बोले उन्नाव : बच्चों के लिए केयर यूनिट तो बनवा दीजिए
Unnao News - महिलाओं ने कार्यस्थल पर अपनी समस्याओं को साझा किया, जैसे कि शौचालय की कमी, बच्चों की देखभाल के लिए सुविधाओं की कमी और सुरक्षा की समस्याएं। उन्होंने सरकार से मांग की कि महिलाओं के लिए बेहतर परिवहन, अलग...
आसमान छूने की चाहत में पंख फैला तो लिए हमने, पर उड़ने की दुश्वारियां कोई हमसे पूछे। कार्यस्थल पर नजर और नजरिए में द्वंद्व चलता है। अपनी बात और अनुभव किससे शेयर करें। हर असहज माहौल और दुश्वारियों के बीच खुद को ढालने की कशमकश में लगे हैं। यह सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से कामकाजी महिलाओं ने अपनी पीड़ा साझा की। सभी ने एकसुर में कहा कि हमें लेकर सिर्फ बड़ी बातें ही होती हैं, जबकि हकीकत ये है कि कार्यस्थल पर बच्चों के लिए केयर यूनिट और शौचालय की बेहतर व्यवस्था नहीं है। जिले में सरकारी कार्यालयों के अलावा तमाम क्षेत्र में करीब 20 हजार से ज्यादा महिलाएं रोजगार से जुड़ी हैं। मगर, उनकी सुविधाओं को लेकर अधिकांश जगह अनदेखी की जा रही है। बेसिक शिक्षा विभाग में कार्यरत रुचि मिश्रा ने बताया कि अधिकांश ऑफिस में महिलाओं के लिए अलग से शौचालय नहीं है। एक में पुरुष और महिलाओं के जाने की व्यवस्था है। यह महिलाओं का मौलिक अधिकार है। इस पर ध्यान देना जरूरी है।
शिक्षिका प्रतिभा ने बताया कि महिला को आवागमन में काफी मुश्किलें होती हैं। इसके लिए पिंक ऑटो और बसों का संचालन होना चाहिए। इससे महिलाओं के आवागमन में काफी सहूलियत मिलेगी, क्योंकि सामान्य वाहनों में एक साथ सफर करना काफी मुश्किल भरा होता है। शासन-प्रशासन स्तर से महिलाओं के लिए यह व्यवस्था कर दी जाए तो राह आसान हो जाएगी। शॉपिंग मॉल में तैनात महिला रिंकी ने बताया कि शॉपिंग मॉल हो या फिर होटल, रेस्तरां सबमें महिलाओं की भागीदारी है। मगर, वेतन के नाम पर कुछ हजार ही हाथ में आते हैं। इसके लिए सरकार को हमारे विषय में भी कुछ सोचना चाहिए। क्योंकि, इतने कम रुपये में घर खर्च चलाना काफी मुश्किल होता है। तहसील में तैनात गीता पांडेय ने बताया कि सरकारी विभागों में बड़ी संख्या में महिला कर्मचारियों की तैनाती है। उसमें बड़ी संख्या में ऐसी कर्मचारी हैं, जिनके बच्चों की देखरेख के लिए घर में भी कोई नहीं रहता है। इसके लिए हर विभाग में चाइल्ड केयर यूनिट की आवश्यकता है। इस पर विचार किया जाना चाहिए। अगर महिला नौकरी कर रही है तो उनके बच्चों की देखरेख के लिए यह व्यवस्था जरूरी है। यूनिट न होने से घर पर किसी बाहरी के सहारे बच्चों को छोड़कर आने से काम में ध्यान नहीं लग पाता है।
मार्गों पर बढ़ाई जाए महिला पिकेट
शिक्षिका प्रज्ञा शुक्ला ने बताया कि घर से बाहर निकलकर काम करना महिलाओं के लिए बड़ी चुनौती है। आज भी महिलाओं के प्रति लोगों का नजरिया काफी इतर है। स्कूल, ऑफिस हो या फिर मार्ग हर जगह उन्हें दूसरी नजरों से देखा जाता है। इससे महिलाएं असहज महसूस करती हैं। कई लोगों की नीयत भी साफ नहीं होती है। इससे डर लगता है। इस पर कानून का सख्त रवैया जरूरी है। मार्गों पर महिला पिकेट बढ़ानी चाहिए ताकि महिलाएं उनसे अपनी बात रख सकें।
सरकारी विभागों में प्रसाधन की व्यवस्था अलग हो
अमिता बाजपेयी ने बताया कि कार्यस्थल पर काम का दबाव कुछ कारण से तनाव भी देने लगता है। ज्यादातर सरकारी विभागों में महिलाओं के लिए अलग प्रसाधन (टॉयलेट-शौचालय) नहीं है। महिलाओं के नाम पर बने शौचालय में बेरोकटोक पुरुष कर्मचारी भी जाते हैं। कई विभागों में महिला शौचालय बना तो जरूर है, लेकिन उसकी स्वच्छता का ध्यान नहीं रखा जाता है। इस कारण काफी दिक्कत होती है। इस पर विचार किया जाना चाहिए।
महिला ग्रीवांस सेल का हो गठन
महिला कर्मचारियों ने बताया कि कई बार पुरुष सहकर्मियों और दफ्तर आने वाले फरियादियों की अटपटी नजरें असहज कर देती हैं। महिला कर्मचारियों की छोटी-सी भूल को वे तिल का ताड़ बना देते हैं तो अच्छे काम के चलते मिलने वाली प्रशंसा बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। तरह-तरह बातें बनाते हैं। साथ में एक-दो महिलाएं काम कर रही हों तो ठीक वरना कामकाजी महिलाएं तो अपने कटु अनुभव किसी से शेयर भी नहीं कर पाती है। यह असुरक्षा का सबसे बड़ा कारण है। सरकारी विभागों में भी महिला ग्रीवांस सेल का गठन होना चाहिए।
प्रमुख सड़कों पर ‘पिंक पाथवे का हो निर्माण
महिलाएं सरकारी क्षेत्र में कार्यरत हों या निजी कंपनी, अस्पताल या स्कूल-कॉलेज में, उन्हें मोहल्लों-कॉलोनियों और गलियों के मोड़, बाजारों में शोहदों की छींटाकशी और मनचलों की हरकतें कचोटती हैं। असुरक्षित माहौल का अहसास कराती हैं। निधि सिंह, अरुणती समेत सभी ने कहा कि एंटी रोमियो स्क्वायड या दूसरे किसी सेल का गठन, समय-समय पर पुलिस की फुट पेट्रोलिंग अच्छी बात है, लेकिन आम महिलाओं को रात 10 बजे भी सड़कों पर पूर्ण सुरक्षित होने का अहसास होना जरूरी है। पिंक ऑटो की तरह प्रमुख सड़कों पर ‘पिंक पाथवे के भी निर्माण पर प्रशासन-सरकार को सोचना चाहिए।
शहर में पिंक ऑटो और बसें चलाई जाएं
शिक्षिका सीमा शुक्ला ने बताया कि महिलाओं को अपने दफ्तर या कार्यस्थल तक सुरक्षित परिवहन की कमी बहुत अखरती है। आम ऑटो में यात्रा के दौरान वे खुद को असहज महसूस करती हैं। कई बार उन्हें ऑटो या ई-रिक्शा चालक के मुंह से शराब की दुर्गंध महसूस हुई तो उन्होंने कुछ दूर तक पैदल जाना उचित समझा। लौटते समय ऐसी परिस्थिति से अधिक सामना करना पड़ता है। जाड़े के मौसम में ऐसा अनुभव अक्सर तनावग्रस्त कर देता है। रचना सिंह ने कहा कि कुछ चिह्नित सड़कों पर पिंक ऑटो चले तो बहुत अच्छा रहेगा।
हर कार्यालय में बने बेबी फीडिंग क्यूबिकल
महिलाओं ने मांग करते हुए कहा कि हर कार्यालय में बेबी फीडिंग क्यूबिकल बनवाया जाए। जहां कामकाजी महिलाएं बेफिक्र होकर अपने शिशुओं को स्तनपान करा सकें। यह व्यवस्था कार्यालयों में न होने से छोटे बच्चों के साथ आने वाली महिलाओं को कोना तलाशना पड़ता है। सार्वजनिक स्थान पर स्तनपान कराने पर सबकी नजरें रहती हैं।
सुझाव
1. विभागों में क्रेच की स्थापना की जाए ताकि महिला अधिकारी और कर्मचारी अपने बच्चों को कार्यालय समय के दौरान
छोड़ सकें।
2. बाजारों में महिलाओं के लिए सार्वजनिक शौचालय बनना चाहिए। पहले से बने शौचालयों की नियमित सफाई हो।
3. खराब स्ट्रीट लाइटों को ठीक कराया जाए। रात में आते समय सड़क पर अंधेरा होने से भय बना रहता है। पिंकऑटो या ई-रिक्शा चलाने की जरूरत है।
4. महिला सुरक्षा सेल को सक्रिय किया जाए। इसकी सूचना कार्यालय में चस्पा की जाए। सादी वर्दी में पुलिस शोहदों पर अंकुश लगाए।
5. कार्यालयों में काम का बोझ कम हो। जहां पर भी पद खाली पड़े हैं, वहां जल्द से जल्द भर्ती होनी चाहिए।
शिकायतें
1. केंद्र और राज्य सरकार के कार्यालयों में बच्चों की देखभाल के लिए सेंटर (क्रेच) नहीं हैं। इस कारण महिलाओं को काफी समस्या होती है।
2. बाजारों में महिलाओं के लिए सार्वजनिक शौचालय नहीं हैं। कहीं हैं भी तो वहां गंदगी की भरमार रहती है।
3. देर शाम कार्यालय से बाहर निकलने पर भय लगता है। कई मुख्य मार्गों पर स्ट्रीट लाइट कई माह से बंद हैं। लुटेरों का डर बना रहता है।
4. कई विभागों में महिला सुरक्षा सेल नहीं है। जहां हैं तो निष्क्रिय हैं। कागज पर ही सेल काम करती है। इसकी जानकारी भी नहीं होती है।
5. काम का बोझ बढ़ता जा रहा है। नियमित और संविदा पर काम करने वाली महिलाओं का लंबे समय से प्रमोशन नहीं हुआ है।
बोलीं कामकाजी महिलाएं
शहर में बढ़ते जाम से बहुत परेशानी होती है। आधे घंटे का सफर तय करने में कई घंटे लग जाते हैं। इस कारण जाम से निजात मिलनी चाहिए। - अपर्णा मिश्रा
लड़कियों पर छींटाकशी की घटनाएं बढ़ रही हैं। इससे युवतियां और शिक्षिका असुरक्षित महसूस कर रही हैं। रात को सुरक्षा और बढ़ानी चाहिए। -उषरा
रात में महिला कर्मचारियों को घर लौटने पर कई रूटों पर वाहनों की कमी का सामना करना पड़ता है। जो वाहन मिलते हैं, वे ज्यादा दाम मांगते हैं।
- रोली गौर
शहर के मेन बाजारों और स्थानों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय की सुविधा नहीं है। इस कारण असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है। - रिंकी गुप्ता
सुरक्षा के दृष्टिगत काफी अच्छी व्यवस्था है। मगर, रात को निकलने में महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं। इस पर ध्यान दिया जाए। - शर्मिला मिश्रा
बोलीं जिम्मेदार
थाने में महिला हेल्प डेस्क हर समय पुलिसकर्मी तैनात रहती है। शहर में एंटी रोमियो स्क्वायड भी सक्रिय है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए पुलिस लगातार सक्रियता बनाए हुए है। अराजकतत्वों को पकड़ने के लिएअभियान भी चलाए जाते हैं। - सोनम सिंह, सीओ सिटी
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