सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर फिर SP के साथ करेंगे गठबंधन? क्यों हो रही चर्चा, क्या है अखिलेश यादव की रणनीति
विधानसभा चुनाव की तरह सपा की कोशिश छोटे दलों के साथ गठबंधन कर चुनावी जंग में उतरने की है। सपा को छोड़ गए क्षेत्रीय क्षत्रपों को फिर साथ लेने की रणनीति पर काम हो रहा है। इसमें शिवपाल की भूमिका अहम है।
मैनपुरी लोकसभा सीट भारी वोटों से जीतने और खतौली की सीट भाजपा से छीनने के बाद सपा अगले आम चुनाव की रणनीति पर काम करने लगी है। इस रणनीति में सबसे अहम किरदार सपा प्रमुख अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव निभाने जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव की तरह सपा की कोशिश छोटे दलों के साथ गठबंधन कर चुनावी जंग में उतरने की है। सपा को छोड़ गए या रुठे क्षेत्रीय क्षत्रपों को फिर साथ लेने की रणनीति पर काम हो रहा है। शिवपाल को मैदान में उतारकर ओपी राजभर की सुभासपा को फिर से सपा गठबंधन में लाने की तैयारी है। ओपी राजभर वैसे भी शिवपाल यादव की हमेशा तारीफ करते रहे हैं।
असल में शिवपाल यादव की छोटे दलों के ज्यादातर नेताओं से रिश्ते ठीक हैं। सपा ने इसी साल जुलाई में शिवपाल के साथ-साथ सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर को कहीं भी जाने के लिए मुक्त किया था। सपा के गठबंधन के मजबूत साथी राजभर अब अलग राह ले चुके हैं। उनकी भी दुबारा भाजपा में जाने की चर्चाएं खूब चलीं लेकिन बात नहीं बनीं। माना जा रहा है कि सुभासपा देर सबेर सपा गठबंधन का हिस्सा बन सकती है। हालांकि वह अभी सपा पर तंज करते रहते हैं। सुभासपा को भाजपा से भी कोई तवज्जो मिलती नहीं दिखती।
सपा से गठबंधन से सुभासपा को भी फायदा हुआ। सपा गठबंधन के दूसरे साथी महान दल भी खफा चल रहा है। उसकी शिकायत रही है कि उसे गठबंधन के अन्य साथियों के मुकाबले सपा नेतृत्व ने कम तवज्जो दी। महान दल को हालांकि विधानसभा में कोई सीट नहीं मिली थी लेकिन पिछड़ी अति जातियों में उसने कहीं कहीं असर दिखाया था। इसके केशव देव मौर्य ने सपा गठबंधन के लिए कई जिलों में यात्राएं निकाली थीं। इसी तरह संजय चौहान की पार्टी ने जोरदार प्रचार अभियान चलाया था। सपा के साथ रालोद व अपना दल कमेरावादी जैसे सहयोगी दल मजबूती से साथ हैं।
सहयोगी हुए थे खफा
असल में रामपुर व आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में सपा की करारी शिकस्त के बाद गठबंधन में दरार पड़ने लगी थी। ओम प्रकाश राजभर ने हार का ठीकरा सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर मढ़ा था। यही नहीं वह सपा मुखिया को एसी कमरे से बाहर निकलने की भी सलाह दे चुके हैं। यही जनवादी सोशलिस्ट पार्टी के संजय चौहान ने सपा में आए स्वामी प्रसाद मौर्य व दारा सिंह चौहान को दगा कारतूस बताया था। कहा था कि जंग लगे नेताओं के भरोसे चुनाव नहीं जीता जा सकता।
नए छोटे दलों पर निगाह
विधानसभा चुनाव के वक्त सांसद असुदद्दीन औवेसी, ओम प्रकाश राजभर व शिवपाल यादव अलग मोर्चो बनाने के लिए कई बार बैठकें की थीं। बदले हालात में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम अगर इस गठबंधन के साथ आ जाए तो कोई हैरत की बात नहीं। ओवैसी की पार्टी विधानसभा चुनाव में छोटे दलों के साथ गठजोड़ की कोशिश में थी। लेकिन शिवपाल बाद में खुद ही सपा से चुनाव लड़ गए थे। ओवैसी आजम खां को अपनी पार्टी में आने का न्यौता दे चुके हैं।