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मजार नहीं ये है महाभारत काल का लाक्षागृह,  53 साल चला मुकदमा;  5 हजार तारीखों के बाद आया फैसला 

बागपत के बरनावा स्थित महाभारतकालीन लाक्षागृह पर चल रहे विवाद में 53 साल बाद सोमवार को हिंदुओं के पक्ष में फैसला आया। सुनवाई के बाद न्यायाधीश ने मुस्लिम पक्ष के उस दावे को खारिज कर दिया।

Ajay Singh कपिल त्यागी, बागपतTue, 6 Feb 2024 01:59 PM
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यूपी के बागपत के बरनावा स्थित महाभारतकालीन लाक्षागृह पर चल रहे विवाद में 53 वर्ष बाद सोमवार को हिंदुओं के पक्ष में फैसला आया। सुनवाई के बाद न्यायाधीश ने मुस्लिम पक्ष के उस दावे को खारिज कर दिया, जिसमें लाक्षागृह की 100 बीघा जमीन को शेख बदरुद्दीन की मजार और कब्रिस्तान बताया था। मुस्लिम पक्ष ने हाईकोर्ट में अपील की बात कही है। बरनावा के लाक्षागृह-कब्रिस्तान का विवाद 1970 में कोर्ट में पहुंच गया था। मेरठ के सरधना के न्यायालय में वाद दायर होने से इसकी शुरुआत हुई और वहां से केस बागपत की कोर्ट में ट्रांसफर होकर पांच दशक से भी अधिक समय तक यह मुकदमा चलता रहा। खास बात यह रही कि 53 वर्षों तक चली सुनवाई के दौरान पांच हजार से अधिक तारीखें लगीं। जिसके बाद न्यायाधीश ने मुस्लिम पक्ष के दावे को खारिज कर दिया। गत वर्ष अगस्त माह से तो मुकदमे में लगातार तारीख लग रही थी।

वर्ष 1970 में बरनावा गांव के रहने वाले मुकीम खान ने लाक्षागृह को शेख बदरुद्दीन की मजार और बड़ा कब्रिस्तान होने का दावा करते हुए मेरठ न्यायालय में वाद दायर किया था। इसमें उन्होंने हिन्दू पक्ष पर जबरन लाक्षागृह पर कब्जा करने का भी आरोप लगाया था। 31 मार्च 1970 में वाद दायर होने के बाद 1 अप्रैल 1970 को मुकदमे में पहली सुनवाई हुई। जिसमें रिकॉर्ड प्रस्तुत किया गया। इसके बाद लगातार तारीख पर तारीख लगती रही। वर्ष 1997 में मुकदमा मेरठ के न्यायालय से बागपत न्यायालय ट्रांसफर हो गया। जिसके बाद मुस्लिम पक्ष की ओर से एडवोकेट शाहिद अली और हिन्दू पक्ष की ओर से एडवोकेट रणबीर सिंह तोमर ने मुकदमे की पैरवी शुरू की। एडवोकेट रणबीर सिंह तोमर ने बताया कि 53 साल तक चले इस मुकदमे में पांच हजार से अधिक तारीखें लगी। बागपत न्यायालय में ही करीब 2 हजार तारीख लगीं। इन तारीखों के दौरान वादी और प्रतिवादी पक्ष के 10 से अधिक पैरोकारों की मौत भी हो गई। वहीं, अगस्त 2023 के बाद से तो मुकदमे में लगातार तारीख पर तारीख लग रही थी। उन्होंने बताया कि 5 हजार से अधिक तारीख लगने के बाद सोमवार को न्यायाधीश ने मुकदमे का फैसला सुनाया।

तीन जिलों के लोग बने मुकदमे में गवाह
बरनावा के लाक्षागृह को लेकर न्यायालय में दर्ज हुए वाद के बाद वादी और प्रतिवादी पक्ष के अधिवक्ताओं ने विभिन्न साक्ष्य प्रस्तुत किए। रिकार्ड जुटाकर न्यायालय में प्रस्तुत किया। इतना ही नहीं बागपत के साथ ही मेरठ और मुजफ्फरनगर के लोग भी मुकदमे में गवाह बने।

बोले हिन्दू पक्ष के पैरोकार
लाक्षागृह हिन्दू समाज की आस्था से जुड़ा धार्मिक स्थल है। महाभारत काल से लाक्षागृह का नाता है। फैसला हिन्दू समाज की बड़ी जीत है।
विजयपाल कश्यप, पैरोकार हिन्दू पक्ष

बोले मुस्लिम पक्ष के पैरोकार
53 वर्षों के बाद कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उससे हम संतुष्ट नहीं हैं। मुस्लिम पक्ष के पास सारे सबूत मौजूद हैं। जल्द ही इस फैसले के खिलाफ अपील की जायेगी।
इरशाद उर्फ मुन्ना, कार्यवाहक पैरोकार मुस्लिम पक्ष

मुकदमे की प्रमुख तारीखें
1970 को पहली बार मेरठ की सिविल कोर्ट में किया गया वाद दायर
1971 में हिन्दू पक्ष को नोटिस जारी होने के बाद साक्ष्य जमा कराने की प्रक्रिया हुई शुरू
1972 दोनों पक्षों ने अपने-अपने मालिकाना हक को लेकर दस्तावजे जमा कराने शुरू किए
1976 कोर्ट में दोनों पक्षों की गवाही का सिलसिला हुआ शुरू
1981 कोर्ट में ऐतिहासिक दस्तावेज और नक्शे आदि जमा कराये गए 
1997 में मेरठ की अदालत से बागपत कोर्ट में मुकदमा ट्रांसफर
2003 में दोनों पक्षों के गवाहों की गवाही शुरू हुई 
2015 में गवाही और साक्ष्य जमा कराने के बाद हुई दोनों पक्षों की दलीलें शुरू
2023 में अंतिम सुनवाई के बाद फैंसले की तारखें लगनी शुरू हुईं
2024 में 53 साल तक सली लम्बी सुनवाई के बाद कोर्ट ने सुनाया फैसला

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