बोले उन्नाव : हम जायके के उस्ताद लेकिन हमारी जिंदगी बेस्वाद
Unnao News - शादी या अन्य कार्यक्रमों में खाने का महत्व होता है, लेकिन हलवाइयों को उचित पारिश्रमिक नहीं मिलता। जिले में लगभग दो हजार हलवाई हैं, लेकिन बेरोजगारी और केटरिंग व्यवसाय के चलते उनका काम कम हो रहा है।...
शादी हो या फिर कोई अन्य कार्यक्रम, अगर खाना लजीज हो तो हर कोई तारीफ किए बिना नहीं रह पाता है। बिना हलवाइयों के मांगलिक कार्यक्रम अधूरा ही रहता है, लेकिन हलवाइयों का अपना दर्द है। दूसरों को लजीज भोजन कराने वाले इन हलवाइयों को सही पारिश्रमिक नहीं मिल पाता है। जिले में बड़ी संख्या में हलवाई हैं। इसके बावजूद यह लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। इसका मुख्य कारण काम में कमी और पर्याप्त पारिश्रमिक न मिलना है। ऐसे में हलवाई हताश हैं। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से हलवाई कारीगरों ने अपना दर्द साझा किया। सभी ने एकसुर में कहा कि उन्हें भी पर्याप्त पारिश्रमिक दिलाने की व्यवस्था की जाए, जिससे वह परिवार का भरण पोषण कर सकें। जिले में मौजूदा समय करीब दो हजार से अधिक हलवाई कारीगर हैं। इनमें काफी संख्या में ऐसे कारीगर हैं, जो बीते कई दशकों से लोगों को लजीज व्यंजनों का स्वाद चखा रहे हैं, लेकिन बढ़ती हुई बेरोजगारी और केटरिंग के दौर में इनका हुनर दरकिनार होता चला जा रहा है। जहां एक ओर युवा अनट्रेंड कारीगरों के आने से प्रतिद्वंदिता बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर केटर्स ने इनके व्यवसाय पर ग्रहण लगा दिया है। आलम यह है कि अब लोग भागदौड़ से बचने के लिए हलवाइयों की बजाय केटर्स पर निर्भर हो गए हैं। इस कारण हलवाइयों को काम भी काफी कम मिल रहा है। हलवाई महेश बताते हैं कि बीते पांच सालों में व्यवसाय काफी कम हो गया है। इसका सबसे बड़ा कारण लोगों का केटरिंग व्यवसाय की तरफ बढ़ता रुझान है। ऐसे में जिले में केटरिंग व्यवसाय तेजी से बढ़ा है। इन केटर्स के पास अच्छी तादात में कारीगर औक श्रमिक होते हैं। ये लोग पूरे मांगलिक कार्यक्रम का ठेका ले लेते हैं। इसके एवज में आयोजकों से मोटी रकम भी वसूलते हैं। वहीं, छोटे तबके से जुड़ा हलवाई पूरे काम का ठेका नहीं ले पाता है। ऐसे में आयोजकों को भी उनके साथ जुटना पड़ता है। इसके चलते आयोजक अब हलवाइयों को तवज्जों नहीं दे रहे हैं।
हलवाई व्यवसाय से जुड़े सागर और अमित ने बताया कि जिले में कारीगर तो काफी हैं, लेकिन महज चार से पांच सौ कारीगर ही व्यंजन बनाने की कला में पारंगत हैं। वहीं, रोजगार न मिलने से काफी संख्या में युवा भी इस पेशे जुड़ गए हैं। ये लोग पाक कला में पारंगत नहीं हैं और काफी कम दामों पर कार्यक्रमों में व्यंजन बना रहे हैं। ऐसे में जिन आयोजकों को जानकारी नहीं है, वह इनके पास पहुंचते हैं और कम पारिश्रमिक पर काम कराते हैं। बाद में उन्हें जब मन का स्वाद नहीं मिलता है तो ठीकरा हलवाइयों के सिर फूटता है। यही आयोजक हलवाई न करने की सलाह देते हैं। इससे कुशल हलवाइयों को भी लोग काम देने से कतराने लगे हैं। ऐसे में शासन को इन कारीगरों को प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोलना चाहिए ताकि आयोजकों के मनमुताबिक स्वाद थाली में परोस सकें। इससे पूरी हलवाई जमात का नाम नहीं खराब होगा और व्यवसाय भी बढ़ेगा।
हलवाई कामगारों के लिए बने मंडी
हलवाई व्यवसाय से जुड़े पिंकू और आदर्श ने बताया कि उनकी सबसे बड़ी परेशानी जिले में उनके व्यवसाय से जुड़ी किसी भी मंडी का न होना है। मंडी न होने से लोग उन तक पहुंच नहीं पाते हैं। ऐसे में लोग एक दूसरे के जरिये हलवाइयों तक पहुंचते हैं। इससे अधिकांशत: उन्हीं हलवाइयों को रोजगार मिल पाता है, जिनकी जान-परिचय अधिक है।
फूड सैंपलिग के नाम पर परेशान न किया जाए
हलवाई आदेश और भावेश ने बताया कि सालभर में करीब चार माह तक सहालगी सीजन जोरों पर रहता है। इस दौरान ही हलवाइयों को मांगलिक कार्यक्रमों की बुकिंग मिलती है। इसके बाद अधिकांश हलवाई अपने मिठाई, फास्ट फूड जैसे प्रतिष्ठानों पर काम करते हैं। यहां खाद्य विभाग के लोग सैंपलिंग के नाम पर उन्हें परेशान करते हैं। कई बार एक ही दुकान की सैंपलिंग बार-बार की जाती है। इससे ग्राहकों के मन में संशय घर कर जाता है और वह उनके प्रतिष्ठानों पर आने से बचते हैं। इस कारण आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है।
तय पारिश्रमिक भी नहीं देते आयोजक
हलवाई संतोष और सुनीत ने बताया कि कार्यक्रम से पहले ही आयोजकों को व्यंजन बनाने के एवज में दी जाने वाले पारिश्रमिक की जानकारी दे दी जाती है। कई आयोजक ऐसे होते हैं, जो शुरुआत में तो पारिश्रमिक देने पर हामी भर लेते हैं। कार्यक्रम पूरा होने के बाद उचित पारिश्रमिक नहीं देते हैं। ऐसे में शासन कोई ऐसी व्यवस्था करे, जिससे हलवाई पंजीकृत हों और पर्याप्त पारिश्रमिक न मिलने की शिकायत कर सकें।
सुझाव
1. जिले में हलवाई मंडी की स्थापना की जाए। इससे लोगों की पहुंच सभी हलवाइयों तक हो सकेगी।
2. खाद्य विभाग को एक निर्धारित गाइडलाइंस के अनुरूप कार्य करना चाहिए ताकि हलवाई कामगारों का शोषण न हो सके।
3. श्रम विभाग हलवाइयों के लिए आईडी कार्ड जारी करे, जिससे पुलिस उन्हें बेवजह परेशान न करे।
4. केटर्स व्यवसाय पर लगाम लगाने के साथ-साथ कार्यक्रम में मिलने वाले पारिश्रमिक को निर्धारित किया जाए।
5. श्रम विभाग के अधिकारी महीने में एक दिन हलवाइयों की समस्याओं का निराकरण करें।
6. शासन से जुड़ी विभिन्न लाभकारी योजनाओं से हलवाइयों को भी जोड़ा जाए।
शिकायतें
1. अप्रशिक्षित हलवाइयों की संख्या बढ़ने से आयोजक हलवाइयों की ओर रुख नहीं कर रहे हैं। इन पर लगाम लगाई जाए।
2. केटर्स कमीशन देकर हलवाइयों से ही काम लेते हैं और काम के एवज में मिलने वाले पारिश्रमिक का अधिकांश हिस्सा रख लेते हैं।
3. देर रात कार्यक्रमों से लौट रहे हलवाइयों को पुलिस और अराजकतत्व परेशान करते हैं।
4. गेस्ट हाउसों में काम करने के दौरान कई बार आयोजक मारपीट पर उतर आते हैं। इनसे पुलिस सुरक्षा दिलाए।
5. खाना बनाते समय झुलसने पर सरकारी सहायत मुहैया नहीं कराई जाती है।
6. बुढ़ापे के लिए भविष्य निधि की व्यवस्था की जाए।
बोले हलवाई कारीगर
युवा हलवाइयों को प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोले जाएं ताकि वह पाक कला में महारथ हासिल कर सकें। -विनीत
शहर में हलवाई मंडी की स्थापना की जाए ताकि आयोजक हलवाइयों के पास सीधे पहुंच सकें और कमीशन का खेल खत्म हो। -आनंद
कार्यक्रम स्थलों पर हलवाइयों से मारपीट की घटनाएं आम हो गई हैं। गेस्ट हाउसों के आसपास पुलिस पिकेट तैनात रहे। -अंकित
आयोजक कई बार पारिश्रमिक नहीं देते हैं। इसलिए हलवाइयों को रजिस्टर्ड किया जाए ताकि शिकायत दर्ज करा सकें। -बउवा
हलवाइयों को पेंशन जैसी लाभकारी योजनाओं से जोड़ा जाए ताकि अपने और परिवार का भरण पोषण कर सकें। -पिंटू मिश्र
बोले जिम्मेदार
गुणवत्ता पूर्ण खाद्य पदार्थ के लिए सैंपलिंग होती है। सभी अधिकारियों को सैंपलिंग के दौरान परेशान न करने के निर्देश हैं। शिकायत आने पर अफसर पर कार्रवाई की जाएगी।
-शैलेश दीक्षित, खाद्य सुरक्षा अधिकारी
पुलिस पिकेट को कार्यक्रम स्थलों के आसपास तैनात रहने के निर्देश हैं। रात को पुलिस संदिग्धों की तलाश में पहचान पूछती है। पुलिस कर्मियों को आम लोगों को परेशान न करने को कहा है। - सोनम सिंह, सीओ
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