लखनऊ पीजीआई: हार्ट के मरीज को डॉक्टर ने रेफर कर दिया गैस्ट्रो विभाग
लखनऊ पीजीआई में हार्ट के मरीज को डॉक्टर ने गैस्ट्रो विभाग रेफर कर दिया। रेफरल पर्चे पर स्पष्ट बीमारी व विभाग का नाम न लिखने से मरीजों को सही इलाज नहीं मिल पा रहा है।
लखनऊ पीजीआई में रेफरल पर्चे पर स्पष्ट बीमारी व विभाग का नाम न लिखने से मरीजों को सही और त्वरित इलाज नहीं मिल पा रहा है। कार्डियोलॉजी विभाग के मरीज गैस्ट्रो विभाग में भेज रहे हैं। ओपीडी में इन मरीजों को देखने में डॉक्टरों का समय खराब हो रहा है। डॉक्टर इनकी स्क्रीनिंग में बीमारी स्पष्ट होने पर डॉक्टर इन्हें दूसरे विभाग भेज रहे हैं। पीजीआई की ओपीडी में रोजाना करीब 100 मरीज गलत रेफरल पर्चे के साथ पहुंच रहे हैं। इनमें 80 फीसदी मरीज सीएचसी और जिला अस्पतालों के होते है।
विभागों की भागदौड़ नहीं मिल पाता इलाज
रेफरल पर सही बीमारी व विभाग का नाम न होने से मरीज एक से दूसरे विभाग के चक्कर लगाते रहते हैं। कई बार स्क्रीनिंग में बीमारी पकड़ में नहीं आने पर जांच तक करानी पड़ती हैं। इसी में दो से तीन दिन निकल जाते हैं। ऐसे में कई गंभीर मरीजों की हालत बिगड़ जाती है। रेफरल पर सही जानकारी न होने से रोजाना मरीज और तीमारदारों की कर्मचारियों से कहासुनी आम बात हो गई।
डॉक्टर समान लक्षण को भांप नहीं पाते
कार्डियोलॉजी विभाग के डॉ. नवीन गर्ग बताते हैं कि कई बार लक्षण एक जैसे लगने पर डॉक्टर रेफरल पर्चे पर गलत विभाग लिख देते हैं। पेट व सीने में जलन और दर्द एवं बेचैनी के लक्षण लगने पर अमूमन डॉक्टर गैस की समस्या समझकर पेट रोग के डॉक्टर के यहां भेज देते हैं। जबकि यह लक्षण दिल के मरीजों के होते हैं। ओपीडी में रोजाना करीब पांच मरीज आते हैं।
उदाहरण: एक
उन्नाव निवासी रजनीश को पेट और सीने के पास दर्द और जलन की दिक्कत थी। जिला अस्पताल के डॉक्टर ने मरीज के पर्च पर पीजीआई के गैस्ट्रो विभाग में रेफर लिखकर भेज दिया। मरीज को पेट के डॉक्टर ने देखा और कुछ जांच करायी। जिसमें मरीज को पेट की कोई समस्या ही नहीं थी। मरीज का ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ था। डॉक्टर ने मरीज को कार्डियोलॉजी विभाग भेजा। वहां पर इलाज शुरू हुआ।
उदाहरण:दो
बाराबंकी के अखिलेश के पेशाब में जलन और प्रोटीन आ रही थी। मरीज ने निजी डॉक्टर के यहां एक हफ्ते तक इलाज कराया। ठीक न होने पर डॉक्टर ने पीजीआई भेज दिया। पर्चे पर विभाग स्पष्ट न होने पर कर्मचारियों ने यूरोलॉजी की फाइल बनाकर भेज दिया। यहां डॉक्टरों ने देखा तो उसे गुर्दे की समस्या थी। फिर नेफ्रोलॉजी विभाग रेफर किया।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
पीजीआई मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. गौरव अग्रवाल ने बताया कि कई मरीजों के रेफरल पर विभाग का नाम नहीं लिखा होता है। रजिस्ट्रेशन काउंटर के कर्मियों को काफी समस्या होती है। कई बार मरीजों के लक्षण व बताने के आधार पर पंजीकरण करना पड़ता है। पंजीकरण के लिए मना करने पर कई मरीज और तीमारदार उलझ जाते हैं। हालांकि डॉक्टरों को रेफरल बनाते सम बीमारी व विभाग का नाम स्पष्ट लिखना चाहिए। जिससे मरीजों को यहां आने पर तकलीफ न हो।