तुम बी ग्रेड अफसर, मैं ए ग्रेड अधिकारी, मुझे निर्देश कैसे दिया; यूपी में डिप्टी कलेक्टर से भिड़ा इंजीनियर
अंबेडकरनगर में सिविल सेवा और इंजीनियरिंग सेवा के दो अधिकारियों के बीच ऐसा पत्राचार हुआ कि हड़कंप मच गया। सोशल मीडिया पर वायरल हुए इन पत्रों ने हर किसी का ध्यान खींचा और लोग सवाल उठाने लगे।
SDM vs Executive Engineer: यूपी के अंबेडकरनगर में सिविल सेवा और इंजीनियरिंग सेवा के दो अधिकारियों के बीच ऐसा पत्राचार हुआ कि हड़कंप मच गया। सोशल मीडिया पर वायरल हुए इन पत्रों ने हर किसी का ध्यान खींचा और लोग पूछने लगे कि जनता की समस्याओं का समाधान करने के लिए जिम्मेदार विभागों और अफसरों के बीच ये क्या हो रहा है? हालांकि डीएम के हस्तक्षेप के बाद दोनों अधिकारियों के बीच मामला फिलहाल खत्म हो गया है लेकिन इसे लेकर चर्चाओं का बाजार अब भी गर्म है।
मामला ये है कि अंबेडकरनगर के जलालपुर में उप जिलाधिकारी (एसडीएम) सुनील कुमार ने पीडब्ल्यूडी के अधिशासी अभियंता (एग्जीक्यूटिव इंजीनियर) को एक पत्र लिखा था जिसमें जलालपुर तहसील में आने वाले मालीपुर से जलालपुर के बीच सड़क के किनारे-किनारे झांड़ियों और पेड़ों की शाखाएं लटकी होने का उल्लेख करते हुए इन्हें साफ कराने की बात कही गई थी। बात तो सामान्य थी लेकिन इस पत्र की भाषा पीडब्लूडी के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर एमके अनिल को चुभ गई। एग्जीक्यूटिव इंजीनियर को चिट्ठी में 'निर्देशित' किए जाने को लेकर सख्त एतराज हुआ।
पत्र में लिखा था- 'तहसील जलालपुर जनपद अंबेडकरनगर क्षेत्रान्तर्गत मालीपुर से जलालपुर सड़क मार्ग पर किनारे-किनारे झाड़ियां व पेड़ की शाखाएं लटकी हुई हैं जिसके कारण उक्त मार्ग पर दुर्घटना की प्रबल संभावना है। उक्त के दृष्टिगत आपको निर्देशित किया जाता है कि सड़क किनारे लटकी हुई झाड़ियों पर पेड़ की शाखाओं को साफ कराना सुनिश्चित करें।’
इस पत्र के जवाब में एग्जीक्यूटिव इंजीनियर एमके अनिल ने एसडीएम से ही कई बिंदुओं पर जवाब मांग लिया। एग्जीक्यूटिव इंजीनियर की ओर से लिखे पत्र में कहा कि जानकारी के अनुसार आप उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग द्वारा चयनित एवं उत्तर प्रदेश शासन द्वारा तैनात द्वितीय श्रेणी-ख के अधिकारी हैं जबकि वह (एग्जीक्यूटिव इंजीनियर) उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग द्वारा चयनित एवं उत्तर प्रदेश शासन द्वारा तैनात प्रथम श्रेणी-क के अधिकारी हैं। अत: किस नियमावली के तहत द्वितीय श्रेणी के अधिकारी प्रथम श्रेणी के अधिकारी को ‘निर्देशित’ कर सकते हैं।
इसी के साथ उन्होंने नियमों का हवाला देते हुए लिखा है कि ‘क्या आप द्वारा निर्देशित किया जाना उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियमावली 1956 के नियम-3 में वर्णित नियमों के अनुसार उपयुक्त है। वहीं झाड़ियों को हटाने के लिए क्या कोई बजट उपलब्ध कराया है और इस काम के लिए धनराशि को किस मद से खर्च किया जाएगा,' ये भी पूछा लिया।
मूल मुद्दा दरकिनार, 'निर्देशित' पर टिक गई बात
एसडीएम की चिट्ठी के जवाब में एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के पत्र में उठाए गए सवालों से हड़कंप मच गया। एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के पत्र के बाद मालीपुर से जलालपुर तक की सड़क पर झाड़ियों की सफाई, दुर्घटना की आशंका का मुद्दा दरकिनार हो गया और सारा फोकस ‘निर्देशित’ शब्द पर आकर टिक गया। सोशल मीडिया में इसे लेकर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आने लगीं तो डीएम अविनाश सिंह ने मामले में दखल दिया।
बाद में डीएम कार्यालय की ओर से जारी एक पत्र में बताया गया कि दोनों अधिकारियों के बीच सौहार्दपूर्ण बातचीत से मामला सुलझ गया और अब इसे लेकर दोनों में से किसी में संशय नहीं है। डीएम ने यह भी कहा कि शाब्दिक त्रुटि और आपसी संवादहीनता के कारण अनजाने में ऐसा हुआ, जिसे हल कर लिया गया है।