यूपी मॉडल पर त्रिपुरा में कानून व्यवस्था लागू, गुंडाराज खत्म कर पनपने से ऐसे रोका
त्रिपुरा सीएम ने कहा कि यूपी मॉडल पर त्रिपुरा में कानून व्यवस्था लागू की गई। गुंडाराज को खत्म कर उसे पनपने से रोका गया। लखनऊ में त्रिपुरा के सीएम डॉ. माणिक साहा ने कम्युनिस्ट दलों पर जमकर निशाना साधा।
त्रिपुरा में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार के कार्यकाल में अराजकता थी। गुंडाराज चरम पर था। राज्य में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं थी। वर्ष 2022 में जब मेरे हाथों में त्रिपुरा की कमान आई। सत्ता संभालने के बाद मैंने यूपी आकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भेंट की। इसके बाद त्रिपुरा में गुंडागर्दी के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया। अब राज्य में शांति है। यह बातें त्रिपुरा के मुख्यमंत्री डॉ. माणिक साहा ने कहीं।
वह शुक्रवार को केजीएमयू के अन्तरराष्ट्रीय एल्युमिनाई समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। अटल बिहारी वाजपेई सांइटिफिक कन्वेंशन सेंटर में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि राज्य में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए लगातार अभियान चलाया जा रहा है। यूपी मॉडल पर त्रिपुरा में कानून व्यवस्था लागू की गई है। गुंडे माफिया का सफाया हो चुका है। यह अभियान आगे भी जारी रहेगा। प्रदेश में फैली अराजकता के खिलाफ अभियान शुरू किया तो लोग बोलने लगे कि मुझ पर योगीजी का असर हो गया है।
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कम्युनिस्टों की नजर में पार्टी का सदस्य ही नेक इंसान
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री डॉ. माणिक साहा ने कहा कि कम्युनिस्ट सरकार की नजर में उनकी पार्टी का सदस्य ही नेक इंसान है। मैंने हमेशा अपने राज्य में डॉक्टरों और जनता के हितों के लिए लड़ाई लड़ी। फिर भी कम्युनिस्ट सरकार ने मुझे कभी अच्छा इंसान नहीं समझा। उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो मुझे नई रोशनी नजर आई। मैंने भाजपा का दामन थामा। भाजपा संग मिलकर कम्युनिस्ट पार्टी के सफाया का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश तरक्की कर रहा है। दुनिया भारत का लोहा मान रही है। प्रधानमंत्री त्रिपुरा को अष्टलक्ष्मी कहते हैं। उन्होंने हीरा मॉडल के तहत त्रिपुरा में एक्सप्रेस वे और रेलवे का जाल फैलाना शुरू कर दिया।
हड़ताल के बाद घटा दिया मेरा पद
डॉ. माणिक साहा ने कहा कि डॉक्टरों के हितों को लेकर हड़ताल की। इमरजेंसी सेवाओं को नहीं छेड़ा था। हड़ताल के बाद मुझे डिमोशन दिया गया। एसोसिएट से पदावनत करके असिस्टेंट प्रोफेसर बना दिया गया। प्रोफेसर के लिए योग्यता थी। फिर भी प्रोन्नति नहीं दी गई। मजबूरन में हमे कोर्ट की शरण में जाना पड़ा। उन्होंने कहा कि वर्ष 1971 में कोलकाता से बीएससी की। इसके बाद केजीएमयू से बीडीएस की पढ़ाई पूरी की। फिर त्रिपुरा जाकर प्राइवेट प्रैक्टिस शुरू की। गरीब मरीजों की सेवा के लिए सरकारी नौकरी के प्रयास किए। इसके लिए संघर्ष भी किया।