DDU में VC से बदसलूकी, रजिस्ट्रार की पिटाई पर प्रशासन सख्त, आरोपी छात्र सस्पेंड; ABVP ने दी सफाई
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय प्रशासन ने शुक्रवार को हुए बवाल को लेकर सख्त रुख अख्तियार कर लिया है। DDU के मुताबिक अधिकारियों से मारपीट और जानलेवा हमले का आरोप लगाते हुए तहरीर दी है।
DDU News: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय प्रशासन ने शुक्रवार को हुए बवाल को लेकर सख्त रुख अख्तियार कर लिया है। डीडीयू के मुताबिक अधिकारियों से मारपीट और जानलेवा हमले का आरोप लगाते हुए पुलिस को तहरीर दी गई है। घटना में शामिल विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय से तत्काल प्रभाव से निष्कासित कर दिया गया है। बता दें कि शुक्रवार की शाम गोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज हो गई है। 1956 में अस्तित्व में आए गोरखपुर विश्वविद्यालय में पहली बार कुलपति ऐसी बदसलूकी हुई है कि बीते 67 साल की प्रतिष्ठा तार-तार हो गई। शिक्षा जगत के साथ ही अन्य क्षेत्रों में इसे लेकर चर्चा हो रही है। इस बीच अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने इस मामले में विज्ञप्ति जारी कर अपना पक्ष रखा है। परिषद की ओर से कहा गया है कि कुलसचिव पर हमला संगठन के किसी कार्यकर्ता या छात्र ने नहीं बल्कि अराजक तत्वों ने किया है।
डीडीयू प्रशासन द्वारा जारी विज्ञप्ति के मुताबिक शुक्रवार को सुबह करीब 11 बजे कुछ विद्यार्थियों ने प्रशासनिक भवन परिसर में हंगामा शुरू कर दिया। कुलपति, वित्त अधिकारी, कुलसचिव, नियंता आदि को उनके प्रकोष्ठ में ही बन्द कर दिया। उपद्रवी विद्यार्थियों को कुछ बाहरी तत्व सुनियोजित षड़यंत्र के तहत भड़का रहे थे। उपद्रवी तत्वों द्वारा विश्वविद्यालय के अधिकारियों के सरकारी कार्यों में जानबूझकर बाधा पहुंचाई गई। विवश होकर सुरक्षा के लिए पुलिस को बुलाना बड़ा। पुलिस की उपस्थिति में भी ये लोग उपद्रव करते रहे। किसी तरह से पुलिस के संरक्षण में कुलपति को बाहर निकाला गया। विवि के अन्य अधिकारियों ने किसी तरह जान बचाई। इसी बीच सुनियोजित षड़यंत्र के तहत कुलसचिव पर जानलेवा हमला किया। उनके सिर के पिछले भाग पर प्रहार किया गया, जिससे खून भी निकल आया। कुलसचिव की हाल ही में हृदय रोग की चिकित्सा हुई है, उन्हें स्टेंट भी पड़ा है। यह पूरी घटना, घटनास्थल के पास लगे सीसीटीवी कैमरे में भी कैद है।
पुलिस कार्रवाई न होने से मनोबल बढ़ा
विवि प्रशासन के मुताबिक 13 जुलाई को भी उपद्रवी तत्वों द्वारा इसी तरह की घटना की गई थी। उसकी सूचना पुलिस को दी गई थी। ऐसा लगता है कि उनके विरूद्ध कोई निरोधात्मक या अन्य कार्यवाही नहीं हुई जिसके कारण उनका मनोबल बढ़ गया।
घटना में कुछ ठेकेदार भी शामिल
विश्वविद्यालय प्रशासन ने कहा है कि इस मामले में कुछ ठेकेदार भी मिले हुए हैं, जिन्होंने इस पूरी घटना को वित्तपोषित किया। इन ठेकेदारों को विश्वविद्यालय से ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है और एफआईआर भी दर्ज कराई गई है। विश्वविद्यालय में इनका प्रवेश भी प्रतिबंधित है।
घटना में लिप्त शिक्षकों के खिलाफ भी कार्रवाई
घटना में कुछ शिक्षकों को भी संलिप्त पाया गया है। इन शिक्षकों के खिलाफ भी कार्रवाई की जा रही है। बिना आई-कार्ड के प्रशासनिक भवन तथा विश्वविद्यालय में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया है। नियंता मंडल सुनिश्चित करेगा कि कोई भी अवांछनीय तत्व विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश न कर सके।
अभाविप की सफाई
विद्यार्थी परिषद के मुताबिक चार दिन से विश्वविद्यालय में व्याप्त अनियमितताओं और परिषद के सदस्यों के निलंबन को लेकर शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन किया जा रहा था। इसी क्रम में शुक्रवार को ज्ञापन देने कुलपति कार्यालय गए थे। कुलपति ने बात करने से इनकार कर दिया। शाम करीब साढ़े तीन बजे कुलपति ने भारी पुलिस बल बुला लिया। छात्रों से बिना बात किए कुलपति जाने लगे। छात्रों ने कुलपति से इस दौरान वार्ता करने की कोशिश की तो वहां मौजूद पुलिस विद्यार्थी परिषद कार्यकर्ताओं पर लाठी बरसाने लगी।
नीचे उतर रहे कार्यकर्ताओं पर सीढ़ी पर भी लाठी चार्ज किया गया। छात्राओं से अभद्रता का आरोप विद्यार्थी परिषद ने पुलिस पर धरना-प्रदर्शन में शामिल छात्राओं से भी अभद्रता करने के गंभीर आरोप लगाए हैं। आरोप है कि उस दौरान छात्राओं से भी धक्का-मुक्की की गई। लाठी चार्ज में दर्जनों छात्र घायल हुए हैं। परिषद के सदस्य दीपक पाण्डेय को गंभीर चोट आई है। अर्पित कसौधन की भी पुलिस कस्टडी में तबीयत बिगड़ गई, बाद में जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
तो उग्र आंदोलन को बाध्य होंगे
विद्यार्थी परिषद के गोरक्ष प्रांत संगठन मंत्री हरिदेव ने कहा कि परिषद छात्रों के साथ हुई ऐसी वीभत्स घटना की निंदा करती है। यदि कार्यकर्ताओं को छोड़ा नहीं जाता है तो संगठन उग्र आंदोलन को बाध्य होगा। उन्होंने कुलपति पर लाठियां चलवाने का आरोप लगाया है।
67 साल में पहली बार कुलपति से बदसलूकी
देश की आजादी के बाद उत्तर प्रदेश का पहला राज्य विश्वविद्यालय बना डीडीयू हमेशा से पूर्वांचल में उच्च शिक्षा का केन्द्र रहा। यहां से पढ़ाई कर निकले छात्रों ने देश-दुनिया में विविध क्षेत्रों में इस विश्वविद्यालय का नाम रोशन किया। छात्रों के मुद्दों को लेकर छात्रसंघों और विश्वविद्यालय प्रशासन में नोकझोंक के तमाम किस्से हैं। छात्रों के उग्र होने पर लाठीचार्ज की घटनाएं भी बहुत बार हुईं, लेकिन विश्वविद्यालय के प्रथम नागरिक कुलपति से छात्रों की इस कदर नोकझोंक पहली बार हुई है।
डीडीयू के पूर्व शिक्षक संघ अध्यक्ष प्रो. चितरंजन मिश्र बताते हैं कि, ‘1976 से विश्वविद्यालय से छात्र और फिर शिक्षक के रूप में जुड़ा हूं। इस तरह का मामला कभी नहीं हुआ। वर्ष 2002 से 2004 तक कुलपति रहे प्रो. रेवती रमण पाण्डेय के पास जब भी छात्र अपनी समस्याएं लेकर पहुंचते थे तो वे पहले सभी को पानी पिलवाते थे। उसके बाद उनकी समस्याएं सुनते थे। इतनी देर में चीजें नॉर्मल हो जाया करती थीं।’ प्रो. मिश्र ने कहा कि छात्रसंघों, छात्र संगठनों से हर दौर में कुलपति से बहस होती रही है। ऐसा कोई कुलपति नहीं रहा, जिसका घेराव न हुआ हो। लेकिन तब बातें भी लोकतांत्रिक वातावरण में हो जाती थीं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के ऐसे हालात किन परिस्थितियों में हुए, इन हालात के लिए कौन जिम्मेदार हैं, इसकी उच्च स्तरीय समिति से जांच कराई जानी चाहिए।
कुलपति बोले- क्लास करके आओ, यहीं बैठा मिलूंगा
डीडीयू के पूर्व शिक्षक संघ अध्यक्ष प्रो. चितरंजन मिश्र बताते हैं कि, ‘वर्ष 1977 में प्रो. देवेन्द्र शर्मा कुलपति थे। उस समय आपातकाल खत्म हुआ था। छात्रों ने किसी मामले को लेकर कुलपति का घेराव किया था। उस समय छात्रों के क्लास का समय था। कुलपति ने तब कहा था कि जाओ क्लास करके आओ, मैं यहीं बैठा रहूंगा। दोबारा आकर मेरा घेराव करना। उनकी बात सुनकर छात्र क्लास करने चले गए। छात्र वापस आए और कुलपति को बैठा देखकर और उनके धैर्य को देखकर अपनी बात रखी और वापस चले गए।’