यूपी में इस जगह है अनूठा मन्दिर जहां प्रेमी जोड़े खाते हैं साथ रहने की कसमें
यूपी के इस जिले में एक फौजी ने अपनी पत्नी की याद में मंदिर बनवाया। कुछ समय बाद प्रेमी जोड़ों की मान्यता जुड़ गई कि यहां साथ आने वाले जोड़े का बंधन नहीं टूटता

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में एक ऐसा मंदिर है, जहां पर प्रेमी युगल दूर-दूर से आते हैं। यहां पर साथ जीने और मरने की कसमें खाते हैं। मोहब्बत की निशानी के रूप में यह मन्दिर कभी एक फौजी ने अपनी स्वर्गवासी पत्नी की याद में बनवाया था जिनको वह बहुत चाहते थे। यह मंदिर जिले के पिसावां ब्लॉक के फरीदपुर गांव में बना है, जहां कि फिजाओं में आज भी इस अमर प्रेम की गाथाएं गूंजती हैं।
यह एक ऐसी प्रेम कहानी है, जो शाहजहां और मुमताज की याद दिलाती है। यह कहानी है सेना के जवान रामेश्वर दयाल मिश्र की। उन्होंने अपनी पत्नी आशा की स्मृति में अनूठी मिसाल पेश करने वाला एक अनोखा और भव्य मंदिर का निर्माण कराया है। फरीदपुर गांव के मूल निवासी रामेश्वर दयाल मिश्रा (आरडी मिश्रा) का विवाह वर्ष 1957 में आशा देवी के साथ हुआ था। वह अपनी पत्नी आशा देवी से बेपनाह मोहब्बत करते थे। दोनों का प्रेम इतना गहरा था कि लोग उनकी मिसाल दिया करते थे। वर्ष 1967 में रामेश्वर भारतीय सेना में भर्ती हुए। वर्ष 2007 में 30 जनवरी को आशा देवी का निधन हो गया था। उनके निधन ने आरडी मिश्रा को अंदर तक तोड़ दिया था। जीवन पर्यंत उनकी एक फोटो साथ लेकर चलते रहे। वह जब भी कार से कहीं आते-जाते तो कार खुद ही ड्राइव करते थे और अपने पास वाली सीट पर किसी को भी बैठने नहीं देते दे थे। इस सीट पर वह हमेशा ही अपनी पत्नी आशा देवी की फोटो रखते थे। सेना में रहते हुए आरडी मिश्रा नियमित रूप से अपनी पत्नी आशा को पत्र लिखा करते थे। अपनी पत्नी के निधन के एक साल के बाद ही वर्ष 2008 में रिटायर्ड रामेश्वर दयाल मिश्रा ने गांव के बाहर सड़क पर अपनी पत्नी की स्मृतियों को जीवंत रखने के लिए जहां पर उनका अंतिम संस्कार किया था, वहीं पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर में देवी-देवताओं की मूर्तियों के साथ आशा देवी की तीन आदमकद मूर्तियां भी स्थापित कर उनकी प्राण प्रतिष्ठा कराई। इस मंदिर में हर दीवार पर आशा देवी की फोटो टंगी हुई है। दो फोटो ऐसी भी लगी हैं, जिसमें आशा देवी के साथ रामेश्वर दयाल मिश्रा भी हैं।
वर्ष 2012 में रामेश्वर दयाल मिश्रा की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी लेकिन उनकी प्रेम कहानी आज भी जीवंत है। यह मंदिर न केवल एक पति के अटूट प्रेम का प्रतीक है, बल्कि आज भी प्रेमी जोड़े यहां आकर अपनी मोहब्बत की कसमें खाकर साथ जीने और साथ मरने के वादे करते हैं। यह स्थल प्रेम की शाश्वतता का जीता-जागता उदाहरण बन गया है। आरडी मिश्रा के तीन बेटे हैं, जिनमें से एक डॉक्टर है, जबकि दो बेटे फौज में हैं। फौजी आरडी मिश्रा के निधन के बाद से यह मंदिर उपेक्षा का शिकार हो गया है। आरडी मिश्रा के जीवनकाल में जहां इस मंदिर में सफाई-सफाई और पूजा-पाठ होता था, वहीं अब मूर्तियों को सफाई की भी दरकार है।