Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़Victory on the land of Awadh will tell who has how much strength Rahul Gandhi Defense Minister Rajnath Singh and Brij Bhushan Singh reputation is at stake

अवध की सरजमीं पर जीत बताएगी किसमें कितना है दम? इनकी प्रतिष्ठा दांव

अवध की सरजमीं पर राहुल गांधी से लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और बृज भूषण सिंह के बेटे की जीत बताएगी कि किसमें कितना है दम। इन सीटों पर लड़ाई काफी रोमांचकारी होने वाली है।

Deep Pandey शैलेंद्र श्रीवास्तव, लखनऊSun, 5 May 2024 08:27 AM
share Share

लोकसभा चुनाव का कारवां अवध की सरजमी पर पहुंचते ही राजनीतिक सरगर्मियां गर्मा गई हैं। यही वह चरण है जिसमें कई ऐसी सीटें हैं जिसमें हॉट सीट से लेकर हाईप्रोफाइल तक की सीटें हैं। इसी चरण में राहुल गांधी से लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और बृज भूषण सिंह के बेटे की जीत बताएगी कि किसमें कितना है दम। अमेठी हो या रायबरेली, लखनऊ हो या श्रावस्ती, कैसरगंज हो या अंबेडकरनगर...। इन सीटों पर लड़ाई काफी रोमांचकारी होने वाली है। राजनीतिक दल इन सीटों को पाने के लिए पूरा दम-खम लगाए हुए हैं।

अमेठी-रायबरेली हाईप्रोफाइल सीट
रायबरेली सीट गांधी परिवार की रही है यह हर कोई जानता है। फिरोज गांधी से लेकर इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी तक इस सीट से जीत चुकी हैं। पांच बार लगातार जीतने वाली सोनिया गांधी ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए चुनाव लड़ने से इनकार किया तो राहुल गांधी मैदान में आए हैं। यहां से भाजपा ने प्रदेश के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह को मैदान में उतारा है। जातीय समीकरण के हिसाब से बात करें तो यह सीट दलित, यादव, मुस्लिम और ब्राह्मण आबादी वाली है। राजपूत यहां 8.04 फीसदी के आसपास ही बताए जाते हैं। गांधी परिवार इन्हीं वोट बैंक के सहारे यह सीट जीतती रही है। इसके बगल की सीट अमेठी की बात करें तो संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक जीत का परचम लहरा चुके हैं, लेकिन गांधी परिवार के लिए वर्ष 2019 का चुनाव काफी घाटे वाला साबित हुआ और वह यह सीट भाजपा की स्मृति ईरानी से हार गई। स्मृति फिर मैदान में हैं तो राहुल यहां से लड़ने की जगह रायबरेली से लड़ रहे हैं। अमेठी से विश्वास पात्र किशोरी लाल शर्मा को उतारा गया है। चुनाव परिणाम जो भी आए पर देश की हाईप्रोफाइल वाली इस सीट पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं।

मैदान में बेटा नजर पिता पर
पहलवानों के आंदोलन के बाद कैसरगंज लोकसभा हॉट सीट की श्रेणी में आ गई है। यहां से बृज भूषण शरण सिंह लगातार तीन बार से सांसद चुने जाते रहे हैं। वर्ष 2009 में इस सीट से वह सपा के टिकट पर सांसद बने। इसके बाद 2014 व 2019 में वह भाजपा के टिकट पर सांसद बने। पहलवानों के आंदोलन के बाद से यह सीट देशभर में चर्चाओं में रही है। भाजपा को इस सीट पर टिकट फाइनल करने में काफी समय लगा, अंतिम क्षणों तक यही माना जाता रहा बृज भूषण टिकट पाएंगे। क्षेत्र में वह प्रचार भी कर रहे थे, लेकिन बाद में उनके स्थान पर उनके बेटे करण भूषण को टिकट ऐलान हुआ। बसपा ने ब्राह्मण उम्मीदवार नरेंद्र पांडेय तो सपा ने भगतराम मिश्रा को टिकट दिया है। जातीय समीकरण के हिसाब से देखा जाए तो यह सीट मुस्लिम, ब्राह्मण और दलित प्रभाव वाली है। सर्वाधिक 23 फीसदी मुस्लिम मतदाता यहां हैं। इन्हीं बिरादरी के वोटों के सहारे राजनीतक दल शह-माह का खेल खेलते रहे हैं। सपा और बसपा के ब्राह्मण उम्मीदवार होने से इस बिरादरी के वोटों में बंटवारा तय माना जा रहा है। कैसरगंज सीट पर भाजपा से करण भूषण सिंह भले ही मैदान में हैं, लेकिन प्रतिष्ठा तो बृजभूषण की ही दांव पर है। 

तीन सीटें काफी अहम
अवध क्षेत्र की लखनऊ, श्रावस्ती और अंबेडकरनगर लोकसभा सीट भी काफी अहम है। लखनऊ की बात करें तो यह सीट भाजपाई गढ़ है। लहर न होने पर भी भाजपा यह सीट जीतती रही है। 1991 से लेकर 2019 तक यह सीट भाजपा के पास ही रही है। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पिछले दो चुनावों से जीत रहे हैं और तीसरी बार मैदान में हैं। सपा ने रविदास मेहरोत्रा और बसपा ने सरवर अली को उतारा है। श्रावस्ती सीट पर भाजपा से साकेत मिश्रा के आने के बाद हाईप्रोफाइल की श्रेणी में आ गई है। उनके पिता नृपेंद्र मिश्रा यूपी कॉडर के पूर्व आईएएस अधिकारी हैं। मौजूदा समय भी उनका काफी प्रभाव है। सपा ने बसपा से पिछला चुनाव जीतने वाले रामशिरोमणि को उतारा है, तो बसपा ने बंटवारे की चाल चलते हुए मुइनुद्दीन अहमद को उतारा है। जातीय समीकरण के हिसाब से देखा जाए तो मुस्लिम और दलित मतदाता यहां हमेशा से निर्णायक रहे हैं। ब्राह्मण मतदाता 12 फीसदी के आसपास बताए जाते हैं। अंबेडकरनगर से भाजपा ने पिछली बार बसपा से जीते रितेश पांडेय तो सपा ने बसपा से आए लालजी वर्मा और बसपा ने कमर हयात अंसारी को उतारा है। इस सीट पर दलित 28%, मुस्लिम 15% और ब्राह्मण 14% हैं। यादव वोट बैंक भी 11 फीसदी के आसपास बताया जाता है। बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर त्रिकोणीय लड़ाई की चाल चली है।

अगला लेखऐप पर पढ़ें