Hindustan Special: यूपी के इस गांव में अंग्रेज कर्नल ने लिया था ऐसा फैसला की नाम ही पड़ गया करनैलगंज, पढ़ें क्या था फैसला
गोंडा का एक गांव अंग्रेज कर्नल के फैसले से करनैलगंज बन गया। यहां कभी गांव था लेकिन अंग्रेजों की सेना ने इसकी सूरत बदल दी। यहीं 1857 में क्रांति का बिगुल बजा और कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह बना ये गांव।
गोंडा जिले का करनैलगंज कस्बा अंग्रेजी हुकूमत के दौरान छोटा सा गांव था। इसे सकरौरा के नाम से जाना जाता था। अवध के राजे-रजवाड़ों को अपने अधीन करने के लिए अंग्रेजों ने 1802 में सकरौरा में छावनी स्थापित की थी। कर्नल फूक्स के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने सकरौरा में पड़ाव डाला था। सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ ही समय में यहां बाजार बन गया जिसका नाम कर्नलगंज पड़ गया। इसे अब करनैलगंज के नाम से जाना जाता है।
इतिहास के जानकार प्रो. राज गोपाल सिंह वर्मा के अनुसार ब्रिटिश हूकूमत के खिलाफ बगावत की चिंगारी सकरौरा छावनी से फूटी थी। फरवरी 1856 को बइराइच कमिश्नरी के तहत गोण्डा जिला अस्तित्व में आया। सी. विंगफील्ड को कमिश्नर और कर्नल ब्वायलू को डिप्टी कमिश्नर (जिलाधिकारी) बनाया गया। जिले के पहले कलेक्टर कर्नल ब्वायलू ने जनता पर जुल्म ढाने शुरू कर दिए।
इससे नाराज होकर तुलसीपुर की रानी ईश्वरी देवी के नौजवान सेनापति फज़ल अली ने 10 फरवरी 1857 ई. को कमदा कोट के पास डिप्टी कमिश्नर और कलेक्टर कर्नल ब्यावलू का सिर धड़ से अलग कर बाग में लटका दिया था। इसे अब मुड़कटवा बाग के नाम से जाना जाता है जो बलरामपुर जिले में स्थित। इस हत्या से क्रोधित अंग्रेज़ों ने वहां सैकड़ों निर्दोष व्यक्तियों के सिर कलम करा दिए। नौ जून सन 1857 को सकरौरा की छावनी में राज्य के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। इसमें अंग्रेज अफसरों के साथ कई सैनिक भी मारे गए थे। आज भी यहां तीन बड़े अंग्रेज अधिकारियों की कब्र है।
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गोंडा-बहराइच के बीच केन्द्रीय स्थान था करनैलगंज
ब्रिटिश हुकूमत के दौरान कर्नलगंज गोंडा, बहराईच और बलरामपुर के बीच केंद्रीय स्थान के कारण व्यापार का तेजी से बढ़ता केंद्र था। यहां होने वाले व्यापार में लगभग विशेष रूप से अनाज मुख्य रूप से चावल, तेल-बीज सरसों और अलसी का व्यापार में होता था। पूर्व में यहां जूट की मंडी भी हुआ करती थी।
अब सर्राफा व बर्तनों के व्यापार का केन्द्र
वर्तमान समय में यह बाजार सर्राफा व बर्तनों के लिये प्रसिद्ध है। हालांकि अनाज का व्यापार आज भी यहां होता है। लेकिन जूट और अन्य व्यापार अब पहले जैसे नहीं रह गए हैं। जानकार बताते है कि करनैलगंज में प्रति सप्ताह दो बाजार होते थे, सोमवार और मंगलवार। अब तो यहां रोजाना बाजार लगता है। आसपास के जिलों से खरीदार आते हैं।