यूपी नगर निकाय चुनाव: OBC आरक्षण की सुनवाई पूरी, 27 दिसंबर को कोर्ट सुनाएगा फैसला
यूपी नगर निकाय चुनाव के ओबीसी आरक्षण को लेकर कई दिनों से चल रही लखनऊ हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है।
नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण लागू किए जाने के मुद्दे पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में शनिवार को याचियों और राज्य सरकार की ओर से बहस पूरी हो गई। कोर्ट ने निकाय चुनावों से संबंधित सभी 93 याचिकाओं पर सुनवाई के पश्चात 27 दिसंबर तक फैसला सुरक्षित कर लिया। निर्णय आने तक नगर निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी करने पर रोक लागू रहेगी।
न्यायमूर्ति देवेन्द्र उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ के समक्ष शनिवार को सुनवाई हुई। इस दौरान याची पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. एलपी मिश्रा ने दलील दी कि निकाय चुनावों में पिछड़े वर्ग को दिया जाने वाला आरक्षण नौकरियों या संस्थानों में दाखिले आदि में दिए जाने वाले आरक्षण से भिन्न है। कहा गया कि यह एक राजनीतिक आरक्षण है, न कि सामाजिक, शैक्षिक या आर्थिक। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय ने सुरेश महाजन मामले में ट्रिपल टेस्ट फार्मूले की व्यवस्था अपनाने का आदेश दिया था। इस ट्रिपल टेस्ट के जरिए ही पिछड़े वर्ग की सही राजनीतिक स्थिति का आकलन किया जा सकता है।
सरकार की दलील
याचिकाओं का विरोध करते हुए अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता अमिताभ राय ने दलील दी कि सरकार का सर्वे काफी विस्तृत है। हर घर का सर्वे किया गया है। गणना से प्राप्त आंकड़ों को दृष्टिगत रखते हुए ही ओबीसी आरक्षण लागू किया गया है। यह भी दलील दी गई कि सरकार ने म्यूनिसिपल एक्ट के प्रावधानों के तहत ही सर्वे के पश्चात ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था की है। यह भी कहा गया कि याचियों की ओर से संबंधित प्रावधान को चुनौती नहीं दी गई है, लिहाजा उनकी याचिकाएं पोषणीय ही नहीं हैं। इस पर अदालत ने कहा कि यदि यह मान भी लेते हैं कि सरकार का कराया सर्वे विस्तृत है तो भी ओबीसी वर्ग के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर इस सर्वे में भी कोई रिपोर्ट तैयार नहीं की गई है। ट्रांसजेंडर को आरक्षण दिए जाने के मुद्दे पर सरकार की ओर से कहा गया कि निकाय चुनाव में उनके लिए आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है।
कई दिन से चल रही थी सुनवाई
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में ओबीसी आरक्षण को लेकर कई दिनों से सुनवाई चल रही थी। शुक्रवार को भी सुनवाई होनी थी, लेकिन नहीं हो सकी। हालांकि अभी चुनाव की तारीखों की घोषणा पर लगाई गई रोक बरकरार रहेगी। बताया जा रहा है कि शुक्रवार को हाईकोर्ट में नए केसों की ज्यादा संख्या होने के कारण पुराने केस पर सुनवाई नहीं हो सकी थी।
छुट्टी में सुनवाई करने को लेकर क्या बोला था कोर्ट
24 दिसंबर से कोर्ट की शीतकालीन छुट्टियां शुरू हो गई हैं। इसके बाद भी हाईकोर्ट को छुट्टी के दिन बैठना पड़ा। कोर्ट ने कहा था कि यह स्थानीय निकायों में चुनाव व लोकतंत्र से जुड़ा विषय है लिहाजा कोर्ट अवकाश में सुनवाई करेगी।
शुक्रवार को सुनवाई में क्या-क्या हुआ
शुक्रवार को पीठ के समक्ष सूचीबद्ध मामलों की अधिकता के कारण शाम को लगभग साढ़े छह बजे तक नए मामलों (फ्रेश केसेज) की ही सुनवाई चलती रही। इसके बाद जब निकाय चुनावों सम्बंधी याचिकाओं पर न्यायालय ने कहा कि कल से शीतकालीन अवकाश शुरू हो रहा है और कल इन मामलों को तभी सूचीबद्ध किया जा सकता है जबकि याचियों व राज्य सरकार दोनों तरफ से अनुरोध किया जाए। दोनों पक्षों की सहमति पर न्यायालय ने मामले को शनिवार को सूचीबद्ध करने को कहा था। हालांकि एक याची के अधिवक्ता ने मामले की सुनवाई 2 जनवरी को करने का अनुरोध यह कहते हुए किया कि शनिवार से होने वाली छुट्टियों के कारण तमाम अधिवक्ताओं के शहर से बाहर रहने की संभावना है, इस पर न्यायालय ने कहा कि छुट्टियों में हम सुनवाई के लिए तैयार हैं तो आपको भी कुछ बलिदान करना होगा।
लोकतान्त्रिक तरीके से चुने जाते हैं निकाय, अनिश्चितता में नहीं छोड़ सकते
न्यायालय ने कहा था कि यह 17 नगर निगमों और 761 नगर परिषदों व नगर पंचायतों में चुनाव का मामला है, इन तमाम स्थानीय निकायों का कार्यकाल 7 जनवरी से 30 जनवरी तक समाप्त होने वाला है, ये निकाय लोकतान्त्रिक तरीके से चुने गए प्रतिनिधियों से गठित होते हैं। न्यायालय ने कहा कि निकायों में चुनावी प्रक्रिया जितनी जल्दी हो सके उतने जल्दी शुरू होनी जरूरी है और इसे अनिश्चितता में नहीं छोड़ा जा सकता।
अभी तक हुई सुनवाई में याचियों की ओर से मुख्य रूप से यह दलील दी गई कि निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण ओबीसी वर्ग की राजनीतिक स्थिति का आकलन किए बिना नहीं तय किया जा सकता है। वैभव पांडेय व अन्य याचियों की ओर से दर्ज की गई जनहित याचिका में वरिष्ठ अधिवक्ता एलपी मिश्रा ने दलील दी कि सरकार द्वारा जिस तरह से ओबीसी आरक्षण जारी किया गया है, वह अपने आप में गलत है। उनका कहना था कि निकाय चुनावों में पिछड़े वर्ग को मिलने वाला आरक्षण नौकरियों अथवा दाखिले इत्यादि में दिए जाने वाले आरक्षण से भिन्न है।
कहा कि यह एक राजनीतिक आरक्षण है, न कि सामाजिक, शैक्षिक अथवा आर्थिक। उन्होंने दलील दी कि सर्वोच्च न्यायालय ने इसीलिए सुरेश महाजन मामले में ट्रिपल टेस्ट फार्मूले की व्यवस्था अपनाने का आदेश दिया क्योंकि ट्रिपल टेस्ट के जरिए ही पिछड़े वर्ग की सही राजनीतिक स्थिति का आकलन किया जा सकता है।
याची पक्ष की ओर से सरकार के रैपिड सर्वे को ट्रिपल टेस्ट फार्मूले जैसा मानने की दलील का विरोध करते हुए कहा गया कि सही स्थिति का आकलन इस उद्देश्य के लिए डेडिकेटेड कमेटी का गठन करके ही किया जा सकता है।