बीएचयू अस्पताल में अब मोटापे का भी होगा इलाज, सर्जरी की जगह बैलून से कम होगा पेट
वाराणसी के बीएचयू अस्पताल में भी अब मोटापे का इलाज होगा। मोटापा कम करने के लिए यहां सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसे बैलून से घटाया जाएगा। बीएचयू के गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग में इसकी तैयारी है।
वाराणसी के बीएचयू अस्पताल में भी अब मोटापे का इलाज होगा। मोटापा कम करने के लिए यहां सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसे बैलून से घटाया जाएगा। बीएचयू के गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग में बैरियाट्रिक एंडोस्कोपी में मोटे लोगों के पेट में बैलून प्रवेश कराया जाएगा। चिकित्सकों का दावा है कि इस विधि से एक साल में आठ से दस किलो वजन कम होगा। नए साल में शुरू होने वाली इस सुविधा से बनारस ही नहीं पूरे पूर्वांचल के लोगों को फायदा होगा।
मोटापे से परेशान लोग कई बार बैरिटयाट्रिक सर्जरी कराते हैं। ऐसे में सर्जरी के दौरान कई बार केस बिगड़ने का खतरा रहता है। इस कारण लोग डरते हैं। पहली बार आईएमएस बीएचयू में बैरियाट्रिक एंडोस्कोपी की सुविधा मिलेगी। तब सर्जरी करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसमें मुंह के रास्ते सिलिकॉन बैलून को पेट में प्रवेश कराएंगे।
बीएचयू के गेस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. वीके दीक्षित ने कहा कि पेट में डाला गया गुब्बारा भोजन के क्षेत्र को कम कर देता है। इससे कम भोजन से पेट भर जाएगा। इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है। उन्होंने कहा कि इसके लिए हमारे पास एंडोस्कोपी मशीन है। जल्द बैलून भी आ जाएगा। इसके बाद इसे शुरू किया जाएगा।
छह से 12 महीने रखा जाता है बैलून मोटे लोगों के पेट में करीब छह से 12 महीने तक रखा जाता है। जब वजन कम हो जाता है तो डॉक्टर इस बैलून को पंचर कर बाहर निकालते हैं। कई बार इसे मल के रास्ते से भी बाहर निकाला जाता है। निजी अस्पताल में इसके लिए लोगों को करीब दो से तीन लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं। बीएचयू में इसके आधे खर्च में लोगों को ये सुविधा मिलेगी।
22.6 प्रतिशत महिलाएं हैं पीड़ित
नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे रिपोर्ट-5 के अनुसार बनारस में 22.6 प्रतिशत महिलाएं मोटापा की शिकार हैं। जबकि 2015-16 में ये संख्या 18.1 थी। चिंतनीय यह कि 67.1 प्रतिशत महिलाएं हाई रिस्क श्रेणी में हैं। यानी अगर वह अपना वजन कम नहीं करती हैं तो उन्हे गंभीर समस्या हो सकती है। वहीं पांच साल से कम उम्र के छोटे बच्चे मोटापा के शिकार हो रहे हैं। जिले में 3.1 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो मोटे हैं।
गुब्बारे में डालते हैं लिक्विड
पेट में जो गुब्बारा प्रवेश कराया जाता है वह 300 से 800 एमएल लिक्विड की क्षमता वाला होता है। गुब्बारे को पेट में डालने के बाद उसमें नीले रंग का तरल पदार्थ भर दिया जाता है ताकि पेट के अंदर अगर गुब्बारे से रिसाव हो तो उसे पहचाना जा सके। डॉक्टर समय-समय पर इसे चेक करते रहते हैं। जिससे अगर कहीं लीकेज हो तो तत्काल उसे बाहर निकाला जा सके।