अनूठी रामलीला: सात तालों की तिजोरी में प्रभु श्रीराम का मुकुट, हनुमान जी की गदा
- लखनऊ में सराफा कारोबारियों के सहयोग से नौ दशक पहले शुरू की गई चौक की रामलीला सबसे खास है। इसमें इस्तेमाल होने वाले आयुध से लेकर मुकुट, कुंडल सब शुद्ध चांदी से निर्मित हैं।
दशहरा बीतने के बाद भी रामलीला का मंचन जारी है। लखनऊ में सबसे पुरानी रामलीला चौक की है। चौक की रामलीला सबसे अलग इसलिए है क्योंकि यहां भगवान श्रीराम और माता सीता का मुकुट, हनुमान जी की गदा से लेकर खड़ाऊं तक चांदी से बना हुआ है। इतना ही नहीं, तीर-धनुष भी चांदी के ही प्रयोग होते हैं। रामलीला मंचन के बाद इन सभी सामान को सात तालों के पीछे सेफ तिजोरी में सुरक्षित रख दिया जाता है।
नवाबों के शहर लखनऊ के चौक इलाके में इस रामलीला का मंचन 1957 से हो रहा है। रामलीला मंचन करने वाले किरदार जो गहने पहनते हैं, वे भी करीब 90 साल पुराने हैं। अहंकार के प्रतीक रावण के किरदार को जीवंत बनाने वाला आकर्षक भारी मुकुट भी चांदी का है।
जिसकी दुनिया में चर्चा, उसी रामलीला को सरकारी सहयोग नहीं
इस रामलीला को चौक के व्यापारी आपसी सहयोग से जारी रखे हैं। सरकार से कोई मदद नहीं है। यहां तक कि चौक के राम मनोहर लोहिया पार्क में मंचन के लिए स्थान की मारामारी है। समिति के अनुसार वर्ष 2003 में समाजवादी पार्टी की सरकार ने पार्क में एक महीने के लिए स्थान आवंटित किया था। इसके बाद स्थिति फिर जस की तस हो गई।
आपसी सहयोग से शुरू हुआ सिलसिला
चौक रामलीला समिति के महामंत्री राज कुमार वर्मा बताते हैं कि शुरुआत खुनखुन जी परिवार के योगदान से हुई थी। साथ ही लाला श्री नारायण अग्रवाल, मुकुट बिहारी अग्रवाल, गिरिराज किशोर अग्रवाल, प्रताप नारायण रस्तोगी, गोविंद प्रसाद वर्मा, काली चरण माहेश्वरी का विशेष योगदान रहा। कलाकारों की भूमिका में भी कई परिवार के सदस्य शामिल रहते हैं। राज कुमार वर्मा 1973 में रावण और राजा दशरथ का किरदार निभा चुके हैं। चौक सराफा कारोबारी विनोद महोश्वरी मेघनाद के किरदार में नजर आते हैं।