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अगले साल तक सौर तूफान मचा सकता है तबाही, मोबाइल-वाईफाई नेटवर्क पर सबसे ज्यादा असर

अगले साल तक सौर तूफान तबाही मचा सकता है। इसका सबसे ज्यादा असर मोबाइल-वाईफाई नेटवर्क और कम्यूनिकेशन से जुड़े उपकरणों पर पड़ सकता है। बीएचयू और आईआईटी के सौर वैज्ञानिक गहन अध्ययन में लगे हैं।

Yogesh Yadav हिन्दुस्तान, वाराणसीFri, 22 March 2024 03:37 PM
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क्या आपने भी पिछले दिनों महसूस किया कि आपका मोबाइल या वाईफाई नेटवर्क जरूरत से ज्यादा धीमा या खराब चल रहा है। डिश एंटीना रह-रहकर नेटवर्क छोड़ दे रहा है। जानकर हैरत होगी कि इसका कारण सर्विस प्रोवाइडर की खराबी नहीं बल्कि सूरज की सतह पर बढ़ी हलचल है। सूरज पर लगातार विस्फोट हो रहे हैं। इससे लाखों किलोमीटर ऊंची ज्वालाएं, हानिकारक विकिरण और चार्ज पार्टिकल्स सौरमंडल में फैल रहे हैं। बीएचयू के सौर वैज्ञानिकों का कहना है कि 2025 में यह अपने उच्चतम बिंदु पर होगा और दुनिया में तबाही मचा सकता है।

सूरज के ‘एल-1’ प्वाइंट पर स्थापित भारत के ‘आदित्य’ ने सूरज की सतह पर उठ रहे इस तूफान का अध्ययन शुरू कर दिया है। इससे संबंधित ताजा आंकड़े भी इसरो के पास पहुंच रहे हैं। भारत के इस पहले सौर मिशन से बीएचयू के तीन वैज्ञानिक जुड़े हैं जो लगातार सौर तूफानों और इनकी प्रकृति पर नजर रखे हैं। बीएचयू के भौतिक विज्ञान विभाग के डॉ. कुंवर अलकेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि सूरज की सतह का मौसम 2023 से खराब होना शुरू हुआ है। चंद्रयान-3 के 50वें दिन ही ‘आदित्य एल-1’ के लांच का भी कारण यही था। इसे जल्द से जल्द सूरज के पास पहुंचाने की कोशिश थी ताकि सही डेटा प्राप्त हो सके।

डॉ. सिंह ने बताया कि सौर तूफान का धरती पर कई प्रकार से प्रभाव पड़ता है। इसमें मोबाइल सहित अन्य कम्यूनिकेशन सिस्टम सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इसके बाद सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाली व्यवस्था विमानन और जल परिवहन है। नेविगेशन पर चलने वाला यह सिस्टम पूरी तरह ध्वस्त हो सकता है। सौर तूफान का असर बिजली व्यवस्था, सैटेलाइट पर तो पड़ेगा ही। सौर तूफान में आने वाले चार्ज पार्टिकल्स की वजह से गैस और ईंधन पाइप लाइन में करंट तक दौड़ सकता है। उन्होंने बताया कि आदित्य एल-1 के साथ ही अमेरिका के ‘हेलियोस’ व दुनिया के अन्य देशों के सौर मिशन के जरिए भी सौर तूफान का अध्ययन किया जा रहा है।

हर 11 साल में सबसे तेज होते हैं सौर तूफान
सूर्य पर हुए अब तक के अध्ययनों के मुताबिक हर 11 साल में यहां सौर तूफान सबसे तेज हो जाते हैं। इसे ‘सोलर मैक्सिमम’ का नाम दिया गया है। इससे पहले 2013, 2002 और 1991 में सोलर मैक्सिमम की स्थिति बनी थी। वैज्ञानिकों के मुताबिक सूर्य अपनी धुरी पर दोहरा घूर्णन करता है। यह धुरी पर तो घुमता ही है, इसके अलावा हर 11 साल में इसके उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव आपस में स्थान बदल लेते हैं।

इससे सूर्य के विभिन्न हिस्सों में डार्क स्पॉट्स बढ़ने लगते हैं और चुंबकीय क्षेत्र भी ज्यादा बनते हैं। इस उथल-पुथल के कारण सूर्य पर आम दिनों से ज्यादा प्लाज्मा विस्फोट, मैगनेटिक फील्ड शिफ्ट और रेडिएशन होते हैं और बड़ी-बड़ी फ्लेयर (ज्वालाएं) उठती हैं।

कनाडा सबसे ज्यादा प्रभावित
डॉ. कुंवर अलकेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि सौर तूफानों की स्थिति में पृथ्वी पर सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला देश कनाडा है। उन्होंने बताया कि सूर्य का चुंबकीय और विकिरण प्रभाव ध्रुवों के रास्ते पृथ्वी पर प्रभाव डालता है। ध्रुवों के नजदीक होने के कारण कनाडा पर इनका सबसे ज्यादा प्रभाव होता है। उन्होंने बताया कि 13 मार्च 1989 को इसी सौर विकिरण के कारण कनाडा की क्यूबेक सिटी के सारे कम्युनिकेशन और बिजली के सिस्टम फेल हो गए थे और पूरा शहर नौ घंटे के लिए अंधेरे में डूब गया था।

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