बोले उन्नाव : समस्याएं चला रहीं हमारे व्यापार पर आरी
Unnao News - फर्नीचर कारोबारियों ने बताया कि लकड़ी के सामान की जगह एल्युमीनियम और प्लास्टिक के उत्पादों का प्रचलन बढ़ गया है। ऑनलाइन शॉपिंग और बड़ी कंपनियों के कारण व्यापार में कमी आई है। लकड़ी की कमी और महंगाई ने भी...
घर, ऑफिस और दफ्तरों की शोभा-सुरक्षा के लिए एक दौर में लकड़ी के सामान का प्रयोग होता था, लेकिन बदलते दौर में रेडीमेड तरीके से यह सामान बनाया जाने लगा। ऐसे में बड़ी कंपनियों की दखल और प्लाईवुड का बढ़ता चलन फर्नीचर कारोबारियों के सामने एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से फर्नीचर कारोबारियों ने अपनी पीड़ा साझा की। सभी ने एकसुर में कहा कि लकड़ी कटान में नियमों की जटिलता, बढ़ी बिजली दर के साथ एल्यूमीनियम और प्लास्टिक का बढ़ता प्रचलन व्यापार को प्रभावित कर रहा है। बड़ी-बड़ी कंपनियां गुणवत्ताविहीन मैटेरियल प्रयोग कर शानदार फिनिशिंग के साथ अपने उत्पाद बेच रही हैं। जो देखने में तो अच्छा लगता है, उनकी गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है।
पहले घर की शोभा बढ़ाने के लिए लकड़ी की कुर्सी, सोफा, टेबल और अलमीरा का प्रयोग किया जाता था। अब लोग एल्युमिनियम, प्लास्टिक और फाइबर के उत्पादों को तरजीह दे रहे हैं। एल्यूमीनियम और प्लास्टिक के रेडीमेड उत्पादों ने लकड़ी से बनी कुर्सी, बेड और अलमीरा को किनारे कर दिया। फर्नीचर दुकानदार निखिल बताते हैं कि 90 के दशक तक लोग लकड़ी के सामान पर काफी खर्च करते थे। अच्छी नक्काशी और मजबूती के लिए शीशम, आम, चीड़ और सागौन की लकड़ी का प्रयोग कराना लोगों को पसंद था, क्योंकि यह लकड़ी बेहद मजबूत और टिकाऊ रहती है। लेकिन, आज के दौर में लकड़ी का काम काफी कम हो गया है। अब आसानी से लकड़ी मिलती भी नहीं है। कच्चा माल आरा मशीनों तक न पहुंचने से काम में कमी आई है।
फर्नीचर कारोबारी शैलेंद्र ने बताया कि अब लोग अपने घरों को सजाने के लिए महंगे से महंगे वूडेन उत्पाद को खरीदने में झिझकते नहीं हैं। बड़े-बड़े शोरूम और मॉल में ये उत्पाद बिकने लगे हैं। लकड़ी की गुणवत्ता की बजाय बड़ी कंपनियों का जोर चमक-दमक और फिनिशिंग पर होता है। ग्राहक भी इन्हें ही खरीदने में दिलचस्पी दिखाते हैं। ये उत्पाद आर्ट बोर्ड के बने होते हैं। लोगों को इसका पछतावा कुछ समय बाद होता है, लेकिन खामियाजा हम जैसे कारोबारी भुगत रहे हैं। उन्होंने बताया कि कुछ दशक पहले तक ऑनलाइन शॉपिंग और बड़े-बड़े शोरूम में फर्नीचर का मैटेरियल नहीं बिकता था। अब ऑनलाइन फैक्ट्रियां बड़े पैमाने पर व्यापार करती हैं और सीधे होम डिलीवरी करती हैं। इसका सीधा असर आम दुकानदारों पर पड़ा है। स्थानीय स्तर पर प्रशासन की उपेक्षा का शिकार फर्नीचर कारोबारी हो रहे हैं। वहीं, मशीनी युग में फर्नीचर बनाने के लिए कई तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी खरीदने होते हैं। इमारती लकड़ियां गैर प्रांतों से आने के कारण महंगी हो गई हैं। आम और शीशम तो कमोवेश जिले में उपलब्ध हो जाता है, लेकिन अन्य लकड़ियां दूसरी जगहों से ही आती हैं। महंगाई के दौर में कारीगरी भी बढ़ गई है। ऐसे में लकड़ी से बने फर्नीचर की कीमत भी मनमाफिक नहीं मिलती है। मुकेश के मुताबिक, अधिकांश कारोबारी बैंकों से लोन लेकर धंधा करते हैं। बाजार मंदा होने के कारण लोन की भरपाई भी मुश्किल हो जाती है।
ऑनलाइन से 40 फीसदी व्यापार हुआ कम
मनोज ने बताया कि ऑनलाइन बाजार भी कारोबार को प्रभावित कर रहा है। चमकदार फिनिशिंग देखकर ग्राहक भी उनके सामान को खरीदने में दिलचस्पी दिखाते हैं। जबकि, क्वालिटी डाउन कर यह सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराते हैं। ऑनलाइन ने 40 फीसदी से अधिक काम कम कर दिया है।
लकड़ी का इंतजाम सबसे बड़ा संकट
बृजेंद्र कुमार अवस्थी ने बताया कि इस कारोबार में लकड़ी का ही संकट है। मजबूर होकर पलंग, ड्रेसिंग, सोफा, डाइनिंग टेबल समेत अन्य सामानों में प्लाई ही लगानी पड़ती है। पंजीकृत आरा मशीन संचालक माल बाहर से मंगवाते हैं। उनके यहां से आर्डर के अनुसार लकड़ी खरीदकर लाते हैं। इससे कुछ हद तक समस्या का निदान हो जाता है, लेकिन खर्च बढ़ जाता है। इसके चलते फर्नीचर की कीमत भी बढ़ती है। दूसरी ओर ग्राहक कीमत की बड़ी कंपनियों से तुलना करते हैं।
सुझाव
1. फर्नीचर कारोबारियों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए बिना ब्याज के लोन मिलना चाहिए।
2. कारोबार के लिए उद्योग विभाग सहयोग करे। अनुदान मिलने से कारोबार बढ़ सकेगा
3. पालिका की ओर फर्नीचर रखने के लिए स्थायी जगह की व्यवस्था की जाए ताकि माल रखने में आसानी हो।
4. ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगे ताकि ग्राहक दुकानदारों के पास आकर ही फर्नीचर का उत्पाद खरीद सकें।
5. लकड़ी बाहर से मंगानी पड़ती है। इससे लागत बढ़ती है। वन विभाग स्थानीय स्तर पर दुकानदारों को
लकड़ी उपलब्ध कराए।
6. बड़ी कंपनियां घटिया किस्म का माल लगाकर सस्ती कीमतों पर बेचती हैं। इन पर अंकुश लगाया जाए।
शिकायतें
1. अतिक्रमण हटाने के नाम पर फर्नीचर कारोबारियों को परेशान किया जाता है। अफसर की ओर से मनमाना जुर्माना भी लगाया जाता है।
2. सरकार की ओर से कोई सहयोग नहीं मिलता है। बैंक से लोन लेने पर कोई अनुदान भी नहीं दिया जाता है
3. लकड़ी कानपुर से मंगाते हैं। इसमें किराया लग जाता है। फर्नीचर की कीमत भी बढ़ जाती है।
4. प्लाई बोर्ड से बने पलंग, ड्रेसिंग, सोफा रेडीमेड आ रहे हैं। इसका असर स्थानीय कारोबारियों पर पड़ा है।
5. लकड़ी लदे वाहनों को कारखाने तक लाने के लिए रास्ते में पुलिस शेाषण करती है।
6. बढ़ी टैक्स दर और बिजली के बिल अदा करने में मुनाफे का काफी हिस्सा चला जाता है।
बोले फर्नीचर कारोबारी
पानी निकासी की व्यवस्था ठीक नहीं है। नालियां बजबजा रही हैं। बारिश के समय दिक्कत बढ़ जाती है। सामान भी खराब होता है। - रोहित
लकड़ी बाहर से मंगानी पड़ती है। इससे लागत बढ़ती है तो फर्नीचर की कीमत भी बढ़ जाती है। धंधे में ज्यादा मुनाफा नहीं है। - अभिषेक
आधुनिकता के दौर में बड़े पैमाने पर माल तैयार कर कंपनियां होम डिलीवरी कर रही हैं। इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। - निखिल
बड़ी कंपनियों और ऑनलाइन की बढ़ते दखल से प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है। सस्ते के चक्कर में क्वालिटी से समझौता करना पड़ता है। - रोहित
पालिका कब्जा हटाने के नाम पर कार्रवाई करती है। जबकि, बेतरतीब ऑटो- ई-रिक्शा के कारण जाम लगता है।
- बृजेंद्र कुमार अवस्थी
बोले जिम्मेदार
25 लाख तक के लोन पर सब्सिडी मिलती है
सीएम युवा स्वरोजगार योजना के तहत 25 लाख तक का लोन ले सकते हैं। इसमें सब्सिडी भी मिलती है। युवी उद्यमी अभियान के तहत 5 लाख तक का लोन मिलता है। यह लोन ब्याज मुक्त है। - करुणा राय, उपायुक्त उद्योग
बैठक में शहर को जाम मुक्त रखने पर जोर
शहर में यातायात की व्यवस्था ठीक रखने के लिए ट्रैफिक पुलिस को तैनात किया जाता है। सुरक्षा समिति की बैठक में शहर को जाम मुक्त रखने की बात रखी जाएगी।
- सुनील सिंह, ट्रैफिक इंस्पेक्टर
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