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केवाईसीके साथ नए खाते खोलने के नियमों पर भड़के ग्राहक, बैंक ने पूछी खाताधारकों की जाति

जातिवाद की जड़ें अब देश के आर्थिक तंत्र तक पहुंच गई हैं। ऐसा न होता तो बैंक अपने खाताधारकों की जाति नहीं पूछती। न सिर्फ केवाईसी (नो यॉर कस्टमर) बल्कि नए खाते खोलने के लिए जो कॉलम रखे गए हैं, उसमें बिंदास पूछा जा रहा है कि आपकी जाति क्या है।

Srishti Kunj हिन्दुस्तान, आगराWed, 13 Nov 2024 10:25 AM
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जातिवाद की जड़ें अब देश के आर्थिक तंत्र तक पहुंच गई हैं। ऐसा न होता तो बैंक अपने खाताधारकों की जाति नहीं पूछती। न सिर्फ केवाईसी (नो यॉर कस्टमर) बल्कि नए खाते खोलने के लिए जो कॉलम रखे गए हैं, उसमें बिंदास पूछा जा रहा है कि आपकी जाति क्या है। आप ओबीसी हैं, सामान्य हैं या फिर अनुसूचित जाति, जनजाति से वास्ता रखते हैं। इस स्थिति को लेकर वरिष्ठ नागरिक आशंका जताते हैं, आम जनता इस भेदभाव को कब तक सहती रहेगी। उन की चाहत है कि देश की प्रगति में बाधक यह जातीय भेदभाव समाप्त होना चाहिये।

जिस तरह से राजनैतिक दल जाति को लेकर अपनी खिचड़ी पका रहे हैं, लोगों की मुश्किलों को सुनने की बजाए, जाति आधारित आंसू बहा रहे हैं। मौजूदा बदलाव से तो लगता है कि इस कैंसर ने पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया है। अपनी व्यथा सुनाते हुए दयालबाग रोड पर एक कॉलोनी में रहने वाले वरिष्ठ नागरिक ने बताया कि उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र की बैंक में केवाईसी कराने के लिए फार्म लिया।

उनका कहना है कि इस फार्म में ऐसे अनेक कॉलम थे, जिनका केवाईसी से कोई लेना देना नहीं। इन बेवजह के कॉलम के कारण यह फार्म बहुत ज्यादा जटिल हो गया है। खासतौर से जातिगत सवाल से वे आहत हुए। उनका कहना है कि इस जानकारी की बैंक को क्यों जरूरत है। क्या जाति के आधार पर बैंक की ब्याज दर तय की जाएगी।

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केवाईसी की मूल वजह
बैंकों द्वारा समय के बदलाव के साथ अपने खाताधारको की पहचान को जांचा जाता है। इसमें सतर्कता स्तर के अनुसार दो से दस साल की अवधि में इस प्रक्रिया को प्रत्येक खाताधारक के लिए कराया जाता है। कुछ का पता बदल जाता है, सूरत बदलती है, हस्ताक्षर या नंबर बदलते है। यह सभी विवरण बैंक के डाटा बेस में दुरुस्त हो जाते हैं। इसकी पुष्टि बैंक को करना होती है। इसमें फोटो भी लगता है, आधार पैन भी फीड होते हैं। लेकिन जिस तरह से केवाईसी में जाति सहित अन्य जानकारियां मांगी जा रही हैं, उतनी तो शादी ब्याह में भी नहीं ली जाती।

ऐसे सवालों का क्या औचित्य
वरिष्ठ नागरिक, जनार्दन सिंह भदौरिया ने कहा कि केवाईसी के फार्म में पूछा जा रहा है कि आप शादी शुदा हैं या फिर गैर शादी शुदा। आपकी जाति क्या है। आपके अंग ठीक ठाक हैं कि नहीं। मुझे प्रतीत होता है कि इन जानकारियों की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। इसका कोई औचित्य नहीं। एक तरफ शासन में अनावश्यक जटिलताओं को कम करने का दावा किया जा रहा है। दूसरी तरफ फार्म में इस तरह जानकारियां मांग कर लोगों का समय खराब किया जा रहा है। सरकार को चाहिए कि इस तरह के गैर जिम्मेदारी भरे कदम उठाने के लिए संबंधित के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।

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