Hindustan Special: सावधान! यूपी के कई स्कूलों में प्रदूषण के आंकड़े खतरनाक, यूनिवर्सिटी की रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा
कक्षा छह में पढ़ने वाला मनु आज फिर स्कूल जाने में कुनमुनाया तो मां ने जोर से डांट लगाई। रुआंसे मनु ने कहा कि उसका कक्षा में दम घुटता है। पर मम्मी कुछ सुनने और सोचने को तैयार नहीं थीं।
Pollution in Schools: कक्षा छह में पढ़ने वाला मनु आज फिर स्कूल जाने में कुनमुनाया तो मां ने जोर से डांट लगाई। रुआंसे मनु ने कहा कि उसका कक्षा में दम घुटता है। पर मम्मी कुछ सुनने और सोचने को तैयार नहीं थीं। ज्यादा डांट-डपट होने पर मनु कंधे पर बैग टांगकर आखिर स्कूल रवाना हो गया। यह अकेले मनु की कहानी नहीं है। डा. बीआरए विवि के शोधार्थियों द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक, मनु जैसे तमाम बच्चे कक्षाओं में इस तरह के संकट से जूझ रहे हैं। उन्हें कारण नहीं पता तो वह अपनी बात स्पष्ट नहीं कर पाते और प्रदूषण के अनचाहे वार झेलने को मजबूर हैं।
डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग द्वारा किए गए एक शोध में खुलासा हुआ है कि स्कूल परिसर भारी प्रदूषण की चपेट में हैं। शोधार्थियों के स्कूलों परिसर से जुटाए डाटा में प्रदूषण के आंकड़े कहते हैं कि डब्ल्यूएचओ के निर्धारित मानक से स्कूलों में पीएम-2.5 का स्तर 13 गुना तो पीएम-10 का स्तर कई स्कूल परिसरों में दस गुना तक अधिक है। पिछले तीन साल से लगातार सर्दी, गर्मी और मानसून और पोस्ट मानसून में जुटाये गए डाटा के अध्ययन के बाद कहा गया है कि बाहर की तुलना में घर या फिर स्कूल के अंदर का प्रदूषण अधिक खतरनाक है।
2021 में शुरू किया था काम
विवि के डीन साइंस प्रो. अजय तनेजा के अनुसार प्रोजेक्ट पर सितंबर 2021 में काम शुरू किया गया था। इसके बाद से स्कूलों में डाटा एकत्रित किया गया। यह सभी मौसम के दौरान एकत्रित किया गया। ताकि सही स्थिति सामने आ सके। इसमें सर्दी, गर्मी, मानसून और पोस्ट मानसून के नमूने शामिल हैं। विभाग के शोधार्थियों ने जब स्कूलों के अंदर के प्रदूषण का डाटा रिकार्ड किया, तो आंकड़े चौंकाने वाले थे। आपके बच्चे जिस क्लास रूम में कई घंटे गुजारते हैं। उस क्लास रूम और स्कूल की हवा बेहद जहरीली है।
ग्रामीण विद्यालयों की हवा ठीक नहीं
प्रो. तनेजा के अनुसार शोध कार्य के लिए शहरी क्षेत्र के चार और शहर से लगे ग्रामीण क्षेत्रों के चार विद्यालयों में नमूने लिए गए। ग्रामीण क्षेत्र के सड़क किनारे स्थित स्कूल में जहां पीएम-10 का स्तर 423.52 मिला। वहीं पीएम 2.5 का स्तर 183.95 रहा। शहर के सड़क किनारे स्थित स्कूल में जहां पीएम-10 का स्तर 346.69 दर्ज किया गया। वहीं पीएम 2.5 का स्तर 163.64 रिकार्ड किया गया। यह ग्रामीण क्षेत्र से कम था।
अंदर का प्रदूषण है बहुत खतरनाक
शोध कार्य प्रो. अजय तनेजा के निर्देशन में किया गया। उनके अनुसार बाहरी वातावरण की तुलना में घर या फिर स्कूल के अंदर का प्रदूषण अधिक खतरनाक होता है। क्योंकि इसी वातावरण में बच्चे अपना अधिक समय गुजारते हैं। ऐसे में उन पर प्रदूषण का गंभीर प्रभाव दिखता है। पार्टिकुलेट मैटर में केमिकल होते हैं। शरीर में पहुंचने के बाद नुकसान पहुंचाते हैं। अधिक समय तक निर्धारित मानकों से अधिक पीएम वाले वातावरण में रहने से अस्थमा जैसी बीमारी तक हो सकती है। क्योंकि बच्चों के सांस लेने का औसत करीब डेढ़ गुना अधिक होता है।
सिर दर्द, उलटी, सांस लेने में दिक्कत
अक्सर हर तीसरा चौथा बच्चा स्कूल से लौटकर सिर दर्द, आंखों में जलन, उलटी, सांस लेने में दिक्कत और खांसी की शिकायत करता है। यही वजह है कि बच्चे अक्सर स्कूल जाने से कतराते हैं या छुट्टी कर लेते हैं। हालांकि स्कूल संचालक इस मामले में चुप्पी साध जाते हैं। वहीं, परिजनों का कहना है कि सुबह के वक्त मौसम काफी ज्यादा खराब होता है। ऐसे में प्रदूषण के बीच बच्चों को स्कूल जाना पड़ रहा है। इन हालातों में स्कूल में बच्चों की अटेंडेंस 70 से 80 पर्सेंट तक रहती है, जोकि पहले 90 पर्सेंट तक होती थी।
हालात को और बदतर कर रहे हैं ये
अध्ययन में उल्लेख किया गया है कि जटिल प्रकृति और इनडोर वातावरण के प्रकारों के कारण शहरी क्षेत्रों में इनडोर वायु प्रदूषण पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। तम्बाकू धूम्रपान, निर्माण सामग्री, रहने वालों की गतिविधियां और खराब रखरखाव वाली वेंटिलेशन प्रणाली जैसे कई स्रोत शहरी इमारतों में सह-अस्तित्व में रह सकते हैं और प्रदूषण के स्तर को बदतर बना सकते हैं।
बढ़ते प्रदूषण को लेकर बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य सतीश शर्मा कहते हैं कि प्रदूषण के खतरनाक स्तर के कारण स्कूली बच्चों की सुरक्षा चिंता का विषय है। बच्चे स्कूल आने जाने में, खेल के मैदानों में जहरीली हवा के प्रकोप में है। ये लापरवाही गलत है, इस पर तुरंत कोई कदम उठाया जाना चाहिए।