मुस्लिम वोट बैंक साधने के लिए मायावती का बड़ा दांव, बसपा के लिए कितने मुफीद होंगे इमरान मसूद?
बसपा सुप्रीमो मायावती मुस्लिम वोट बैंक साधने के लिए बड़ा दांव खेला है। हालांकि उनका यह दांव मुस्लिम वोट बैंक में कितनी सेंध लगा पाएगा, यह अभी कहना कठिन है।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने बुधवार को मुस्लिम वोट बैंक का साथ पाने के लिए इमरान मसूद के सहारे बड़ा दांव खेला है। उनकी नजर इस वोट पर काफी समय से है। विधानसभा चुनाव में इस वोटबैंक के एकतरफा सपा में जाने के बाद वह कई मौकों पर मायावती लगातार कह रही थीं कि मुस्लिमों का भला बसपा में ही है। बसपा ही एकमात्र पार्टी है जो भाजपा का विकल्प बन सकती है। हालांकि उनका यह दांव समाजवादी पार्टी के पक्ष में बीते विधानसभा चुनाव के दौरान बड़ी सहानुभूति रखने वाले मुस्लिम वोट बैंक में कितनी सेंध लगा पाएगा, यह अभी कहना कठिन है।
पश्चिमी यूपी के 26% वोट पर नजर
पश्चिमी यूपी में वर्ष 2011 की जगणना के मुताबिक कुल आबादी 71217132 है। इसमें 72.29 फीसदी हिंदू और 26.21 फीसदी मुस्लिम हैं। पश्चिमी यूपी में मुस्लिम बिरादारी के वोट बैंक को निर्णायक माना जाता रहा है। बसपा ने इसीलिए वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में 88 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन एक सीट पर भी सफलता नहीं मिली। मायावती तब से मुस्लिमों को हर मौके पर हकीकत बताकर पक्ष में करने की कोशिश में थीं। इमरान मसूद के जरिये उन्होंने मुस्लिमों को संदेश देने की कोशिश की है।
इमरान माने जा रहे मुफीद
बसपा सुप्रीमो को काफी समय से पश्चिमी यूपी में किसी बड़े मुस्लिम चेहरे की तलाश थी। इसके लिए इमरान मुफीद माने जा रहे हैं। पश्चिमी यूपी में उनका अपना जनाधार है। माना जा रहा है कि बसपा लोकसभा चुनाव में उन्हें सहारनपुर सीट से उतारेगी। इमरान वर्ष 2007 में मुजफ्फराबाद विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ विधायक बने थे। वर्ष 2012 में सपा के टिकट पर नकुड़ विधानसभा से लड़े और हार गए। वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव सहारनपुर सीट पर सपा से लड़ना चाहते थे, लेकिन टिकट नहीं मिलने पर वह कांग्रेस के टिकट पर लड़े और हार गए। इसके बाद 2017 में नकुड़ विधानसभा से फिर चुनाव लड़े और हारे। वर्ष 2022 के चुनाव में वह कांग्रेस छोड़ सपा में गए, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिलने के कारण उन्हें सपा मुखिया अखिलेश यादव से नाराज़ माना जा रहा था।
सिर पर हाथ रख दिया आशीर्वाद
बसपा सुप्रीमो ने इमरान मसूद को पार्टी में शामिल कराते वक्त सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। अमूमन मायावती बहुत कम लोगों को सिर पर हाथ रखकर आर्शीवाद देती हैं। इसके जरिये वह मुस्लिम समाज को साफ संदेश देना चाहती हैं कि उनके लिए मुस्लिम समाज की क्या अहमियत है।
नसीमुद्दीन के बाद बड़ा चेहरा
बसपा में मुस्लिम नेताओं में नसीमुद्दीन सिद्दीकी बड़ा चेहरा हुआ करते थे, लेकिन उनके कांग्रेस में जाने के बाद कोई भी बड़ा चेहरा नहीं था। हालांकि मायावती ने कई नेताओं को आगे किया, लेकिन बात नहीं बन पाई। इमरान मसूद के बसपा में आने से वह इन्हें बड़े चेहरे के रूप में प्रस्तुत करेंगी, जिससे आगामी लोकसभा चुनाव में इसका फायदा लिया जा सके।
बसपा ही एक मात्र विकल्प
इमरान मसूद ने कहा है कि सपा में शामिल होने का मकसद पूरा नहीं हुआ। विधानसभा चुनाव में जो प्रयोग करने के लिए हम कांग्रेस छोड़ कर सपा में शामिल हुए थे, वो पूरी तरह से विफल रहा। बसपा के अलावा कोई विकल्प नहीं दिखाई देता है। बसपा के साथ मिल कर हम भाजपा के खिलाफ मजबूत विकल्प बनेंगे। विधानसभा चुनाव में हमारे समाज ने सपा को एकतरफ वोट किया। ऐसे में हमें ऐसी पार्टी चाहिए जहां हम साथ मिलकर ताकत बनने का काम करें। बसपा के अलावा कोई दूसरा विकल्प नजर नहीं आ रहा है।
बसपा में मुस्लिम गणित
वर्ष 2007 में बसपा विधायक 206
- इसमेंÈ 29 मुस्लिम विधायक रहे
- वर्ष 2012 में सीटें जीती 80
- मुस्लिम विधायक रहे 12
- वर्ष 2017 में सीटें जीती 19
- मुस्लिम विधायक रहे 5
- वर्ष 2019 में 10 सांसद में तीन मुस्लिम