Hindustan Special: सिनोली उत्खनन से महाभारत के कई रहस्यों से पर्दा उठा, 4 हजार साल पहले युद्ध कौशल के मिले प्रमाण
बागपत के सिनोली में उत्खनन के दौरान मिली महाभारतकालीन योद्धाओं की कब्रों, ताबूतों के रहस्यों से पर्दा उठ गया है। इसने ऐसे बहुत से राज खोल दिये हैं जिसने ब्रिटिश थ्योरी को पूरी गलत साबित किया है।
बागपत जिले के सादिकपुर सिनोली में उत्खनन के दौरान मिली महाभारत कालीन योद्धाओं की कब्रों, ताबूतों के रहस्यों से पर्दा उठ गया है। इसने ऐसे बहुत से राज खोल दिये हैं जिसने आर्यन और ब्रिटिश थ्योरी को पूरी तरह झुठला दिया है। नेशनल म्यूजियम ऑडिटोरियम दिल्ली में आयोजित हुए व्याख्यान में सभी बिंदुओं पर बारीकी से रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
रामायण और महाभारत काल में अस्त्र-शस्त्र के प्रयोग की प्रामाणिकता को मिला बल
10 नवंबर को नेशनल म्यूजियम ऑडिटोरियम में सिनोली उत्खनन पर एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के ज्वाइंट डायरेक्टर जनरल डॉ. संजय मंजुल द्वारा व्याख्यान प्रस्तुत किया। इस व्याख्यान में डॉ. संजय मंजुल द्वारा "द एक्सेवेशन ऑफ सिनोली:रिवीलिंग द ग्रेव्स ऑफ ग्रेट इंडियन वारियर्स" विषय पर रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इस रिपोर्ट ने आर्यन थ्योरी और ब्रिटिशर्स द्वारा जो गलत इतिहास दर्शाया, उसे सिनोली ने पूरी तरह से झुठला दिया है। डॉ. संजय मंजुल ने बताया कि आर्यन और ब्रिटिशर्स के अनुसार अस्त्र-शस्त्रों का प्राचीन समय (महाभारत, रामायण काल) में प्रयोग होना एक कपोल कल्पना मात्र थी। सिनोली में मिले अस्त्र-शस्त्रों, युद्ध रथ ने साबित किया है कि उस समय का वर्णन बगैर अस्त्र-शस्त्र के हो ही नहीं सकता। आर्यन और ब्रिटिश थ्योरी में दावा किया गया था कि महाभारत और रामायण काल में अस्त्र-शस्त्रों का न तो अविष्कार हुआ था और न ही उनसे युद्ध लड़ा गया।
4000 साल पहले युद्ध कौशल के मिले प्रमाण
नेशनल म्यूजियम में हुए इस व्याख्यान में डॉ. संजय मंजुल ने पूरी रिपोर्ट को पुरावशेषों की एक डॉक्यूमेंट्री के साथ प्रस्तुत किया। इस दौरान इतिहासकार, शोधार्थी भी मौजूद रहे, जिन्होंने सिनोली पर आधारित अपने प्रश्नों के जवाब भी डॉ. संजय मंजुल से प्राप्त किये। डॉ. संजय मंजुल ने बताया कि सिनोली उत्खनन से मिली दुर्लभ सामग्री के आधार पर यहां विश्व का सबसे बड़ा शवधान केंद्र मिला। यह मामूली शवधान केंद्र नहीं बल्कि यह योद्धाओं का शवधान केंद्र था। 4000 साल पहले के उन योद्धाओं के शव यहां दफनाए गए थे जो युद्धकौशल में बेहद निपुण थे। सिनोली में जो अस्त्र-शस्त्र, युद्ध रथ, ताबूत मिले, वे इससे पहले हुए उत्खनन में नहीं मिले। सिनोली ने न केवल यह साबित किया कि 4000 साल पहले युद्ध कौशल कितनी मजबूत थी बल्कि इस बात पर भी मुहर लगाई कि उनके हथियार व अन्य वस्तुएं कितनी उन्नत थीं। उन्होंने कहा कि यह भारतीय इतिहास के लिए नया मोड़ है और इससे अब इतिहास को संशोधित करने की भी आवश्यकता को बल मिला है।
सिनाेली ताम्र-पाषाण काल का सबसे बड़ा कब्रिस्तान
डॉ. संजय मंजुल ने तर्क दिया कि 'संभवत: सिनौली ताम्र-पाषाण काल का सबसे बड़ा कब्रिस्तान है। इन कब्रों में पाई गई अत्यधिक परिष्कृत सांस्कृतिक सामग्री, हड़प्पावासियों के अंतिम परिपक्व चरण के समकालीन, हड़प्पावासियों की निर्धारित परिकल्पना को चुनौती देती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आर्य मूलनिवासी लोग थे और उन्होंने आर्य आक्रमण के सिद्धांत को खारिज कर दिया।
आज भी उसी समय की परंपरा का होता है निर्वहन
डॉ. संजय मंजुल ने बताया कि सिनोली में 3 चरणों में हुए उत्खनन के दौरान जिस शवधान केंद्र की पुष्टि हुई है, उसमें शवों को रखने के लिए बढ़िया और बेहतर ढंग से गड्ढे बनाये गए थे। शवों को गड्ढे में रखने से पहले पेटियां बनाई गई थीं, जिनके ऊपर तांबे से शानदार नक्काशी की गई थी। इन शव पेटियों के इर्द-गिर्द व नीचे सम्बंधित योद्धा द्वारा प्रयोग की जाने वाली वस्तुएं जिनमे अस्त्र शस्त्र, ढाल, हेलमेट, मशाल, तांबे व मिट्टी के पात्र जिनमें घी-दूध, अनाज भरकर रखा जाता था। वेदों में भी इस बात का जिक्र है कि जब व्यक्ति मरकर स्वर्ग को जाता है तो उसे वहीं सुविधा, वस्तुएं वहां मिलती हैं जो मरणोपरांत व्यक्ति के साथ दफन की जाती हैं। आज भी व्यक्ति के मरने के बाद दान करने, पिंड दान करने की परंपरा है।