बोले उन्नाव : दुनियाभर में पहचान, अब टूटने लगे हमारे अरमान
Unnao News - जिले के जरी-जरदोजी कारीगरों ने अपनी समस्याओं को साझा किया है। उन्हें प्रशिक्षण, सामग्री, और उचित बाजार की कमी का सामना करना पड़ रहा है। सरकार ने एक जिला एक उत्पाद योजना में जरी-जरदोजी को शामिल किया...
दुकान हो या घर, लकड़ी के फ्रेम पर फंसा कपड़ा, पास बैठे कारीगर, सुईं-धागे से कपड़े पर सितारे, मोती और सीप टांककर खूबसूरत लुक देती उनकी उंगलियां। यह नजारा जिलेभर के गांव और कस्बों में देखने को मिलता है। यहीं से शुरू होता है जरी-जरदोजी (कढ़ाई) का काम। जरी-जरदोजी के रंग-बिरंगे परिधान लोगों का ध्यान खींच रहे हैं, लेकिन कारीगरों को प्रशिक्षण, जरूरी मैटेरियल की कमी पूरी करने के लिए सुगम बाजार की जरूरत है। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान से जरी-जरदोजी के कारीगरों ने अपनी पीड़ा साझा की। सभी ने एकसुर में कहा कि यह काम अब बहुत महंगा है। काम के हिसाब से रुपये नहीं मिल रहे हैं। केंद्र सरकार की ओर से संचालित एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना में जिले की हस्तशिल्प कला जरी-जरदोजी शामिल है। इसे नई ऊंचाइयां तो मिलीं, लेकिन अभी भी इसके कामगारों को उत्थान की आस है। सरकार ने जिले में दो सीएफसी (कॉमन फैसिलिटी सेंटर) को हरी झंडी दी थी। इसमें एक सिविल लाइंस में 2 करोड़ 24 लाख रुपये से तैयार है। इसमें 90 फीसदी सरकार और 10 फीसदी लाभार्थी का पैसा लगा है। मियागंज में दूसरा कलस्टर भी बनकर तैयार हो चुका है। बस जल्द शुरू होने का इंतजार है। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से चर्चा के दौरान कलस्टर की प्रभारी जाहिरा ने बताया कि इस समय जिले में सदर क्षेत्र के अलावा कुरसठ, बारीथाना, मियागंज, आसीवन, हैदराबाद, मोहान, हसनगंज और सफीपुर में जरी-जरदोजी कला से करीब 10 से 15 हजार कारीगर जुड़े हैं। ये वो लोग हैं, जो काम सीख रहे हैं और रजिस्टर्ड लोगों के साथ काम कर रहे हैं। साथ ही, पीढ़ियों से साड़ियों, सलवार सूट, दुपट्टे आदि में कढ़ाई का कार्य करते हैं। जिले के जरी से कढ़े कपड़ों की कानपुर, लखनऊ, दिल्ली, मुंबई, जयपुर, कोलकाता में काफी मांग है। दुबई, सिंगापुर और सऊदिया से भी आर्डर की बातचीत चल रही है।
कामगार असद ने बताया कि कामगारों को प्रशिक्षण और जरूरी सामग्री की कमी पूरी करने के लिए सुगम बाजार मिलना चाहिए। अगर शहर की मार्केट में जरी-जरदोजी की बिक्री के लिए दुकान-शोरूम बनें तो लोग इसके विषय में जानेंगे और खरीद के लिए भी आगे बढ़ेंगे। फैजी फारूकी ने बताया कि बुनाई-कढ़ाई में काम आने वाले उपकरण और सामग्री कामगारों को उनके नजदीक उपलब्ध हो। कई बार इनके न मिलने के कारण काम प्रभावित होता है। असर रजा ने कहा कि जरी-जरदोजी काम से जुड़े कारीगरों को सामग्री उनके घरों पर उपलब्ध कराने का संसाधन हो। काम पूरा होने पर भुगतान की त्वरित व्यवस्था और जरूरत पर आकस्मिक मदद भी दी जाए।
250 यूनिटों में मिल रहा 10 हजार को रोजगार
सिविल लाइंस स्थित सीएफसी चलाने वाली जाहिरा बताती हैं कि इस समय जिले में संचालित 250 यूनिटों में 10 हजार कामगार रजिस्टर्ड हैं। इन्हें रोजगार मिल रहा है। इनके परिवार भी इससे जुड़े हैं। मियागंज में एक और सीएफसी बन रही है। इसके तैयार होने पर बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलेगा।
अब पहले जैसे काम नहीं
कारीगर राकेश बताते हैं कि जिले में एक समय ऐसा था, जब शहर से लेकर दूरदराज के गांवों में जरी का काम होता था। लेकिन, जिले में अब दिनोंदिन जरी का काम कम होता जा रहा है। शहर की तंग गलियों से लेकर गांवों तक अब इस काम में दम नहीं रह गया है। इससे जुड़े सफीक का कहना है कि कारीगर कहीं छोटे तो कहीं बड़े कपड़ों पर रंगीले धागे, सितारे, नग, मोशे जड़कर अपनी किस्मत को लिखने की कोशिश करते हैं। लेकिन, किस्मत और समय ने उनका कभी साथ नहीं दिया है। इसके चलते बहुत से कारीगरों ने दूसरा काम अपना लिया।
नई पीढ़ी अब इस काम से भाग रही दूर
जरी के कारीगर संजय कहते हैं कि दिन प्रति दिन जरी की रंगत फीकी पड़ रही है। आर्थिक दुश्वारियों के कारण नई पीढ़ी इससे दूर भाग रही है। मशीनें चलाने का प्रशिक्षण और इस पेशे की आमदनी में बढ़ोतरी हो तो कारीगरों का जीवन यापन भी आसानी से कट सके। इसके लिए सरकारी मदद और जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने पर भी जोर देना चाहिए। अगर मशीनों की उलब्धता करा दी जाए तो जल्दी ऑर्डर तैयार कर सस्ते रेट पर बेच दिया जाए। हाथ से काफी मेहनत लगती है और समय भी। इसके कारण महंगा हो जाता है।
सुझाव
1. काम के दौरान हादसे का डर रहता है। इसलिए प्रत्येक कारीगर का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा होना चाहिए।
2. मजदूरी कम है। कारीगरों की मजदूरी बढ़ाकर 600 रुपये तक होनी चाहिए।
3. सरकार द्वारा कारीगरों को कम ब्याज पर लोन दिया जाए ताकि काम को बढ़ावा मिल सके।
4. प्रत्येक कारीगर का पंजीकरण होना चाहिए। दुर्घटना बीमा और पेंशन जैसी व्यवस्था हो।
5. कारीगरों से सिर्फ आठ घंटे ही काम कराने की व्यवस्था हो।
6. कारीगरों के उत्पाद बिक्री के लिए शहर में बाजार की व्यवस्था होनी चाहिए।
शिकायतें
1. जी-तोड़ मेहनत के बाद भी कारीगरों को काम में सरकारी प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है।
2. मेहनत अधिक और मुनाफा कम होने के कारण युवा इस काम से दूरी बना रहे हैं।
3. शहर से कनेक्टिविटी कम होने से कारोबार करने में दिक्कत हो रही है।
4. कारीगरों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। मेडिकल, पेंशन तक की व्यवस्था नहीं है।
5. कारीगरों के सामने नई तकनीक सीखने का कोई माध्यम नहीं है।
6. शहर में जरी-जरदोजी का कोई बाजार न होने से उत्पाद बिक्री में दिक्कत आ रही है।
बोले जरदोजी कारीगर
जरी उत्पादों की मांग बढ़ रही है। लेकिन, इस काम को करने वाले लोगों के मेहनताने में आज तक कोई वृद्धि नहीं हुई है।
- जाबिल्लाह
सरकार की तरफ से कोई प्रशिक्षण भी नहीं मिलता है। यदि प्रशिक्षण मिले तो काम करने की गति में तेजी से इजाफा हो जाएगा। - शेखर शर्मा
जरी-जरदोजी के काम में सब निगाह का खेल होता है। आंखे जल्द खराब होती हैं। शासन निशुल्क इलाज की सुविधा दे। - असद
इस काम में मशीनों का इस्तेमाल होने लगा है। यदि मशीनों का प्रशिक्षण मिल जाए तो मेहनत भी घट जाएगी।
- उज्मा
बुनकर समाज के लिए विभिन्न योजनाएं हैं, लेकिन हम लोगों को इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है।
- फैजी फारूकी
बोले जिम्मेदार
समस्याओं से जल्द छुटकारा मिलेगा
जरी-जरदोजी एक जिला-एक उत्पाद में शामिल है। इसे बढ़ाने के लिए सरकार काफी मदद कर रही है। इसको लेकर कामगारों को जागरूक भी किया जाएगा। अन्य समस्याओं का जल्द से जल्द समाधान कराया जाएगा।
-प्रेम प्रकाश मीणा, सीडीओ उन्नाव
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