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नया साल मनाने के लिए बनारस के गंगा घाट ही नहीं आसपास भी हैं कई प्राकृतिक सौंदर्य वाले स्थल, मिलेगा हिल स्टेशन का भी आनंद

अगर आप नया साल बनारस में मनाने जा रहे हैं तो यह खबर आपके लिए ही है। बनारस के गंगा घाट और घाट के उस पार स्थित रेती तो शानदार स्पॉट हैं ही, इसके अलावा भी कई स्थल ऐसे हैं जहां आप नया साल मना सकते हैं।

Yogesh Yadav लाइव हिन्दुस्तान, वाराणसीFri, 30 Dec 2022 04:02 PM
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अगर आप नया साल बनारस में मनाने जा रहे हैं तो यह खबर आपके लिए ही है। बनारस के गंगा घाट और घाट के उस पार स्थित रेती तो शानदार स्पॉट हैं ही लेकिन इसके अलावा भी कई स्थल ऐसे हैं जहां आप नया साल मना सकते हैं। इन स्थलों पर आपको हिल स्टेशन का भी आनंद मिलेगा। यह स्थल प्राकृतिक सौंदर्य को अपने में समेटे हुए बेहद आकर्षक हैं। हम बात कर रहे हैं बनारस से 30 से 50 किलोमीटर दूर स्थित राजदरी, देवदरी, लतीफशाह, मूसाखाड़, औरवाटांड़ आदि स्थलों की। यहां अपने साथ से आप एक से दो घंटे में पहुंच सकते हैं। कभी बनारस का ही हिस्सा रहे यह स्थल इस समय चंदौली जिले का अंग हो चुके हैं। 

चंदौली की इन हसीन वादियों में जरूर जाएं। यहां जलप्रपात (झरने) आपको मोह लेंगे। इन जलप्रपातों और पर्यटन स्थलों पर रहने और पूरा दिन बिताने के लिए लोगों का जमावड़ा लगा रहता है। यहां के प्राकृतिक सौदर्य को निहारने के लिए दूरदराज के सैलानी और विदेशी पर्यटक बड़ी तादाद में पहुंचते हैं।

नववर्ष के मौके पर सैलानियों की तादाद काफी बढ़ जाती है। सुरक्षा के बाबत पुलिस की चाक-चौबंद व्यवस्था रहती है। विंध्य पर्वत मालाओं में बसे ये पर्यटक स्थल सैलानियों को खूब लुभाते हैं। हरे-भरे जंगलों के बीच जलप्रपातों से गिरता पानी और उनसे उठती फुहारें अपनी नैसर्गिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है।

राजदरी और देवदरी जलप्रपात, चंद्रप्रभा डैम, मूसाखाड़ डैम, लतीफशाह डैम, नौगढ़ डैम, औरवाटांड़ भी सैलानियों को आकर्षित करते हैं। ठंड के मौसम में पहाड़ों में जमीं ओस की परत और धुंध के अलावा जलप्रपातों से गिर रहे पानी को देखने के लिए दूरदराज के सैलानियों का हुजूम उमड़ पड़ता है। नववर्ष का पहला दिन मनाने के लिए सैलानियों की भीड़ उमड़ पड़ती है। जानिए क्या क्या घूमने जरूर जाएं....

राजदरी देवदरी जल प्रपात

वाराणसी से करीब 50 किलोमीटर दूरी पर विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं के बीच में राजदारी देवदारी जलप्रपात है। दोनों जलप्रपातों में चंद्रप्रभा डैम से छोड़ा गया पानी जंगलों को चीरते हुए नीचे गिरता है। जो आकर्षण का केंद्र है। जंगलों के दो बड़े भू-भाग के बीच राजदरी और देवदरी जलप्रपात के पास बने सर्च टावरों से दोनों तरफ के घने जंगलों को देखा जा सकता है। इन जलप्रपातों को देखने से पूर्व पर्यटको को चंद्रप्रभा वन्य जीव विहार के प्रवेश द्वार से होकर गुजरना पड़ता है, जहां पर पर्यटको को सरकारी शुल्क देना पड़ता है।

औरवाटांड़ जलप्रपात

चंदौली मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर दूर नौगढ़ थाना क्षेत्र में यूपी और बिहार की सीमा पर विशाल औरवाटांड़ जलप्रपात है। जहां पहुंचने पर पर्यटक जलप्रपात का आनंद लेने के साथ ही बिहार की पहाड़ी में बसे गांवों को भी निहारते हैं। इसको निहारने के लिए समय-समय पर सैलानियों की भीड़ लगती है, नववर्ष के पहले दिन सैलानियों का सैलाब उमड़ पड़ता है।

लोगबाग अपने परिवार के साथ पूरे दिन आनंद उठाते हैं। वही नौगढ़ कस्बे के पूर्वी छोर पर स्थित कर्मनासा नदी के किनारे चंद्रकांता का किला अपने इतिहास की गवाही देता हुआ खड़ा है। चंद्रकांता किले के छत पर बने बारादरी से आसपास की पहाड़ियों और दूर तक फैले पानी को देखा जा सकता है। चंद्रकांता के किले पर चितवन विश्राम गृह भी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है।

लतीफशाह डैम

चंदौली जिला मुख्यालय से 36 किलोमीटर और वाराणसी से 30 किलोमीटर की दूरी पर चकिया में कौमी एकता के प्रतीक बाबा लतीफशाह की मजार है। उनके समीप ही लतीफशाह डैम है। नए साल और त्योहारों के अलावा प्रत्येक शुक्रवार को काफी संख्या में पर्यटक वहां पहुंचते हैं जहां बाबा की मजार पर चादरपोशी और दुआख्वानी करने के साथ ही पिकनिक का आनंद लेते हैं। यहां पर मुस्लिम बंधुओं के साथ ही हिन्दुओं की भी भीड़ बराबर बनी रहती है लोग एक साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण में बाबा से आशीर्वाद लेकर पिकनिक का आनंद उठाते हैं।

मूसाखाड़ डैम

जिला मुख्यालय से 46 किलोमीटर की दूरी पर वनगांवा क्षेत्र में स्थित विशालकाय मूसाखाड़ डैम अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है। डैम के संरक्षित क्षेत्र में फैला पानी समंदर की अनुभूति कराता है। इसके अलावा डैम के तीन तरफ स्थित विंध्य पर्वत की पहाड़ियां प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है।

घुरहूपुर बौद्ध विहार

चकिया तहसील मुख्यालय के पूर्वी छोर पर बिहार बॉर्डर के पास घुरहूपुर में राजदेवा पहाड़ी की गुफाओं में बौद्ध स्थल मौजूद है। गुफाओं में बने भगवान बुद्ध के भित्त चित्र ऐतिहासिक व पुरातत्विक प्रासंगिकताओं को संजोए है। पहाड़ी पर पाषाण काल की प्रतिमाएं और भित्त चित्र बौद्ध धर्मावलंबियों के तीर्थ स्थल के रूप में विकसित हो रहा है।

बौद्ध स्थल के उजागर होने के बाद वर्ष 2008 में श्रीलंका के अशोक वंश, यूरोप के भंते मैलीथनाइथ, म्यांमार के भंते बंधार, ताइवान के भंते छई छई ने यूरोप से साढ़े 4 फीट की ब्लैक स्टोन की बुद्ध की प्रतिमा को पूरे बौद्ध रीति रिवाज से पहाड़ी पर स्थापित कराया था।

जागेश्वर नाथ मंदिर

विंध्य पर्वत मालाओं के बीच में बसे हेतिमपुर गांव में स्थित चंद्रप्रभा नदी के किनारे महर्षि याज्ञवल्क्य की तपोभूमि में विराजमान स्वयंभू जागेश्वर नाथ के शिवलिंग की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां मांगी गई मुरादों के पूरे होने की दंतकथा प्रचलित है। जागेश्वर नाथ मंदिर में प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि और श्रावण मास के महीने में लगने वाले मेले में हजारों श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं।

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