यूपी के इस शहर में कई ‘अतुल सुभाष’, अदालतों के चक्कर लगाने में गुजर गए कई साल
- यहां भी अतुल जैसे कई लोग हैं, जो वर्षों से न्याय की उम्मीद लगाए न्यायपालिका के चक्कर काट रहे हैं। परिवार अदालत में ऐसे मुकदमों की संख्या बढ़कर लगभग 13 हजार पहुंच गई है तो वहीं महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की विशेष अदालत में दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के मामले बढ़कर दस हजार से भी अधिक हो गए हैं।
एआई इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या का मामला इन दिनों चर्चा में है। इस मामले ने न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं। इस घटना के मद्देनजर प्रयागराज की अदालतों में पड़ताल की गई तो पता चला कि यहां भी अतुल जैसे कई लोग हैं, जो वर्षों से न्याय की उम्मीद लगाए न्यायपालिका के चक्कर काट रहे हैं। परिवार अदालत में ऐसे मुकदमों की संख्या बढ़कर लगभग 13 हजार पहुंच गई है तो वहीं महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की विशेष अदालत में दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के मामले बढ़कर दस हजार से भी अधिक हो गए हैं। इनमें एक-दो नहीं कई ऐसे मुकदमे हैं जो वर्षों से लंबित हैं।
काम कर रही हैं पांच अदालतें
1986 में कानून बनने के बाद जिले में एक परिवार अदालत स्थापित हुई थी, इसे भी जिला न्यायालय में न खोलकर जिलाधिकारी कार्यालय में स्थापित किया गया था। वर्तमान में पांच अदालतें काम कर रही हैं। इन अदालतों में कई अतुल न्याय की तुला पर बैठे मुकदमे का फैसला लिखे जाने का इंतजार कर रहे हैं। इनमें बेरोजगार, दुकानकार के साथ ही डॉक्टर और इंजीनियर तथा अधिकारी भी शामिल हैं। स्थिति यह है कि जल्द फैसला हो इसके लिए लोगों को हाईकोर्ट में याचिका तक करनी पड़ रही है। जानकारों का कहना है कि जब एक अदालत थी तो उतनी भीड़ नहीं थी, जितनी अदालतों की संख्या बढ़ने के बाद होती है। जिला न्यायालय परिसर में परिवार अदालत के लिए नया भवन बनाया जा रहा है, जो तैयार होने की स्थिति में है। परिवार अदालत के अतिरिक्त मजिस्ट्रेट की 16 तथा महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के मामलों के लिए गठित विशेष अदालत भी काम कर रही है।
हाईकोर्ट ने दी दखल तो नौ साल बाद तलाक
कम्प्यूटर इंजीनियर पति-पत्नी शादी के बाद नौकरी के लिए विदेश चले गए। वहीं मकान खरीद लिया, एक बेटी भी पैदा हुई। इसके बाद मनमुटाव हो गया। 2015 में नौकरी छोड़ पत्नी वापस आ गई। पति के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया। स्थिति यह हुई कि पति को भी वापस आना पड़ा। मुकदमेबाजी शुरू हुई। पति की मां (सास) की मौत हो गई, ससुर को जेल जाना पड़ा। नौ साल के बाद दोनों का तलाक हुआ, वह भी तब जब हाईकोर्ट ने जल्द सुनवाई के निर्देश दिए।
24 साल के बाद हो सका तलाक
भारत सरकार के कार्यालय में तैनात चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने वर्ष 2000 में तलाक का मुकदमा किया। उस वक्त उसकी बेटी की उम्र मात्र दो वर्ष थी। पत्नी उसे छोड़ कर मायके चली गई। बाद में उसने महिला थाने में पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया। 2010 में फैसला हुआ तो 50 लाख रुपये की मांग की गई। समझौता नहीं हो सका। 24 साल के बाद दोनों का तलाक हो सका।
परिवार न्यायालय में इस वर्ष अब तक दाखिल मामले
वैवाहिक वाद - 3614
भरण पोषण वाद -1,386
परिवार अदालत में अब तक दर्ज मुकदमों की स्थिति
विचाराधीन - 13 हजार
वैवाहिक वाद - 7,500
भरण पोषण वाद - 5,500
मध्यस्थता केंद्र में भी नहीं बन पा रही बात
मुकदमों की संख्या कम करने के उद्देश्य से आपसी सहमति के आधार पर मामलों का हल निकालने के लिए सुलह समझौता और मध्यस्थता केंद्र बनाए गए हैं। न्यायालय से मामले इस केंद्र को भेजे जाते हैं। आंकड़े गवाह हैं कि यहां पर भी बात नहीं बन पा रही है। इस साल अब तक केंद्र को 911 मामले भेजे गए, लेकिन आपसी सहमति से इनमें से मात्र 70 में ही सुलह समझौता हो सका। 841 मामलों में समझौता नहीं हो सका।
किस तरह के वाद होते हैं दर्ज
- दहेज की मांग को लेकर एफआईआर सीआरपीसी की धारा 156 (तीन) के तहत दर्ज की जाती है।
- दहेज की मांग को लेकर परिवाद भी दर्ज किया जाता है।
- घरेलू हिंसा कानून के तहत भी मुकदमा दर्ज करवाया जाता है।
- भरण पोषण और सामान वापसी का मुकदमा आईपीसी की धारा 406 में दर्ज किया जाता है।
- पति से मुकदमा लड़ने का खर्च मांगने के लिए भी मुकदमा दाखिल किया जाता है।
- सुलह के लिए धमकाने के आरोप में भी एफआईआर दर्ज कराई जाती है।