नगर निगम की तरह पुलिस ने भी मांगा ये अधिकार, यूपी डीजीपी शासन को भेजेंगे लेटर
यातायात में सुधार के लिए पुलिस ने एक और कदम आगे बढ़ाया है। पुलिस ने कहा है कि उसे नगर निगम की तरह अतिक्रमण हटाने, अवैध स्ट्रीट वेंडर का सामान जब्त करने और वेंडिंग जोन बनाने का अधिकार दिया जाना चाहिये।
शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने के लिये पुलिस ने एक और कदम आगे बढ़ाया है। अब पुलिस ने कहा है कि उसे नगर निगम की तरह अतिक्रमण हटाने, अवैध स्ट्रीट वेंडर का सामान जब्त करने और वेंडिंग जोन बनाने का अधिकार दिया जाना चाहिये। दोबारा अतिक्रमण हटाने पर थानेदार को जिम्मेदार बताया जाता है जबकि स्ट्रीट वेंडोर्स को हटाने एवं ठेले खुमचे ज़ब्त करने के अधिकार पुलिस के पास नहीं है। अब नगर निगम की पथ विक्रेता अधिनियम की धारा 20/21 में संशोधन कर ये अधिकार दिये जाने की मांग पुलिस ने की है। जेसीपी कानून-व्यवस्था उपेन्द्र कुमार अग्रवाल ने पुलिस आयुक्त एसबी शिरडकर को पत्र लिखा है। ये पत्र डीजीपी के माध्यम से शासन को भेजा जायेगा।
सूत्रों की माने तो माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद इस पर अंतिम निर्णय लिया जा सकता है। क्योंकि पुलिस से ही जन सामान्य की अपेक्षा होती हैं कि अवैध वेंडर्स को हटाये ।जेसीपी के पत्र में बिन्दुवार समीक्षा की गई है कि पुलिस को इन अधिकारियों की जरूरत क्यों है। पत्र में लिखा है कि व्यापार मण्डलों और नागरिकों द्वारा कई बार अतिक्रमण का मुद्दा उठाया जाता रहा है। ज्यादा अतिक्रमण पटरी दुकानदारों व स्ट्रीट वेंडरों का है। नगर निगम अतिक्रमण हटाता है, बाद में ये सब दोबारा काबिज हो जाते हैं। ऐसे में सब पुलिस से ही अतिक्रमण हटा कर कार्रवाई को कहते हैं जबकि पुलिस के पास यह अधिकार है ही नहीं। कई शासनादेश होते हैं कि अतिक्रमण दोबारा होने पर थाना प्रभारी जिम्मेदार होंगे। जबकि नगर निगम पथ विक्रेता अधिनियम (जीविका संरक्षण-पथ विकय विनियमन) अधिनियम 2014 में पुलिस को ऐसा कोई अधिकार ही नहीं दिया गया है। पुलिस केवल डंडे के ज़ोर पे इन्हें हटा सकती हैं या IPC में FIR दर्ज कर इन्हें जेल भेज कर हटाये ।
पुलिस बल प्रयोग करे तो छवि खराब होती एवं समाज के ग़रीब तबके पर FIR करना ज़्यादती होगी । जेसीपी के पत्र में लिखा है कि कुछ दिन पहले केजीएमसी के बाहर फुटपाथ पर पटरी दुकानदारों के अतिक्रमण को हटवाया गया था। बाद में सब फिर वहां आ गये। चौकी प्रभारी भी असहाय दिखा। पुलिस को अतिक्रमण हटाने का अधिकार नहीं है। ऐसे में वह बल प्रयोग करे तो छवि खराब होती है। ज्यादा सख्ती करते हुए मुकदमा कर दे तो ज्यादती का आरोप पुलिस पर लगता है। धारा 34 पुलिस एक्ट निस्प्रभावी हैं ।पुनः जब विशेष अधिनियम इसके लिये है तो आईपीसी में कार्यवाही नहीं की जा सकती है। यह नगर निगम का काम है कि पटरी दुकानदारों को को लाइसेन्स दे और बिना लाइसेन्स के व्यवसाय करने वाले इन दुकानदारों का सामान जब्त कर ले। यह अधिकारी अभी पुलिस को नहीं है।
पुलिस पटरी दुकानदारों को न हटा सकती, न सामान जब्त कर सकती
जेसीपी ने लिखा है कि पथ विक्रेता अधिनियम-2014 और उत्तर प्रदेश पथ विक्रेता नियमावली 2017 के तहत लाइसेन्स देने व वेंडिंग जोन बनाने का अधिकार निगम को दिया गया है। इसके उल्लंघन पर नियमावली की धारा 20 मे स्पष्ट लिखा है की निगम व नगरपालिका किसी पथ विक्रेता को बेदखल कर सकती है। इस प्रकार धारा-20 और 21 से स्पष्ट है कि पटरी दुकानदारों को पुलिस न हटा सकती है और न ही उनके सामान को जब्त कर सकती है। ऐसी परिस्थिति में पुलिस ऐसे अतिक्रमणों को न लगने दे, यह उम्मीद करना गलत होगा।
सिर्फ 121 जोन, मात्र 11000 वेंडरों को लाइसेंस
नगर निगम को वेंडिंग जोन बनाने का अधिकार है पर वेंडिंग जोन बनाने को प्राथमिकता नहीं दी जा रही है। जेसीपी ने निगम से इस बारे में ब्योरा मांगा तो सामने आया कि शहर में सिर्फ 121 वेंडिंग जोन है और इसमें 10 हजार 370 वेंडरों को ही लाइसेंस दिया गया है। जबकि लखनऊ में डेढ़ लाख से अधिक स्ट्रीट वेंडर है। जेसीपी ने पत्र में लिखा है कि स्ट्रीट वेंडरों को नियंत्रित व नियमित नहीं किया गया तो आने वाले समय में ट्रैफिक की समस्या बहुत गम्भीर होगी। साथ ही लखनऊ की सुरक्षा व्यस्था पर भी ख़तरा उत्पन्न होगा क्योंकि इनका कोई रजिस्ट्रेशन कही नहीं हो रहा ।इस आधार पर ही कहा गया है कि निगम के अधिनियम में संशोधन कर अतिक्रमण हटाने व कार्रवाई करने का अधिकार पुलिस को भी दिया जाये। ऐसा होने से यह समस्या काफी हद तक खत्म हो सकती है।पुलिस पे ज़िम्मेदारी देने के पूर्व अधिकार भी दिये जाने चाहिये