फिर सुबह सूरज की पहली लौ फूटते ही सड़कों पर आजादी के तराने गूंजने लगे। फिर तो सड़कों का दृश्य देखने लायक था। हर कोई आजादी का पहला जश्न मनाना चाहता था।

यूपी के आगरा जिले में इन्हीं बच्चों में से 20281 लोग अभी भी मौजूद हैं। ये आजादी के पहले जश्न को भूल नहीं पाते हैं। 14 अगस्त की रात और 15 अगस्त 1947 के दिनभर के उत्साह को भूल नहीं पाते हैं। जिनकी उम्र 85 से 95 साल के बीच की है। तब इनकी उम्र मात्र आठ से लेकर 18 साल तक की थी। इनमें जो जोश और जज्बा 77 वर्ष पहले था, वही चमक तब इनके चेहरों पर दिखने लगती है जब आजादी के पहले जश्न की बात इनसे पूछ ली जाए।

यही नहीं आजादी का पहला जश्न मनाने वाले 100 साल से ज्यादा आयु के 487 लोग अभी भी मौजूद हैं। ये बात अलग है कि इन लोगों को 77 साल पहले की बातें ज्यादा याद नहीं हैं। कान से सुनाई भी कम पड़ता है, लेकिन जब घर वाले उन्हें इशारों से पूछने का प्रयास करते हैं तो उनकी भी आंखों में चमक आ जाती है। उम्र के इस पड़ाव में भी उनके दिल में अभी भी आजादी के प्रति जो लगाव है वह किसी भी देशप्रेमी के लिए एक प्रेरणा कहा जाएगा।

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झंडे बांटने निकले तो लोगों को यकीन नहीं हुआ
अजमेर रोड निवासी शशि शिरोमणि बताते हैं कि वह उस समय 11 वर्ष के थे। 14 अगस्त की रात को ही उनके पिता ने उन्हें यमुना किनारे रोड की बस्तियों में झंडे बांटने के लिए दिए थे। लोग यकीन ही नहीं कर रहे थे कि बच्चे ये क्या कर रहे हैं। रातों रात ऐसा कैसे हो गया। 15 अगस्त को सुबह से ही लोग सिरों पर दूध की बाल्टियां और पानी से भरे घड़ों को लेकर रावत पाड़ा चौराहा पहुंच गए। रेडियो पर आजादी मिलने की खबरें आने लगीं। चौराहे पर लोग रेडियो सुनने लगे। शहर में ऊंचे-ऊंचे खंभों पर तिरंगा भी फहराया गया। आज 88 की उम्र है। उसके बाद भी आजादी का पहला जश्न जितने उत्साह से मनाया। वह कभी नहीं भूल सकता हूं।

दीवारों पर नारे लिखे, रात में ही जुलूस निकाल दिया
छीपीटोला निवासी एचपी बंसल बताते हैं कि आजादी के समय उनकी उम्र 11 वर्ष की थी। आजादी की बात पता लगी तो घर से निकलकर पड़े। एक दर्जन से ज्यादा बच्चे शीशियों में रंग ले आए। कलम निकाली और दीवारों पर आजादी के नारे लिखने लगे। रात होते-होते ही घर में आजादी की चर्चाएं तेज हो गईं। बताया गया कि सुबह सब लोग जश्न मनाएंगे। फिर क्या था। सुबह का इंतजार कौन करता। 14 अगस्त की रात दो बजे ही फिर निकल पड़े। घर के बाहर देखा तो काफी लोग नारे लगाते हुए जुलूस के रूप में जा रहे थे। उनके साथ ही जुलूस में शामिल हो गए। सुबह ऐसा जश्न मनाया कि रात तक सड़कों पर ही गीत गाते घूमते रहे।

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