कुंभ: डॉक्टरी और इंजीनियरिंग से भी कठिन है नागा की 'डिग्री'
गंगा की रेती पर निर्वस्त्र अपनी धुन में मगन नागा साधु को देखना कौतूहल का विषय तो हो सकता है लेकिन नागा संन्यासी बनना कितनी कठिन तपस्या है, इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं। नागा बनने की तपस्या डॉक्टरी और...
गंगा की रेती पर निर्वस्त्र अपनी धुन में मगन नागा साधु को देखना कौतूहल का विषय तो हो सकता है लेकिन नागा संन्यासी बनना कितनी कठिन तपस्या है, इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं। नागा बनने की तपस्या डॉक्टरी और इंजीनियरिंग की डिग्री पाने से भी कठिन होती है। कभी-कभी एक त्यागी को नागा का दर्जा पाने के लिए 12 साल तक तपस्या करनी पड़ती है।
एक लाख से अधिक नागाओं वाला जूना अखाड़ा तप पूरा होने के बाद अपने नागा साधुओं को एक अतिगोपनीय प्रमाण पत्र प्रदान करता है। यह प्रमाण पत्र प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में कुम्भ के दौरान किसी एक शाही स्नान वाले दिन आयोजित दीक्षांत समारोह में प्रदान किए जाते हैं। नागा साधुओं को ये प्रमाण पत्र अखाड़े के कारोबारी जारी करते हैं।
गाजीपुर: नागा बाबा का दर्शन कर भक्त हुए निहाल
प्रमाण पत्र पर नागा साधु के गुरु की मोहर लगी होती है। खास बात यह की कोई भी बाहरी यह प्रमाण पत्र नहीं देख सकता। जूना अखाड़ा के नागाओं के लिए यह प्रमाण पत्र उनकी पहचान है और इसके बिना अखाड़े में वे प्रवेश तक नहीं कर सकते। जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर पंचानंद गिरि के अनुसार प्रमाणपत्र पर संस्कृत में शपथ लिखी होती है कि नागा अपना जीवन धर्म प्रचार के लिए समर्पित करेंगे और दान में मिले भोजन पर आश्रित रहेंगे। प्रमाणपत्र पर नागा का नाम, उम्र, लिंग, पता और गुरु का नाम अंकित होता है।
चाकुलिया के नागा बाबा मंदिर परिसर में चला स्वच्छता अभियान
नागा से पहले बनते हैं अवधूत
सबसे पहले किसी त्यागी को अपने गुरु की नि:स्वार्थ सेवा के जरिए महापुरुष का दर्जा प्राप्त करना होता है। महापुरुष को बाद में प्रोन्नति देकर अवधूत का पद दिया जाता है। ये अवधूत ही नागा का दर्जा पाने के योग्य होते हैं। नागा का दर्जा पाने के लिए कभी-कभी 12 साल से भी अधिक का समय लग जाता है। इसके बाद नागा साधु दिगम्बर के पद पर प्रोन्नत होते हैं। दिगम्बर ही बाद में अखाड़े के अहम निर्णय लेने वाले कुछ विशिष्ट लोगों में शामिल किए जाते हैं। निरंजनी अखाड़े के अध्यक्ष महंत रविन्द्र पुरी ने बताया कि जरूरी नहीं की सभी दिगम्बर अखाड़े के निर्णय लेने के योग्य बनें। इसके लिए संत को संसारिक ज्ञान भी होना जरूरी है।