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सिर्फ शादी करने से नहीं मिल जाएगा एसटी का दर्जा, हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को दोहराया

अनुसूचित जनजाति वर्ग के व्यक्ति से शादी करने मात्र से किसी को इस वर्ग का स्टेटस नहीं प्राप्त हो जाता। यह टिप्पणी HC लखनऊ बेंच की एकल पीठ ने लक्ष्मी तोमर की याचिका पर पारित आदेश में की।

Ajay Singh विधि संवाददाता , लखनऊTue, 21 Feb 2023 05:24 AM
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हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सेवा संबंधी एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को दोहराते हुए कहा है कि अनुसूचित जनजाति वर्ग के व्यक्ति से शादी करने मात्र से किसी को इस वर्ग का स्टेटस नहीं प्राप्त हो जाता।

यह टिप्पणी न्यायामूर्ति राजन रॉय की एकल पीठ ने लक्ष्मी तोमर की याचिका पर पारित आदेश में की। याची का कहना था कि उसके माता-पिता सामान्य वर्ग से थे लेकिन उसका विवाह अनुसूचित जाति वर्ग में हुआ था, लिहाजा पति की जाति के आधार पर उसे भी अनुसूचित जाति वर्ग का प्रमाण पत्र मिल गया। कहा गया कि वह एफसीआई में असिस्टेंट ग्रेड 2 पर नौकरी कर रही थी ।

हालांकि जाति संबंधी उसके प्रमाण पत्र को न मानते हुए, एफसीआई ने उसे असिस्टेंट ग्रेड 3 पर पदावनत कर दिया। अपने खिलाफ पारित उक्त दंडात्मक आदेश को याची ने चुनौती दी थी। न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त आदेश को दोहराते हुए कहा कि हालांकि याची के निलम्बन अवधि को उसके बिना वेतन के सेवा काल में जोड़ा जाना चाहिए।

अर्ध न्यायिक संस्थाओं के लिए नैसर्गिक न्याय अहम
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि हाल के वर्षों में नैसर्गिक न्याय ने अहम रोल अदा किया है। अर्ध न्यायिक संस्थाओं में इसकी भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण है। किसी के विरुद्ध आदेश करने से पहले उसे आपत्ति दाखिल करने और अपना पक्ष रखने का पर्याप्त अवसर दिया जाना जरूरी है। ऐसा न करने से पूरी कार्यवाही ही नष्ट हो जाती है। यह आदेश न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र ने लीलू की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि अवैध निर्माण हटाने के लिए तहसीलदार ने याची को दो दिन का समय दिया और धमकी दी कि अतिक्रमण नहीं हटाया तो एकपक्षीय कार्रवाई कर अर्थदंड लगेगा।

पुलिस के समक्ष किया गया मृत्युकालिक कथन मान्य
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि मृत्यु से पूर्व पुलिस अधिकारी के समक्ष दिया गया बयान यदि सत्य, सुसंगत और एकरूपता से पूर्ण है। साथ ही वह बिना किसी दबाव व प्रयास के दिया गया है तो इसे मृत्यु कालिक कथन के तौर पर माना जाएगा।

कोर्ट ने कहा कि अदालत का दायित्व है कि मृत्युकालीन कथन की सत्यता को परखे। अदालत को यह विश्वास होना चाहिए कि पुलिस अधिकारी के सामने दिया गया बयान सत्य है एवं बिना किसी दबाव या प्रयास के दिया गया है। यह आदेश न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने गाजियाबाद के अनीस की जमानत अर्जी को खारिज करते हुए दिया है।

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