Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़know everything about the mysterious life Naga sadhus Where do Naga Sadhus go after the kumbh

कुम्भ में अमृत वर्षा के बाद कहां चले जाते है नागा साधु, जानें नागाओं के बारे में सब कुछ

शरीर पर भस्म, हाथों में तीर-तलवार-त्रिशूल और श्रीमुख से हर-हर महादेव का उद्घोष। कुम्भ(Kumbh) में देवरूपी नागा संन्यासियों की यही पहचान है। पूस-माघ की ठिठुराती ठंड में कुम्भ की शान बनने के बाद...

प्रयागराज | अभिषेक मिश्र Thu, 17 Jan 2019 03:19 PM
share Share

शरीर पर भस्म, हाथों में तीर-तलवार-त्रिशूल और श्रीमुख से हर-हर महादेव का उद्घोष। कुम्भ(Kumbh) में देवरूपी नागा संन्यासियों की यही पहचान है। पूस-माघ की ठिठुराती ठंड में कुम्भ की शान बनने के बाद पूरे साल ये संन्यासी कहां रहते हैं, क्या करते हैं? शायद बहुत कम लोग जानते हैं कि कुम्भ में श्रद्धालुओं पर अमृत वर्षा के बाद ये आम साधु संन्यासी की तरह पूजा-पाठ व जाप करते हैं या फिर हिमालय की कंदराओं और घने जंगलों में तप के लिए निकल जाते हैं। 

नागा साधुओं का कहना है कि सालभर दिगम्बर अवस्था में रहना समाज में संभव नहीं है। निरंजनी अखाड़े के अध्यक्ष महंत रवींद्रपुरी जो खुद भी पेशवाई के दौरान नागा रूप धारण करते हैं, कहते हैं कि समाज में आमतौर पर दिगम्बर स्वरूप स्वीकार्य नहीं है। पंजाब व उत्तराखंड में नागा संन्यासियों के साथ इस रूप में अभद्रता हो चुकी है। ऐसे में नागा संन्यासी सालभर या तो गमछा पहन कर रहते हैं या फिर आश्रमों के अंदर निवास करते हैं। नागा संन्यासी खेमराज पुरी भी यही कहते हैं। उनका कहना है कि पूरे साल दिगंम्बर अवस्था में रहना संभव नहीं है। कुम्भ के दौरान ही इस रूप में वे दिखते हैं। 

कुम्भ में ही दिगम्बर स्वरूप क्यों 
नागा संन्यासी बताते हैं कि दिगंबर शब्द दिग् व अम्बर के योग से बना है। दिग् यानी धरती और अम्बर यानी आकाश। आशय कि धरती जिसका बिछौना हो और अम्बर जिसका ओढ़ना। मान्यता है कि कुम्भ क्षेत्र में देवताओं का वास होता है और आकाश से अमृत वर्षा होती है इसीलिए नागा साधु अपने असली रूप में होते हैं। पहले नागा साधु अपने वास्तविक रूप में ही पूरे साल रहते थे लेकिन जैसे-जैसे नागा साधुओं की संख्या बढ़ने लगी आश्रमों में जगह कम होने लगी। इसलिए नागाओं को समाज में रहना पड़ता है। 

कैसे बनते हैं नागा साधु
नागा संन्यासी बनने के लिए वयस्क होना आवश्यक है। महंत रवींद्र पुरी का कहना है कि बाल्यकाल में बच्चे को अखाड़ा लेता है। इसके बाद वयस्क होने पर उसे गंगा की शपथ दिलाई जाती है कि वह परिवार में नहीं जाएगा और न ही विवाह करेगा। समाज से अलग रहेगा, ईश्वर भक्ति करेगा। उसके परिवार का पिंडदान कराया जाता है और उसका खुद का भी पिंडदान कराया जाता है। इसके बाद क्षौरकर्म कराकर संन्यास दीक्षा देते हैं, फिर वह नागा संन्यासी माना जाता है।

अगला लेखऐप पर पढ़ें