आंधी-तूफान आने पर नहीं जाएगी बिजली, आपदाओं की मार झेल सकेंगे ऊंचे ट्रांसमिशन टावर
आंधी-तूफान या अन्य प्राकृतिक आपदाओं के दौरान बिजली कटौती की समस्या होती है। एमएनएनआईटी के वैज्ञानिकों ने तकनीक ईजाद की है जिससे प्राकृतिक आपदाओं में ऊंचे ट्रांसमिशन लाइन टावर काफी हद तक महफूज रहेंगे।
आंधी-तूफान या अन्य प्राकृतिक आपदाओं के दौरान हम सभी को बिजली कटौती की समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। एमएनएनआईटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक ईजाद की है जिससे प्राकृतिक आपदाओं के दौरान ऊंचे ट्रांसमिशन लाइन टावर काफी हद तक महफूज रहेंगे। एमएनएनआईटी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर जेसी मोहंता के नेतृत्व में विकसित की गई डेवलपमेंट ऑफ स्टब सेटिंग मकैनिज्म फार टेस्टिंग ऑफ ट्रांसमिशन टावर टेक्नोलॉजी को भारत सरकार ने 20 साल के लिए पेटेंट की मंजूरी दी है।
प्राकृतिक आपदाओं, खराब मौसम या ऐसे अन्य कारणों से बिजली कटौती एक आम समस्या है। एक तूफान ट्रांसमिशन टावरों को अपनी चपेट में ले लेता है। यदि ये ट्रांसमिशन टावर मजबूत नहीं होंगे तो एक टावर के ढहने से बड़ा व्यवधान पैदा हो जाता है। डॉ. मोहंता ने कहा कि ट्रांसमिशन लाइन टावरों के परीक्षण के लिए एक स्टब सेटिंग तंत्र तैयार किया गया है। इसमें ब्रैकेट और स्टब की स्थापना प्रमुख है। बेस प्लेट के साथ इसके निचले सिरे पर एक हब और पिन सख्ती से लगाया जाता है। ट्रांसमिशन लाइन टावरों के परीक्षण के लिए स्टब सेटिंग एक जटिल प्रक्रिया है।
परीक्षण के दौरान त्रिआयामी भार को तीन पारस्परिक दिशाओं में विभाजित किया जाता है। सटीक टावर लेग अलाइनमेंट स्टब सेटिंग प्रक्रिया पर आधारित है। स्टब सेटिंग में बेस प्लेट को वांछित स्थान पर स्थानांतरित किया जाता है। टावर बेस और ढलान की सटीक गणना कर दो तिरछे स्टब्स के बीच की दूरी और झुकाव को बनाए रखा जाता है।
स्पॉट वेल्डिंग द्वारा आधार प्लेट पर स्टब्स को अस्थायी रूप से लगाया जाता है। एक बार टावर बेस के बीच की दूरी, तिरछी दूरियां और प्रत्येक स्टब के झुकाव को ठीक कर लिया जाता है, उसके बाद अंतिम वेल्डिंग की जाती है। अलग-अलग डिजाइन, आकार और आधार चौड़ाई वाले टावरों का स्टेशन में परीक्षण किया जाएगा।