सीधे एडमिशन का मौका भी न आया काम, इन कॉलेजों में खाली रह गईं 62% सीटें; प्रबंधकों की बढ़ी चिंता
DDU के स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों को अब BEd पाठ्यक्रम में भी झटका लगने लगा है। तीन चरण की काउंसलिंग और पूल काउंसलिंग पूर्ण होने के बाद भी अभी तक महज 38 प्रतिशत सीटें ही भर सकी हैं।
B Ed Seats: छात्रों की कमी से जूझ रहे दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों को अब बीएड पाठ्यक्रम में भी झटका लगने लगा है। वर्तमान सत्र में तीन चरण की काउंसलिंग और पूल काउंसलिंग पूर्ण होने के बाद भी अभी तक महज 38 प्रतिशत सीटें ही भर सकी हैं। सीटें भरने के लिए कॉलेजों को सीधे प्रवेश का अवसर तो दिया गया है लेकिन कॉलेजों ने उम्मीदें करीब छोड़ दी है।
डीडीयू और उससे सम्बद्ध 100 बीएड कॉलेजों की 8605 सीटों के सापेक्ष मात्र 3300 सीटों पर ही इस सत्र में प्रवेश हो पाया है। विवि से सम्बद्ध गोरखपुर, देवरिया और कुशीनगर जिले के बीएड कॉलेजों की कुल 5305 सीटें रिक्त रह गईं हैं।
सिर्फ विश्वविद्यालय और उससे संबद्ध पांच वित्तपोषित कॉलेजों में शुरुआती दौर में ही सभी 300 सीटें भर गईं। लेकिन 95 स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों में मात्र 3000 विद्यार्थियों ने ही प्रवेश लिया है। कई कॉलेजों में तो प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या पांच से दस तक सिमट गई है। हर जगह बीएड के प्रति छात्रों की अरुचि को देखते हुए बीएड संयुक्त प्रवेश परीक्षा की आयोजक बुंदेलखंड विवि, झांसी ने ऐसे कॉलेजों को सीधे प्रवेश का अवसर दिया है।
9 नवंबर तक सीधे प्रवेश का मौका
बुंदेलखंड विश्वविद्यालय ने सीधे प्रवेश के लिए 9 नवंबर तक का अवसर दिया है। कॉलेज उन अभ्यर्थियों का ही सीधे प्रवेश ले सकेंगे, जिन्होंने बीएड की संयुक्त प्रवेश परीक्षा में प्रतिभाग किया हो। छात्रों की अरुचि को देखते हुए कॉलेज प्रबंधन इसकी तिथि विस्तारित किए जाने की मांग कर रहे हैं।
20-30 हजार तक में दे रहे एडमिशन
शासन से स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों के लिए 51,250 रुपये शुल्क निर्धारित है। ग्रामीण क्षेत्र के कई कॉलेजों में दो-चार से दस विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया है। किसी भी तरह कॉलेजों में इसका संचालन हो, इसलिए अब कई कॉलेजों ने शुल्क में कटौती कर दी है। वे 20-30 हजार रुपये तक में प्रवेश ले रहे हैं।
शहरी कॉलेजों की स्थिति बेहतर
गोरखपुर के सीआरडी पीजी कॉलेज की बीएड विभागाध्यक्ष डॉ.अपर्णा मिश्रा ने कहा कि शहरी कॉलेजों में स्थित काफी हद तक बेहतर है। ग्रामीण क्षेत्रों में बीएड कॉलेजों में ज्यादातर सीटें खाली रह गई हैं। बीएड अभ्यर्थी जिसके लिए अर्ह हैं, वहां नियुक्तियां नहीं होने के कारण छात्रों में अरुचि पैदा हुई है।