मकर संक्रांति पर चित्रकूट के इस कूप पर बना विश्व रिकॉर्ड, 2 लाख से अधिक ने किया स्नान, जानिए क्या है मान्यता
उत्तर प्रदेश के पौराणिक एवं ऐतिहासिक तीर्थ स्थल धर्म नगरी कही जाने वाली चित्रकूट के भरतकूप स्थित कुएं में मकर संक्रांति के पावन पर्व पर दो लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने स्नान करके खिचड़ी आदि का दान किया।
उत्तर प्रदेश के पौराणिक एवं ऐतिहासिक तीर्थ स्थल धर्म नगरी कही जाने वाली चित्रकूट के भरतकूप स्थित कुएं में मकर संक्रांति के पावन पर्व पर दो लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने स्नान करके खिचड़ी आदि का दान किया। आज यहां सूर्योदय से पहले ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जमा हो गई थी। पूरे विश्व में किसी भी कुएं में एक दिन में इतने श्रद्धालुओं का एक साथ स्नान करना भी एक विश्व रिकॉर्ड है। अद्भुत है भरतकूप की विशेषताएं या यूं कहिए की विशेषताओं से भरा है भरतकूप का यह कुआं।
भरतकूप विश्व का एकमात्र ऐसा कुआं है जहां आज के दिन इतने अधिक श्रद्धालु एकत्र होकर स्नान करके दान आदि करते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार जब भरत जी भगवान राम को वनवास काल के समय वापस लेने के लिए चित्रकूट आए थे तो वह अपने साथ समस्त तीर्थों का जल एक कलश में लेकर आए थे।
उनका सोचना था कि प्रभु श्रीराम का वही पर राज्याभिषेक करके उनको राजा की तरह वापस अयोध्या ले जाएंगे। परंतु जब श्रीराम द्वारा बिना वनवास काल के पूर्ण हुए वापस लौटने से मना कर दिया तब अत्रि मुनि ने उस पवत्रि जल को चित्रकूट के पास एक कुएं में मंत्रोच्चारण के साथ डलवा दिया था। रामचरितमानस में भी तुलसीदास जी ने इसका उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है कि
अत्रि कहेउ तब भरत सन, सैल समीप सुकूप।
राखिए तीरथ तोय तह, पावन अमल अनूप ।।
भरतकूप अब कहिहहि लोगा।
अति पावन तीर्थ तीरथ जल जोगा।।
वह पवित्र जल आज भी इस कुएं में सुरक्षित है। तब से इस कुएं का नाम भरतकूप पड़ गया। लोक मान्यता के अनुसार इस कुएं का जल कभी खराब नहीं होता। जैसे गंगा जल को लोग अपने घर ले जाते हैं उसी प्रकार इस कुएं के जल को भी लोग भर-भर कर ले जाते हैं और वह कभी खराब नहीं होता।
मान्यताओं के अनुसार इस कुएं के समस्त कोनों का जल भी अलग-अलग पाया जाता है या यूं कहिए कि जितनी बार बाल्टी कुएं में जाती है उसमें जल का स्वाद विभिन्न तरह से पाया जाता है।
इसके सत्य को परखने के लिए तत्कालीन जिलाधिकारी जगन्नाथ सिंह द्वारा इस कुएं के चारों कोनों से जल निकलवाकर लैब में टेस्ट भी करवाया गया था। इसमें रिपोर्ट के मुताबिक समस्त कोनों के जल को अलग-अलग जगह का होना बताया गया था। चित्रकूट के संत श्री रामस्वरूपाचार्य जी कहते हैं कि इस कुएं में कभी कभी समुद्र की तरह लहरें भी उठती हैं।
इस कुएं के जल के बारे बहुत सारी मान्यताएं एवं उपयोगिताएं भी हैं। जब किसी मूर्ति की प्राण प्रतष्ठिा करनी होती है तब शास्त्रानुसार उस मूर्ति को स्नान कराने के लिए समस्त तीर्थों के जल की आवश्यकता होती है। उस समय इस जल को लोग ले जाते हैं।