महीनों तक जिस कान दर्द से तड़पीं, वह ईगल सिंड्रोम निकला; इस उम्र की महिलाएं हो रहीं पीड़ित
- कान के पीछे असहनीय पीड़ा से राहत के लिए महीनों दवा खाते रहे। कान और जबड़े के बीच पनप रही बीमारी ईगल सिंड्रोम से अनजान ये दो मरीज सिर्फ उदाहरण हैं। इस मर्ज के पीड़ितों की बड़ी संख्या में होने का खुलासा हुआ है। अकेले मेडिकल कॉलेज में ही सालभर में 30-60 आयु वर्ग के ईगल सिंड्रोम के लगभग 750 रोगी आए।
Ear pain eagle syndrome: कानपुर में 32 वर्षीय उरई की संतोषी देवी के कान में महीनों से दर्द रहा। क्षेत्र के डॉक्टर से इलाज कराया पर दिक्कत कम नहीं हुई। आखिर जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में जांच कराई तो ईगल सिंड्रोम की पुष्टि हुई। इस बीमारी से अनजान संतोषी ने बेवजह महीनों दवा खाई। इसी तरह महाराजपुर के प्राइवेट नौकरीपेशा सुनील सिंह भी इस रोग से अनजान रहे। कान के पीछे असहनीय पीड़ा से राहत के लिए महीनों दवा खाते रहे। कान और जबड़े के बीच पनप रही बीमारी ईगल सिंड्रोम से अनजान ये दो मरीज सिर्फ उदाहरण हैं। मेडिकल कॉलेज उर्सला, केपीएम की रिपोर्ट में इस मर्ज के पीड़ितों की बड़ी संख्या में होने का खुलासा हुआ है। अकेले मेडिकल कॉलेज में ही सालभर में 30-60 आयु वर्ग के ईगल सिंड्रोम के लगभग 750 रोगी आए। बीमारी की चपेट में आने वाले अधिकांश ग्रामीण क्षेत्र के हैं। पुरुषों की तुलना में महिला मरीज 60 फीसदी हैं।
कान के पीछे, जबड़े के इर्द-गिर्द के साथ कभी-कभी गर्दन और कंधे तक होने वाली पीड़ा को मामूली तकलीफ समझना बड़ा खतरा बन सकती है। यह सिर्फ कान दर्द नहीं है, बल्कि बगल से निकली करीब ढाई सेमी लंबी स्टाइलॉयड प्रोसेस हड्डी के बढ़ने का नतीजा है। यह हड्डी बढ़कर जबड़े के नीचे से गुजरी ग्लोसोफेरींजल नाम की नस पर दबाव बना रही है। यही दबाव भीषण दर्द की वजह भी है।
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सही इलाज न होने से दिव्यांगता का भी खतरा
डॉक्टरों का मानना है कि ईगल सिंड्रोम का इलाज समय पर बेहद जरूरी है। स्टाइलॉयड प्रोसेस हड्डी बढ़ने पर सर्जरी ही एकमात्र निदान है। हड्डी के बढ़े हिस्से को सर्जरी के दौरान काट दिया जाता है। इसके बाद यह अपने पुराने आकार व स्वरूप में आ जाती है। अगर सही समय पर इसका निदान नहीं किया जाए तो इससे दिव्यांगता का भी खतरा बढ़ जाता है।
इन लक्षण व बचाव पर दें ध्यान
- कान या जबड़े के आसपास लगातार या कभी-कभार दर्द
- चेहरे, गले या पीछे की तरफ गर्दन, कंधे तक तकलीफ
- कुछ खाने में दिक्कत, गले में खाना अटकने का अहसास
- कान में सीटी या कोई आवाज कभी-कभार गूंजने लगती
- बार-बार कान या जबड़े के आसपास दर्द की अनदेखी मत करें
- लंबे समय से दवा खाने के बाद भी राहत न मिलने पर जांच जरूरी
- ईएनटी विशेषज्ञ से ही इलाज कराना बेहतर, सही इलाज न होना नुकसानदेय
क्या बोले विशेषज्ञ
मेडिकल कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अमृता श्रीवास्तव ने बताया कि महीनों सिर्फ कान दर्द समझना और रोग की सही जानकारी न होना खतरनाक है। ईगल सिंड्रोम के मरीज महीनेभर में 90 से 100 की संख्या में आ रहे हैं। अधिकांश मरीज ग्रामीण क्षेत्र के हैं। लंबे समय तक दवा खाने के बाद भी राहत नहीं मिलती। इलाज में देरी दिव्यांगता के खतरे को बढ़ा सकती है।
केपीएम के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ.आरबी जायसवाल ने बताया कि कान के पीछे, जबड़े के इर्द-गिर्द के साथ कभी-कभी गर्दन और कंधे तक होने वाली पीड़ा को मामूली तकलीफ बड़ी भूल है। यह ईगल सिंड्रोम भी हो सकता है। इस बीमारी के बारे में अधिकांश मरीजों को जानकारी ही नहीं होती है। समय पर सर्जरी ही एकमात्र उपाय है।