कर्मकांड की पढ़ाई करके अच्छी कमाई कर रहे हैं युवा, वाराणसी में कर रहे संस्कृत की पढ़ाई
वाराणसी में बच्चे उत्तर मध्यमा के बाद महाविद्यालयों से शास्त्री, आचार्य करते हैं और कर्मकांड के कार्यों में निपुण हो जाते हैं। फिर इन्हें स्वरोजगार पाना आसान हो जाता है। अपने लिए कमाई कर रहे हैं।
आमतौर पर माना जाता रहा कि संस्कृत की पढ़ाई के बाद नौकरी का अभाव है। जो अपने बच्चों को पढ़ाने में सक्षम नहीं हैं। वे उन्हें संस्कृत विद्यालयों में पढ़ाने के लिए डाल देते हैं। लेकिन वास्तविकता इससे इतर है, ये बच्चे यहां से उत्तर मध्यमा के बाद महाविद्यालयों से शास्त्री, आचार्य करते हैं और कर्मकांड के कार्यों में निपुण हो जाते हैं। फिर इन्हें स्वरोजगार पाना आसान हो जाता है।
काशी में मंदिरों, निजी अनुष्ठान केंद्रों, घरों व आनलाइन प्रतिदिन करीब 20 हजार अनुष्ठान होते हैं। कर्मकांड सीखने के बाद छात्र इनसे जुड़कर अपना खर्चा निकालने के साथ ही परिवार की मदद करने में भी सक्षम हो रहे हैं।
संस्कृत विश्वविद्यालय के संबद्धता विभाग के अनुसार बनारस में शहरी व ग्रामीण अंचल में करीब 78 संस्कृत कॉलेज संचालित हैं। इनमें शास्त्री, आचार्य के पाठ्यक्रम चलते हैं। यहां से प्रति वर्ष शास्त्री व आचार्य के करीब 10 हजार छात्र निकलते हैं। विभाग के संगणक मोहित मिश्रा ने बताया कि ये दोनों कोर्स एक तरह से रोजगार की गारंटी भी हैं।
वहीं अस्सी स्थित मुमुक्षु भवन में संचालित संस्कृत पीजी कॉलेज के प्रवक्ता शैलेन्द्र दीक्षित ने बताया कि वेद विषय या पौरोहित्य विषय लेकर पढ़ा छात्र भी कर्मकांड के कार्य कर सकता है। बताया कि काशी में कई जगह नियमित अनुष्ठान चलते हैं। कर्मकांड पढ़े संस्कृत के छात्र इनके सम्पर्क में जाकर नियमित दक्षिणा लेकर अनुष्ठान कराते हैं।
रविदास पार्क स्थित गंगोत्री विहार कॉलोनी में वैदिक यज्ञ सेंटर में 1995 से अनवरत कर्मकांड के 30 ब्राह्मण विभिन्न अनुष्ठान में हिस्सा ले रहे हैं। यहां के ज्योतिषाचार्य डॉ. पारसनाथ ओझा ने दावा किया कि ज्योतिष व कर्मकांड के माध्यम से हर समस्या का समाधान हो सकता है। जैसे कोर्ट कचहरी की समस्या, व्यवसाय अच्छा चलने, आरोग्यता, पुत्र प्राप्ति आदि। कर्मकांड सीखे छात्र शहर के दुर्गा मंदिर, दारानगर व नगवा स्थित महामृत्युंजय मंदिर, बटुक भैरव, छोटे-छोटे मंदिरों व घरों में यजमान की इन परेशानियों के निवारण के लिए अनुष्ठान करके अपनी आजीविका चलाते हैं।
डॉ. ओझा ने बताया कि बीएचयू, संस्कृत विवि, केदारघाट में शंकराचार्य आश्रम, हनुमानघाट स्थित पट्टाभिराम शास्त्री संस्कृत विद्यालय व लंका में वेद की पढ़ाई होती है। बताया कि कर्मकांड में निपुण छात्रों को एक दिन के अनुष्ठान का कम से कम सात सौ रुपये दक्षिणा मिलती हैं। कुछ अनुष्ठानों में 11 सौ, 21 सौ तक दक्षिणा पाते हैं।
काशी में प्रतिदिन 20 हजार अनुष्ठान
काशी में करीब तीन लाख ब्राह्मण कर्मकांड से जुड़े हैं। इनके द्वारा काशी में रोज करीब 20 हजार अनुष्ठान कराए जाते हैं। जानकीनगर डीएलडब्ल्यू में अखिल भारतीय विद्वत परिषद के संस्थापक डॉ. कामेश्वर उपाध्याय का भी अनुष्ठान सेंटर है। डॉ. उपाध्याय का कहना है कि आचार्य बनने के बाद पूरे साल करीब 50 छात्र उनके यहां से जुड़ते हैं और विभिन्न अनुष्ठान में शामिल होते हैं। इससे इन्हें आय होती है। बताया कि काशी के संस्कृतज्ञों व अंग्रेजी जानने वालों की हालैंड, मारीशस, अमेरिका में अधिक मांग है। भगवानपुर में प्रो. चन्द्रमा पांडेय व आचार्य शिवपूजन चतुर्वेदी के अनुष्ठान सेंटर भी कर्मकांड के छात्रों के लिए स्वरोजगार का साधन बन रहे हैं।