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कैराना लोकसभा सीट समीकरण: 40 साल का सूखा खत्म कर पाएगी कांग्रेस? या फिर चलेगा मोदी मैजिक

कैराना संसदीय क्षेत्र से भाजपा, रालोद-सपा गठबंधन, कांग्रेस और बसपा एक बार फिर चुनाव की तैयारी में है। 2024 के लोकसभा चुनाव में अभी काफी समय बाकी है, लेकिन राजनीतिक दल अपनी-अपनी पैठ बिठाने में जुटे हैं

Dinesh Rathour लाइव हिंदुस्तान, लखनऊTue, 4 July 2023 09:57 AM
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शामली जिले की एक मात्र संसदीय सीट कैरान में कांग्रेस के लिए 40 साल से सूखा पड़ा है। 1984 के बाद से कांग्रेस यहां कभी नहीं जीती। वहीं भाजपा और रालोद इस सीट पर तीन और सपा, बसपा एक-एक कब्जेदारी जमा चुकी है। 2014 में मोदी लहर के दौरान भाजपा ने एक बार फिर इस सीट पर परचम लहराया था, लेकिन 2018 में हुए उपचुनाव में भाजपा ये सीट हार गई, लेकिन 2019 में हुए इलेक्शन में भाजपा एक बार फिर इस सीट पर काबिज हुई है। अब सबकी नजरें 2024 के चुनाव पर है। कांग्रेस के सामने जहां एक ओर 40 साल का सूखा खत्म करने की चुनौती है तो वहीं भाजपा भी इस सीट को छोड़ने के मूड में कतई नहीं है। भाजपा मोदी मैजिक पर भरोसा जताए बैठी है। 

टिकट को लेकर किसकी कहां दावेदारी

कैराना संसदीय क्षेत्र से भाजपा, रालोद-सपा गठबंधन, कांग्रेस और बसपा एक बार फिर चुनाव की तैयारी में है। 2024 के लोकसभा चुनाव में अभी काफी समय बाकी है, लेकिन राजनीतिक दल अपनी-अपनी पैठ बिठाने में जुट गए हैं। कोई लखनऊ के चक्कर लगा रहा है तो कोई दिल्ली के। लोकसभा चुनाव की टिकट पाने को लेकर वैसे तो सभी दलों में नेताओं ने अपनी-अपनी दावेदारी ठोंक दी है लेकिन सबसे ज्यादा दावेदार भाजपा में है। 

कैराना में हर बार गलत साबित हो जाती है राजनीतिक दलों की गणित

शामली जिले में आने वाली कैराना लोकसभा सीट पर अब तक 15 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। यह सीट 1962 में पहली बार अस्तित्व में आई थी। इसी साल पहली बार लोकसभा का चुनाव भी हुआ था। पहले लोकसभा चुनाव में इस सीट से जाट किसान नेता यशपाल सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी। मुस्लिम और जाट बाहुल्य वाले इस क्षेत्र में राजनीतिक दलों का जातीय समीकरण बैठाने का गणित यहां की जनता हर बाल गलत साबित कर देती है। यहां की जनता हर बार परिवर्तन कर काबित दल को बाहर का रास्ता दिखा देती है। यह सिलिसला 1962 से ही लगातार चला आ रहा है, जिसका नतीजा ये है कि कोई भी पार्टी लगातार दो बार से ज्यादा चुनाव नहीं जीत पाई है। 1989 और 1991 में जनता दल के प्रत्याशी ने लगातार दो बार चुनाव जीता था, लेकिन तीसरी बार वह भी हार गए। 

कौन कब जीता लोकसभा चुनाव

1962 में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज कराई थी। 1971 के चुनाव में कांग्रेस ने पहली बार जीत हासिल की। इसके बाद दो बार जनता दल ने इस सीट पर राज किया। 1984 में ये सीट फिर से कांग्रेस के पाले में चली गई। पांच साल तक इस सीट पर कब्जा जमाने के बाद 1989 में एक बार फिर चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। उस समय जनता दल ने ये सीट हासिल कर ली। वर्तमान में ये सीट भाजपा के कब्जे में है। यहां से भाजपा के प्रदीप चौधरी ने 2019 में सपा की तबस्सुम बेगम को हराकर चुनाव जीता था। सत्ता में वापसी की टकटकी लगाए बैठी कांग्रेस 2019 में भी इस सीट पर बुरी तरह हार गई थी। कांग्रेस के हरेंद्र मलिक तीसरे स्थान पर रहे थे। अब एक बार फिर कांग्रेस की निगाह 2024 के लोकसभा चुनाव पर टिक गई है। 

चौथे लोकसभा चुनाव में कैराना में चला था जातीय समीकरण

बात 1967 की है। चौथी लोकसभा के गठन के लिए देश में एक बार फिर चुनाव हुए थे। उस समय कैराना का यह दूसरा लोकसभा चुनाव था। देश भर में कांग्रेस का वर्चस्व हावी था। इस सीट से पहली बार कांग्रेस ने प्रत्याशी उतारा था लेकिन संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के सामने वह बुरी रह से हार गई थी। 1971 में कांग्रेस ने जातीय समीकरण का दांव खेला हालांकि वह कामयाब भी रहा। कांग्रेस ने मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देकर चुनाव लड़या। कांग्रेस उम्मीदवार ने 162276 लाख वोट हासिल कर चुनाव जीत लिया। 

कैराना लोकसभा सीट का इतिहास

यूपी की 80 लोकसभा सीटों से एक कैरान सीट शामली जिले में आती है। कैराना लोकसभा सीट पश्चिमी यूपी को प्रभावित करने वाली सीट मानी जाती है। 2014 के आंकड़ों के अनुसार इस सीट पर कुल 1531755 वोटर थे, इनमें 840623 पुरुष और 691132 महिलाए थीं। इस लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा नकुड़, गंगोह, कैराना, थाना भवन और शामली आते हैं। वर्तमान में पांच में से दो सीटों पर भाजपा, दो पर रालोद और एक सीट पर सपा काबिज है। कैराना विधानसभा की बात करें तो यहां से सपा प्रत्याशी नाहिद हसन, नकुड़ विधानसभा से भाजपा के मुकेश चौधरी, गंगोह विधानसभा से भाजपा के किरत सिंह गुर्जर, थाना भवन विधानसभा से रालोद के अशरफ अली, शामली विधानसभा से रालोद के प्रसन्न चौधरी विधायक हैं। कैराना को पहले कर्णपुरी के नाम से जाना जाता था, जो बाद में किराना और फिर कैराना हो गया। मुजफ्फरनगर से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद यह क्षेत्र हरियाणा के पानीपत से भी सटा है। यमुना नदी के पास बसे कैराना को रालोद का घर भी कहा जाता है। इस क्षेत्र में सबसे अधिक मतदाताओं की संख्या मुस्लिम और जाट बाहुल्य लोगों की है।

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