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Navratri 2023: जानिए क्‍यों यूपी के इस मंदिर में देवी को अपना रक्‍त चढ़ाते हैं क्षत्रिय, नवजात से बुजुर्ग तक निभाते हैं परंपरा 

Navratri 2023: गोरखपुर के इस मंदिर में देवी को हजारों श्रीनेत वंशी क्षत्रिय अपना रक्‍त चढ़ाते हैं। 15 दिन के नवजात से लेकर 100 साल के बुजुर्ग तक हर कोई इस परंपरा का निर्वहन करते नज़र आता है।

Ajay Singh संजीव चंद, गोरखपुरMon, 23 Oct 2023 12:20 AM
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Navratri 2023: यूपी के गोरखपुर के एक मंदिर में नवरात्र पर श्रीनेत वंशी क्षत्रिय आज भी एक ऐसी परंपरा का पालन करते हैं जिसे देखकर लोग हैरान रह जाते हैं। यहां हर साल नवमी पर इलाके के हजारों क्षत्रिय दुर्गा मंदिर में अपने शरीर का रक्‍त मां को चढ़ाते हैं। 15 दिन के नवजात से लेकर 100 साल के बुजुर्ग तक हर कोई इस परंपरा का निर्वहन करते नज़र आता है। इसके तहत शरीर के पांच जगहों से रक्‍त निकालकर मां को चढ़ाया जाता है। 

रक्‍त निकालने के लिए शरीर के पांच जगहों पर हल्‍का सा कट लगाया जाता है। यह सब कुछ बड़ी तेजी से होता है। कट की जगह से रक्‍त निकलते ही उसे बेलपत्र के ऊपर लगाकर मां को चढ़ाया जाता है और फिर घाव पर भभूत लगा दिया जाता है। वैसे तो नवरात्र पर मां दुर्गा की आराधना और प्रमुख मंदिरों की महत्ता की ढेरों कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं लेकिन गोरखपुर के दक्षिणांचल में स्थित बांसगांव का ये दुर्गा मंदिर अलग ढंग की इस परंपरा के लिए मशहूर है। यहां नवमी के दिन अपने रक्‍त की बलि देने का एक जुनून सा दिखता है। गरीबी-अमीरी, पढ़ाई-लिखाई हर तरह के भेद मिटाकर लोग यहां रक्‍त चढ़ाने के लिए सपरिवार पहुंचते हैं। 

करीब 50 हजार के करीब आबादी वाला बांसगांव एक क्षत्रिय बाहुल्य इलाका है। लगभग 300 वर्ष पूर्व से ही नवरात्र के अंतिम दिन मां दुर्गा को प्रसन्न करने और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए लोग पहले भेड़-बकरे की बलि देते थे। आलम यह होता था कि नवमी के दिन उस स्थान पर खून ही खून पसरा होता था और जीव हत्या भी बहुत ज्यादा होती थी। इस बीच एक संन्यासी से मशविरा कर धीरे-धीरे लोगों ने आपस अपना खून चढ़ाना शुरू कर दिया, जो कि आज तक कायम है। 

पहले यह प्रथा कहीं और होती थी। पूर्वजों ने जबरन इसे बांसगांव में मनाना शुरू किया। तब से लेकर आज तक यह जारी है। साल-दर-साल यह प्रथा और भी बलवती होती जा रही है। न सिर्फ बांसगांव के श्रीनेतवंशी बल्कि अगल-बगल के गांवों और जिलों से भी लोग इस दिन पहुंचकर मां को अपना रक्त अर्पित करते हैं। बलि देने की इस प्रथा में 12 दिन के बच्चे से लेकर बूढे़ लोग भी शामिल होते हैं।

एक ही उस्‍तरे से लगाया जाता है कट 
वक्‍त के साथ बीमारियों को लेकर जागरूकता बढ़ी है। इसके बावजूद यहां एक ही उस्‍तरे से सैकड़ों लोगों के शरीर पर वार करके खून निकाला जाना देखा जा सकता है। इसे लेकर कई बार सवाल भी उठते हैं। रक्‍त निकलने की जगह पर दवा की जगह राख और भभूत लगा दिया जाता है। परंपरा पर यकीन करने वाले कहते हैं कि भभूत से ही घाव ठीक हो जाता है और कभी इस परंपरा की वजह से कोई बीमारी नहीं फैली। 

विदेशों और दूर-दराज से आते हैं लोग 

नवमी के दिन अपनी कुलदेवी को रक्त चढ़ाने के लिए देश-विदेश से लगभग 90 फीसदी स्थानीय लोग यहां आते हैं। बच्चों में भी इसे लेकर कोई भय नहीं देखा जाता है। वे तत्परता से अपना रक्त मां दुर्गा को अर्पित करते हैं। महिलाओं अथवा लड़कियों को इस दौरान वहां जाना वर्जित होता है। महिलाएं भी प्रसाद के बाद मांसाहार का सेवन कर अपना व्रत तोड़तीं हैं। जबकि बच्चे और पुरुष हवन के बाद बलि देते हैं। 

राख अथवा भभूत का लगाते हैं लेप

बांसगांव के वार्ड नं 12 के निवासी नीरज सिंह ने बताया कि बलि के लिए किसी के साथ कोई जबर्दस्ती नहीं की जाती। लोग अपनी आस्थानुसार स्वत: ही इसमें शामिल होते हैं। राख अथवा भभूत का लेप लगाने से जख्म अपने आप ही ठीक हो जाते हैं। ऐसी मां की कृपा रही है कि किसी को इसकी वजह से कोई बीमारी नहीं हुई।  

अष्टमी के दिन लगता है भव्य मेला

दुर्गा मंदिर पर अष्टमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन होता है। मंदिर के गर्भगृह में कई घंटे तक हवन पूजन के बाद शाम 8:00 बजे भक्तों के लिए कपाट खोल दिया जाता है। इस दिन क्षेत्र के सभी लोग यहां पूजन-अर्चन करने के बाद मेले का आनंद उठाते हैं।

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