आयकर विभाग की छापेमारी में पकड़े करोड़ों की बरामदगी का मांग रहे हिसाब, ये रडार पर
आयकर विभाग करोड़ों की बरामदगी का हिसाब मांग रहा। देशभर में तीन साल में आयकर विभाग की छापेमारी में खेल सामने आया। कार्रवाई के दौरान अलग-अलग जगह से 25 से 30 करोड़ बरामद हुए थे जिनका हिसाब मांग रहा विभाग
देशभर में आयकर विभाग के छापों में मिले लाखों-करोड़ों रुपये दबाने वाले अब रडार पर हैं। इनमें बिल्डर, ज्वेलर्स और सफेदपोश भी हैं। फिलहाल नोटिस भेजकर रकम का ब्योरा मांगा गया है। विभाग की सख्ती से यूपी ही नहीं बल्कि कई राज्यों में खलबली मची है। आयकर सूत्रों के अनुसार, देश के अलग-अलग राज्य व शहरों में तीन साल के दौरान कई जगहों पर छापेमारी की गई। इनमें से बिल्डर, ज्वेलर्स समेत कई बड़े कारोबारी भी जद में आए। छापे के दौरान अफसरों ने बड़ी संख्या में नकदी भी बरामद की। जांच के दौरान रकम देने वालों के नामों का भी खुलासा हुआ तो विभाग ने उनसे कमाई का जरिया बताने के लिए कहा है।
180 से अधिक लोगों को देशभर में नोटिस
आयकर सूत्रों की मानें तो छापेमारी के दौरान लगभग 25 से 30 करोड़ रुपये नकद में बरामद हुए। यह रकम व्यापारिक सौदे, जमीन की खरीद-फरोख्त के लिए मुख्य रूप से दी गई। रकम का जरिया जानने के लिए विभाग ने दिल्ली, यूपी, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड समेत कई देशभर में करीब 182 लोगों को धारा 148 के तहत नोटिस दिया है। सभी से रकम का जरिया बताने के लिए भी कहा गया है।
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कानपुर, लखनऊ, प्रयागराज और मेरठ के भी कारोबारी रडार पर
छापों में बरामद करोड़ों रुपये के मामले में यूपी के कई शहर के कारोबारियों पर तलवार लटक रही है। सूत्रों के अनुसार, कानपुर, लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी, गाजियाबाद और मेरठ के भी कारोबारी रडार पर हैं। बरामद रकम देने में इनकी संलिप्तता का पता चलने पर नोटिस भेजकर पक्ष रखने को रखा गया है।
वरिष्ठ कर विशेषज्ञ, अंकुर गोयल ने कहा कि तीन साल के दौरान देशभर में हुई छापेमारी में बरामद नकदी पर आयकर विभाग सख्त है। विभाग ने नकद देने वालों को रडार पर रखा है। ऐसे लोगों को धारा 148 के तहत नोटिस भेजकर पक्ष रखने के लिए कहा गया है। अगर जवाब संतोषजनक नहीं है तो विभाग कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है।
वरिष्ठ कर विशेषज्ञ, दीप कुमार मिश्रा ने कहा कि छापेमारी में बरामद नकदी का हिसाब-किताब आयकर विभाग मांग रहा है। इसके लिए विभाग की ओर से नोटिस भी जारी किए गए हैं। रकम का जरिया नहीं बताने या संतोषजनक जवाब नहीं होने पर विभाग सख्ती भी कर सकता है।