बोले उन्नाव : हर सुबह उम्मीदें जागती हैं.. हर शाम कुछ बुझ जाती हैं
Unnao News - अज़हर इकबाल की शायरी मजदूरों की कठिनाईयों को दर्शाती है। हर दिन काम की तलाश में आने वाले मजदूरों को स्थायी रोजगार और सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। महंगाई के कारण चार सौ रुपये दिहाड़ी में...
‘नींद आएगी भला कैसे उसे शाम के बाद, रोटियां भी न मयस्सर हों जिसे काम के बाद। अज़हर इकबाल की यह शायरी उन हजारों मजदूरों की हकीकत बयां करती है, जो हर सुबह अपने घर-परिवार की रोटी के लिए उम्मीद का बोझ उठाकर मंडी पहुंचते हैं। इन मेहनतकश हाथों के पास हुनर तो है पर स्थायी रोजगार नहीं। दिनभर मेहनत करने के बावजूद जब शाम को काम न मिले, तो भूख से ज्यादा अपमान सालता है। बिना पढ़ाई-लिखाई के सरकारी योजनाओं का लाभ भी इन तक नहीं पहुंच पाता है। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से दिहाड़ी मजदूरों ने अपनी पीड़ा साझा की। सभी ने एकसुर में कहा कि हर सुबह काम मिलनी की उम्मीदें जागती हैं पर कभी-कभी काम न मिलने से उम्मीदें बुझ जाती हैं।
मजदूर ही कड़ी मेहनत करके हमारे छोटे से घर को आलीशान बंगले और कोठी में तब्दील करने की ताकत रखता है। क्योंकि, वह अपना श्रम बिक्री करता है और बदले में उसे केवल न्यूनतम मजदूरी ही हासिल होती है। एक मजदूर का जीवन सिर्फ खुद और परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने में निकल जाता है। रोजगार की तलाश में शहर की गांधी नगर मोहल्ला मंडी आए कल्याणी देवी मोहल्ला निवासी बच्चू और पूरननगर निवासी घनश्याम ने बताया कि काम मिला तो शाम को चार सौ रुपये दिहाड़ी मजदूरी मिल जाती है। अगर काम नहीं मिला तो खाली हाथ घर लौटना पड़ता है। घर पहुंचने पर परिजनों का ताना सुन दूसरे दिन की सुबह का इंतजार करने लगते हैं। आलम यह है कि अब पहले जैसा दौर नहीं रह गया है। लोगों के घर पर काम करने के दौरान खिलाते-पिलाते भी थे। मगर, अब महंगाई के दौर में कोई खाने तक को नहीं पूछता है।
ईदगाह निवासी बब्लू ने बताया कि चार सौ रुपये दिहाड़ी में खुद और परिवार का पेट भरना दूभर हो गया है। सरकार और प्रशासन की ओर से अगर हमें प्रतिदिन रोजगार मुहैया हो, तभी परिवार का गुजर बसर हो सकेगा। लेबर कार्ड न होने की वजह से सरकार से संचालित योजनाओं के लाभ से भी वंचित रहना पड़ रहा है।
काम के घंटों के हिसाब से पैसा तक तय नहीं
अमृतलाल ने बताया कि देश को आजाद हुए इतने साल बीत गए, लेकिन आज तक दिहाड़ी मजदूरों के लिए काम के घंटों के हिसाब से पैसा तक तय नहीं हो सका। ऐसा नहीं कि सरकार कुछ नहीं कर रही । योजनाएं हैं, उनके लाभ भी हैं पर लाभ कु छ ही लोगों को मिल भी रहा है। योजनाओं का लाभ देने के लिए जगह-जगह कैंप लगाए जाने चाहिए। पुलिस मजदूरों को परेशान करती है। सभी मजदूरों का एक बार सत्यापन कर उन्हें पहचान पत्र दे देना चाहिए, जिससे पुलिस उन्हें परेशान न करे।
गांवों में मनरेगा की स्थिति बहुत खराब
बराती सोनकर ने बताया कि कई सालों से सड़क पर काम की तलाश में खड़े होते हैं। न कोई छाया का इंतजाम है और न ही पीने के पानी की व्यवस्था। पालिका जैसे, बस स्टाप,टेंपो स्टैंड, रैन बसेरा बनाती है वैसे दिहाड़ी मजदूरों के लिए भी स्टैंड या बसेरा बनना चाहिए। जहां छांव, पानी और शौचालय की व्यवस्था हो। काम के लिए मजदूरों को भटकना न पड़े साथ ही लोगों को भी आसानी से मजदूर मिल सकें। गांवों में मनरेगा की स्थिति खराब है। ग्राम प्रधान जेसीबी से काम करा लेते हैं, लेकिन हम लोगों को काम नहीं दिया जाता है।
योजनाओं में रजिस्ट्रेशन तो होता है पर लाभ नहीं
राहुल ने बताया कि धूप, बारिश, सर्दी में काम करते-करते न जाने कितना समय हो गया है, मगर परिवार की स्थिति नहीं बदल पा रही है। मजदूरों का विभिन्न योजनाओं में रजिस्ट्रेशन तो कराया जाता है इसके बाद भी उन्हें किसी योजना का लाभ नहीं मिल पाता है। सरकारी अधिकारियों को मजदूरों को लाभ देने वाली योजनाओं का प्रचार-प्रसार करना चाहिए। लाभ न मिलने पर उनकी शिकायतों को गंभीरता से सुनकर उसका निस्तारण करना चाहिए। हेल्थ कैंप भी लगाया जाए।
अपात्र ले रहे राशन का लाभ मजदूर भटक रहे पाने को : मजदूरों का कहना है कि पंजीयन न होने से उनके राशन कार्ड भी नहीं बने हैं। इस कारण उन्हें योग्य होने पर भी मुफ्त राशन नहीं मिल पाता है। वहीं, ऐसे तमाम अपात्रों का आसानी से राशन कार्ड बन गया और अब वे मुफ्त राशन का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। प्रशासन को चाहिए कि जिन मजदूर परिवारों के राशन कार्ड नहीं हैं, उनके राशन कार्ड बनवाए जाएं और उनके लिए मुफ्त राशन की व्यवस्था सुनिश्चित हो। प्रस्तुति..संजय मिश्रा, मयंक तिवारी
हम नहीं जानते कहां है श्रम विभाग, क्या हैं लाभ
संगठित और असंगठित मजदूरों को जरिए श्रम विभाग की सरकारी योजनाओं का लाभ दिए जाने की बात की जाती है। पर ज्यादातर मजदूरों ने श्रम विभाग के बारे में जानकारी से ही साफ इनकार किया। कहा कि हमें पता ही नहीं है, श्रम विभाग में क्या होता है। हमारे लिए योजनाए भी हैं। कभी कोई कुछ बताने नहीं आया।
सरकारी योजनाओं में ठेकेदार हावी: मजदूरों ने बताया कि जनपद में कहीं पुल निर्माण कार्य चल रहा है तो कहीं सड़कें बन रही हैं। सरकारी इमारतें भी खूब बन रही हैं। पर वहां काम नहीं मिलता है। ठेकेदारी प्रथा हावी रहती है।
काम न मिले तो किराया निकालना भी मुश्किल
शिवम सोनकर मुताबिक, मनरेगा के तहत नियमित काम न मिलने और विभागीय अधिकारियों द्वारा गड़बड़ी के चलते मजदूर पलायन को मजबूर होते हैं। शहर आने में प्रतिदिन या तो साइकिल से आना पड़ता है या फिर किराया लगाकर बस से आना होता है। उस पर भी काम न मिले तो दिनभर खराब हो जाता है। किराया अपनी जेब से देना होता है।
सुझाव
1. लेबर कार्ड बनवाने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
2. काम के बाद दिहाड़ी मजदूरी न देना और मारपीट करने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए
3. आयुष्मान कार्ड बनवाए जाएं, जिससे मजदूरों को भी स्वास्थ्य संबंधी बेहतर इलाज मिल सके।
4. मनरेगा में दिहाड़ी मजदूर बनाए जाने के साथ काम भी दिए जाएं। हर हाथ को काम मिल सके और मजदूरों को भटकना न पड़े
5. अफसर और जनप्रतिनिधियों को हमसे मिलकर हमारी समस्याएं सुननी चाहिए।
6. श्रमिक मिलने की दशा में परिवार का भरण-पोषण हो सके, इसके लिए सरकारी योजनाओं में काम मिले।
7. प्रत्येक मजदूर को सामाजिक सुरक्षा की गारंटी हर हाल में प्रदान की जाए।
शिकायतें
1. आठ घंटे बंधुआ मजदूर सा बनाकर रखा जाता है। भवन स्वामियों का बर्ताव भी अच्छा नहीं रहता है।
2. गांवों में काम न मिलने की वजह से शहर की मंडी
में आना पड़ता है।
3. शाम को देर होने पर गांव के लिए साधन तक न मिलने पर रात को फुटपाथ और स्टेशन पर सोना पड़ता है।
4. चार सौ रुपये दिहाड़ी मजदूरी में खुद और घर का खर्च चलाना दूभर हो गया है।
5. कम धनराशि में भी मजदूरी करनी पड़ती है।
6. अगर किसी दुकान के आसपास या प्रतिष्ठान के सामने खड़े हो जाते हैं तो तुरंत संचालक हटा देता है।
7. कोई यूनियन नहीं है। इस कारण सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं मिल पाती है।
बोले मजदूर
काम की तलाश में मंडी आना पड़ता है। काम मिला तो शाम को चार सौ मजदूरी मिल जाती है। नहीं तो खाली हाथ घर लौटना पड़ता है। - जितेंद्र
एक महीने में सिर्फ दस से पंद्रह दिन ही काम मिल पाता है। इससे मिलने वाली मजदूरी से ही किसी तरह परिवार चल रहा है। - बंटी
गांव में काम मिलता नहीं है। मनरेगा योजना के तहत मिलने वाली कम धनराशि से खुद व परिवार का खर्च चलाना मुश्किल है। - अनिल कुमार
पंद्रह किलोमीटर साइकिल से सफर तय कर मंडी आता हूं। गांव में मनरेगा योजना के तहत काम नहीं मिलता है। - सुमित मिश्र
मंडी आने पर यहां के दुकानदार अपशब्दों का प्रयोग करते हैं। विरोध करने पर गाली देते हुए गर्म पानी डालने की धमकी देते हैं। - रंजीत
बोले जिम्मेदार
कार्यालय आकर बनवा सकते हैं लेबर कार्ड
मजदूरों को योजनाओं का लाभ दिलवाया जा रहा है। कार्यालय आकर अपना लेबर कार्ड बनवा सकते हैं। बस 90 दिन काम का प्रमाण पत्र, बैंक पास बुक व आधार कार्ड होना चाहिए।
- एसएन नागेश, श्रम अधिकारी
शिकायत पर स्वामियों से दिलवाएंगे मजदूरी
अगर कोई भवन स्वामी मजदूर को मजदूरी न देने के साथ-साथ मारपीट आदि करता है तो मजदूर थाने पहुंचकर शिकायत करें। दोषी पर कार्रवाई कर मजदूरी दिलवाई जाएगी।
-सोनम सिंह, सीओ सिटी
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